महाभारत भीष्म पर्व अध्याय 94 श्लोक 1-21

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चतुर्नवतितम (94) अध्‍याय: भीष्म पर्व (भीष्‍मवध पर्व)

महाभारत: भीष्म पर्व: चतुर्नवतितम अध्याय: श्लोक 1-21 का हिन्दी अनुवाद
दुर्योधन और भीमसेन का एवं अश्‍वत्‍थामा और राजा नील का युद्ध तथा घटोत्‍कच की माया से मोहित होकर कौरव सेना का पलायन

संजय कहते है- राजन् ! अपनी अधिकांश सेना को मारी गयी देख क्रोध में भरे हुए स्वयं राजा दुर्योधन ने शत्रु दमन भीमसेन पर धावा किया। उसने इन्द्र के वज्र की भाँति भयानक टंकार करने वाले विशाल धनुष को हाथ में लेकर पाण्डुनन्दन भीमसेन पर बाणों की भारी वर्षा आरम्भ की। इतना ही नहीं, उसने कुपित होकर पंखयुक्त अत्यन्त तीखे अर्धचन्द्राकार बाण का प्रयोग करके भीमसेन के धनुष को काट दिया। फिर उसी को उपयुक्त अवसर समझ कर महारथी दुर्योधन ने बड़ी उतावली के साथ एक तीखे बाण का संधान किया, जो पर्वतों को भी विदीर्ण करने वाला था। महाराज ! उस बाण के द्वारा दुर्योधन ने भीमसेन की छाती पर गहरी चोट पहुँचायी। उससे अत्यन्त घायल होकर तेजस्वी भीमसेन व्यथित हो उठे और मुँह के दोनों कोनों को चाटते हुए उन्होंने अपने सुवर्णभूषित ध्वज का सहारा ले लिया। भीमसेन को इस प्रकार व्यथितचित देखकर घटोत्कच जलाने की इच्छा वाले अग्निदेव की भाँति क्रोध से प्रज्वलित हो उठा। साथ ही अभिमन्यु आदि पाण्डव महारथी भी बड़े वेग से राजा दुर्योधन को ललकारते हुए उसकी ओर दौड़े। क्रोध में भरे हुए इन समस्त योद्धाओं को वेगपूर्वक धावा करते देख द्रोणाचार्य ने आपके महारथियों से कहा- वीरों ! तुम्हारा कल्याण हो। शीघ्र जाओ और संकट के समुद्र में डूबकर महान प्राणसंशय में पड़े हुए राजा दुर्योधन की रक्षा करो। ये महानधनुर्धर पाण्डव महारथी कुपित हो भीमसेन को आगे करके दुर्योधन पर धावा कर रहे हैं और विजयका दृढ़ संकल्प ले नाना प्रकार के अस्त्र-शस्त्रों की वर्षा करते हुए भैरव गर्जना करते तथा भूमिपालों को त्रास पहुँचाते हैं। आचार्य का यह वचन सुनकर भूरिश्रवा आदि आपके प्रमुख योद्धाओं ने पाण्डव सेना पर आक्रमण किया। कृपाचार्य, भूरिश्रवा, शल्य, अश्वत्थामा, विविंशति, चित्रसेन, विकर्ण, सिंधुराज जयद्रथ, बृहद्वल तथा अवन्ती के राजकुमार महाधर्नुधर विन्द और अनुविन्द- इन सबने दुर्योधन को उसकी रक्षा के लिए सब ओर से घेर लिया। वे बीस कदम आगे बढ़कर प्रहार करने लगे, फिर तो पाण्डव तथा कौरव योद्धा एक दूसरे को मार डालने की इच्छा से युद्ध करने लगे। कौरव महारथियों से पूर्वोक्त बात कहने के पश्चात महाबाहु भरद्वाजनन्दन द्रोणाचार्य ने अपने विशाल धनुष को खींचकर भीमसेन को छब्बीस बाण मारे। साथ ही उन महाबाहु ने उनके ऊपर शीघ्रतापूर्वक बाणों की वर्षा आरम्भ कर दी, मानो वर्षाऋतु में मेघ पर्वत शिखर पर जल धारा गिरा रहा हो। तब महाबली महाधनुर्धर भीमसेन ने भी बड़ी उतावली के साथ द्रोणाचार्य की बायीं पसली में दस बाण मारकर उन्हें घायल कर दिया। भरतनन्दन ! उन बाणों से उन्हें गहरा आघात लगा। वे वयोवृद्ध तो थे ही, सहसा व्यथित एवं अचेत होकर रथ के पिछले भाग में जा बैठे। आचार्य द्रोण को व्यथा से पीडि़त देख स्वयं राजा दुर्योधन और अश्वत्थामा दोनों अत्यन्त कुपित हो भीमसेन पर टूट पड़े। प्रलयकालीन यमराज के समान भयंकर उन दोनों महारथियों को आक्रमण करते देख महाबाहु भीमसेन ने तुरंत ही गदा हाथ में ले ली और वे रथ से कूदकर पर्वत के समान अविचल भाव से खड़े हो गये।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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