महाभारत भीष्म पर्व अध्याय 79 श्लोक 18-37

अद्‌भुत भारत की खोज
नेविगेशन पर जाएँ खोज पर जाएँ

एकोनाशीतितम (79) अध्‍याय: भीष्म पर्व (भीष्‍मवध पर्व)

महाभारत: भीष्म पर्व: एकोनाशीतितम अध्याय: श्लोक 18-37 का हिन्दी अनुवाद

राजन्! इसी प्रकार रथियों में श्रेष्ठ कृपाचार्य ने अमर्ष में भरे हुए अमित तेजस्वी कुरूवंशी दुर्योधन को अपने रथ पर चढ़ा लिया। नरेश्वर! भीमसेन ने उस युद्ध में दुर्योधन को बहुत घायल कर दिया था। अतः उस समय वह व्यथा से व्याकुल होकर रथ के पिछले भाग में जा बैठा। तत्पश्चात् जयद्रथ ने भीमसेन को जीतने की इच्छा रखकर कई हजार रथों के द्वारा उन्हें घेर लिया और उनकी सम्पूर्ण दिशाओं को अवरूद्ध कर दिया। महाराज! इसी समय धृष्टकेतु, पराक्रमी अभिमन्यु, पाँच केकय राजकुमार तथा द्रौपदी के पाँचों पुत्र आपके पुत्रों साथ युद्ध करने लगे। उसयुद्ध में चित्रसेन, सुचित्र, चित्रांग, चित्रदर्शन, चारूचित्र, सुचारू, नन्द और उपनन्द- इन आठ यशस्वी सुकुमार एवं महाधनुर्धर वीरों ने अभिमन्यु के रथ को चारों ओर से घेर लिया। उस समय महामनाअभिमन्यु ने तुरंत ही झुकी हुई गाँठवाले पाँच-पाँच तीखे बाणों द्वारा प्रत्येक को बींध डाला। वे सभी बाण विचित्र धनुष द्वारा छोड़े गये थे और सब के सब वज्र एवं मृत्यु के तुल्य भयंकर थे। उन बाणों के आघात को आपे पुत्र सहन न कर सके। उन सबने मिलकर रथियों में श्रेष्ठ सुभद्राकुमार अभिमन्यु पर तीखे बाणों की वर्षा आरम्भ की, मानो बादल मेरूगिरि पर जल की वर्षा कर रहे हों। महाराज! अभिमन्यु अस्त्रविद्या का ज्ञाता और युद्ध में उन्मत्त होकर लड़ने वाला है। उसने समरभूमि में बाणों से पीडि़त होने पर भी आपके सैनिकों में कँपकँपी उत्पन्न कर दी। ठीक उसी तरह, जैसे देवासुर-संग्राम में वज्रधारी इन्द्र ने बड़े-बड़े असुरों को भय से पीडि़त कर दिया था। भारत! तदनन्तर रथियों में श्रेष्ठ पराक्रमी अभिमन्यु ने विकर्ण के ऊपर सर्प के समान आकार वाले चैदह भयंकर भल्ल चलाये और उने द्वारा विकर्ण के रथ से ध्वज, सारथि और घोड़ों को मार गिराया। उस समय वह युद्ध में नृत्य सा कर रहा था। तत्पश्चात् उस महाबली वीर ने अत्यन्त कुपित हो शान पर चढ़ाकर तेज किये हुए अप्रतिहत धारवाले दूसरे पानीदार बाण विकर्ण पर चलाये। उन बाणों के पुच्छभाग में मोर के पंख लगे हुए थे। वे विकर्ण के शरीर को विदीर्ण करके भीतर घुस गये और वहाँ से भी निकलकर प्रज्वलित सर्पो की भाँति पृथ्वी पर गिर पडे़। उन बाणों के पुच्छ और अग्रभाग सुनहरे थे। वे विकर्ण के रूधिर में भीगे हुए बाण पृथ्वी पर रक्त वमन करते हुए से दृष्टिगोचर हो रहे थे। विकर्ण को क्षत-विक्षत हुआ देख उसके दूसरे भाइयों ने समरभूमि में अभिमन्यु आदि रथियों पर धावा किया। वे सब-के-सब युद्ध में उन्मत्त होकर लड़ने वाले थे। उन्होंने दूसरे-दूसरे रथियों पर भी, जो अभिमन्यु की ही भाँति सूर्य के समान तेजस्वी थे, आक्रमण किया। फिर वे सब लोग अत्यन्त क्रोध में भरकर एक दूसरे को अपने बाणों द्वारा घायल करने लगे। दुर्मुख ने श्रुतकर्मा को सात शीघ्रगामी बाणों द्वारा बींधकर एक से उसका ध्वज काट डाला और सात बाणों से उसके सारथि को घायल कर दिया। उसके घोड़े वायु के समान वेगशाली तथा सोने की जाली से आच्छादित थे। दुर्मुख ने उन घोड़ों को छः बाणों से मार डाला और सारथि को भी रथ से नीचे गिरा दिया। महारथी श्रुतकर्मा घोड़ों के मारे जाने पर भी उस रथ पर खड़ा रहा और अत्यन्त क्रोध में भरकर उसने दुर्मुख पर प्रज्वलित उल्का के समान एक शक्ति चलायी।


« पीछे आगे »

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख