महाभारत द्रोण पर्व अध्याय 107 श्लोक 1-22
सप्ताधिकशततम (107) अध्याय: द्रोण पर्व (जयद्रथवध पर्व)
कौरव सैना के क्षेम धूर्ति, वीरधन्वा, निर मित्र तथा व्याघ्र दत का वध और दुर्मुख एवं विकर्ण की पराजय
संजय कहते हैं-महाराज। तदनन्तर सुदृढ़ पराक्रमी केकय राज बृहत्क्षत्र को आते देख क्षेम धूर्ति ने अनेक बाणों द्वारा उनकी छाती में गहरी चोट पहुंचायी। राजन् तब राजा बृहत्क्षत्र ने भी झुकी हुई गांठवाले नब्बे बाणों द्वारा तुरंत ही द्रोणाचार्य के सैन्य व्यूह का विघटन करने की इच्छा से क्षेमधूर्ति को घायल कर दिया। इससे क्षेमधूर्ति अत्यन्त कुपित हो उठा और उसने पानीदार तीखे महामनस्वी केकयराज का धनुष काट डाला। धनुष कट जाने पर समस्त धनुर्धरों में श्रेष्ठ बृहत्क्षत्र को समरागड़ण में झुकी हुई गांठ वाले बाण से उसने तुरंत ही बींध डाला। तदनन्तर बृहत्क्षत्र ने दूसरा धनुष हाथ में लेकर हंसते-हंसते महारथी क्षेमधूर्ति को घोड़ों, सारथि और रथ से हीन कर दिया। इसके बाद दूसरे पानीदार तीखे भल्ले से राजा क्षेमधूर्ति के प्रज्वलित कुण्डों वाले मस्त को धड़ से अलग कर दिया। सहसा कटा हुआ घुंघराले बालों बाला क्षेमधूर्ति का वह मस्तक मुकुट सहित पृथ्वी पर गिरकर आकाश से टूटे हुए तारे के समान प्रतीत हुआ । रणक्षेत्र में क्षेमधूर्तिका वध करके प्रसन्न हुए महारथी बृहत्क्षत्र युधिष्ठिर के हित के लिये सहसा आपकी सेना पर टुट पड़े। भारत। इसी प्रकार द्रोणाचार्य के हित के लिये महाधनुर्धर पराक्रमी वीरध्नवा ने वहां आते हुए धृष्टकेतु को रोका। वे दोनों वेगशाली वीर बाण रुपी दाढ़ों से युक्त हो परस्पर भिड़कर अनेक सहस्त्र बाणों द्वारा एक दूसरे को चोट पहुंचाने लगे। महान् वन में तीव्र मद वाले दो यूथपति गज राजों के समान वे दोनों पुरुष सिंह परस्पर युद्ध करने लगे। दोनों ही महान् पराक्रमी थे और एक दूसरे को मार डालने की इच्छा से रोष में भरकर पर्वत की गुफा में पहुंचकर लड़ने वाले दो सिंहों के समान आपस में जुझ रहे थे। प्रजानाथ। उनका वह घमासान युद्ध देखने ही योग्य था। वह सिद्धों और चारण समुहों को भी आश्रर्य जनक एवं अद्भुत दिखायी देता था। भरतनन्दन। तत्पश्रात् वीरधन्वा ने कुपित होकर हंसते हुए से ही एक भल्ल द्वारा धृष्ट केतु के धनुष के टुकड़े कर दिये। महारथी चेदिराज धृष्टकेतु ने उस कटे हुए धनुष को फेंक कर एक लोहे की बनी हुई स्वर्ण दण्ड विभुषित विशाल शक्ति हाथ में ले ली। भारत। उस अत्यनत प्रबल शक्ति को दोनों हाथों से उठाकर यत्नशील धृष्ट केतु ने सहसा वीरध्न्वा के रथ पर उसे दे मारा। उस वीरघातिनी शक्ति की गहरी चोट खाकर वीरधन्वा का वक्ष:स्थल विदीर्ण हो गया और वह तुरंत ही रथ से पृथ्वी पर गिर पड़ा। प्रभो। त्रिगर्त देश मे उस महारथी वीर के मारे जाने पर पाण्डव सैनिकों ने चारों ओर से आपकी सेना को विघटित कर दिया। तदनन्तर दुर्मुख ने रणक्षैत्र में सहदेव पर साठ बाण चलाये और उन पाण्डुकुमार को डांट बताते हुए बड़े जोर से गर्जना की। यह देख माद्री कुमार कुपित हो उठे। वे दुर्मुख के भाई लगते थे। उन्होंने अपने पास आते हुए भ्राता दुर्मुख को भाई हंसते हुए से तीखे बाणों द्वारा बींध डाला। भारत । रणक्षेत्र में महाबली सहदेव का वेग बढ़ता देख दुर्मुख ने नौ बाणों द्वारा उन्हें घायल कर दिया। तब महाबली सहदेव ने एक भल्ले से दुर्मुख की ध्वजा काट कर चार तीखे बाणों द्वारा उसके चारों घोड़ों को मार डाला।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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