थिओफ़्रैस्टस

अद्‌भुत भारत की खोज
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थिओफ्रैस्टस ग्रीस देश के प्रसिद्ध दार्शनिक एवं प्रकृतिवादी थे। इनका जन्म ईसा पूर्व 3७2 में, लेज़बासॅ द्वीप के एरेसस नामक नगर में हुआ था, तथा मृत्यु ईसा पूर्व 2८७ में हुई। लेज़बॉस में ही इन्होंने ल्युसिपस से दर्शनशास्त्र की शिक्षा ग्रहण की और उसके बाद एथेन्स चले गए। यहाँ पर प्लेटो से संपर्क बढ़ा। प्लेटों की मृत्यु के पश्चात्‌, आपका घनिष्ठ संबंध प्रसिद्ध दर्शनिक ऐरिस्टॉट्ल से हुआ। कहा जाता है, थिऔफ्रैस्टस नाम भी, बातचीत के सिलसिले में, ऐरिस्टॉट्ल का ही दिया हुआ है। ऐरिस्टॉट्ल अपने वसीयतनामों में थिओफ्रैस्टस को ही अपने बच्चों का अभिभावक बना गए थे, तथा उन्हें अपनी पुस्तकालय और मूल निबंध, लेख आदि सब कुछ सौंप गए थे। ऐरिस्टॉट्ल के कैलसिस नगर चले जाने के बाद उनके स्थापित विद्यालय के ये उत्तराधिकारी हुए और इस पद पर वे 35 वर्ष तक (मृत्यु पर्यंत) रहे। इस विद्यालय में संसार के हर कोने से छात्र आते थे।

रूचि व रचनाएँ

आपने ऐरिस्टॉट्ल के दर्शनशास्त्र का पूरा अनुकरण किया। आप की रुचि विशेषकर वनस्पतिशास्त्र एवं प्राकृतिक वस्तुओं, जैसे अग्नि, वायु आदि की ओर थी। आपने लगभग 2०० निबंध एवं लेख, दर्शनशास्त्र, तर्कशास्त्र, कानून, पदार्थ विज्ञान, काल्पनिक वस्तुओं, वृक्षों, कविता आदि पर लिखे। इनमें से बहुतों का कोई पता नहीं लगता है। आपकी मुख्य रचनाओं में वनस्पतिशास्त्र पर लिखे दो निबंध हैं : पहला वनस्पतियों का इतिहास तथा दूसरा 'पौधों के प्रवर्तक' है। प्राचीन तथा मध्य काल में लिखे हुए वनस्पतिशास्त्र के ग्रंथों में इनका बड़ा महत्व है। थिओफ्रैस्टस की एक अन्य रचना में उनके समय के जीवन का सुंदर चित्रण है।

टीका टिप्पणी और संदर्भ