अष्टचत्वारिंश अध्याय: भीष्म पर्व (भीष्मवध पर्व)
महाभारत: भीष्म पर्व: अष्टचत्वारिंश अध्याय: श्लोक 44-66 का हिन्दी अनुवाद
तदनन्तर पितामह भीष्म को श्वेत के द्वारा युद्ध से विमुख कियाहुआ देख समस्त पाण्डवों को बडा हर्ष हुआ; परन्तु आपके पुत्र दुर्योधन का मन उदास हो गया। तब दुर्योधन कुपित हो समस्त राजाओं तथा सेना के साथ उस युद्धभूमि में पाण्डव सेना पर आक्रमण किया। दुमुर्ख, कृतवर्मा, कृपाचार्य तथा राजा शल्य आपके पुत्र की आज्ञा से आकर भीष्मकी रक्षा करने लगे। दुर्योधन आदि सब राजाओं के द्वारा पाण्डवसेना को युद्ध में मारी जाती देख श्वेतने गंगापुत्र भीष्म को छोड़कर आपके पुत्र की सेना उसी प्रकार वेगपूर्वक विनाश आरम्भ किया, जैसे आंधी अपनी शक्ति से वृक्षों को उखाड़ फेंकती है। राजन् ! विराटपुत्र श्वेत उस समय क्रोध से मूर्छित हो रहे थे। वे आपकी सेनाको दूर भगाकर फिर सहसा वही आ पहुंचे, जहां भीष्म खडे़ थे। महाराज ! वे दोनों महाबली महामना वीर बाणों से उदीप्त हो एक दूसरे को मार डालने की इच्छा से समीप आकर वृत्रासुर और इन्द्र के समान युद्ध करने लगे। श्वेतने धनुष खीचंकर सात बाणों द्वारा भीष्म को बेघ डाला। तब पराक्रमी भीष्म ने श्वेत के उस पराक्रम को स्वयं पराक्रम करके वेगपूर्वक रोक दिया; मानो किसी मतवाले हाथी ने दूसरे मतवाले हाथी को रोक दिया हो। तदनन्तर श्वेतने पुनः झुकी हुई गांठवाले पचीस बाणों से शान्तनुनन्दन भीष्म को बींघ डाला। वह एक अद्भूतसी घटना हुई। तब शान्तनुनन्दन भीष्म ने भी दस बाण मारकर बदला चुकाया। उनके द्वारा घायल किये जाने पर भी बलवान श्वेत विचलित नही हुआ। वह पर्वत की भॉति अविचलभाव से खड़ारहा। तदनन्तर क्षत्रियकुल को आनन्दित करनेवाले विराट कुमार श्वेत ने युद्ध में कुपित हो धनुष को जोर जोर से खीचकर भीष्म पुनः बाणों द्वारा प्रहार किया। इसके बाद उन्होनें हंसकर अपने मुंह के दोनों कोनो को चाटते हुए नौ बाण मारकर भीष्म के धनुष के दस टुकडे़ कर दिये। फिर शिखाशुन्य पंखयुक्त बाण का संघान करके उसके द्वारा महात्मा भीष्म के तालचिन्हयुक्त ध्वज का ऊपरी भाग काट डाला। भीष्म के ध्वज को नीचे गिरा देख आपके पुत्रों ने उन्हे श्वेत के वश में पकड़कर मरा हुआ ही माना। महात्मा भीष्म के तालध्वज को पृथ्वीपर पड़ा देख पाण्डव हर्ष उल्लासित हो प्रसन्नतापूर्वक शंख बजाने लगे। तब दुर्योधन ने क्रोधपूर्वक अपनी सेना को आदेश दिया ‘वीरो ! सावधान होकर सब और से भीष्म रक्षा करते हुए उन्हे घेरकर खडे़ हो जाओ। कही ऐसा न हो कि ये हमारे देखते-देखते श्वेत के हाथों मारे जायें। मैं तुमलोगों को सत्य कहता हूं कि शान्तनुनन्दन भीष्म महान् शूरवीर है’। राजा दुर्योधन की यह बात सुनकर सब महारथी बडी उतावली के साथ वहां आये और चतुरगिणी सेना द्वारा गंगा-नन्दन भीष्म की रक्षा करने लगे। भारत ! बाह्रीक, कृतवर्मा, शल, शल्य, जससंघ, विकर्ण, चित्रसेन और विविंशति-इन सबने शीघ्रता के अवसर पर शीघ्रता करते हुए चारों और से भीष्मजी को घेर लिया और श्वेत के ऊपर भयंकर शस्त्र वर्षा करने लगे। तब अपरिमित आत्मबल से सम्पन्न महारथी श्वेतने अपने हाथों की फुर्ती दिखाते हुए बडी उतावली के साथ क्रोधपूर्वक पैने बाणों द्वारा उन सबको रोक दिया। जैसे सिंह हाथियों के समूह को आगे बढने से रोक देता है, उसी प्रकार उन सभी महारथियों को रोककर भारी बाणवर्षा के द्वारा श्वेतने भीष्मका धनुष काट दिया।
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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