महाभारत उद्योग पर्व अध्याय 171 श्लोक 1-27

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एकसप्‍तत्‍यधिकशततम (171) अध्‍याय: उद्योग पर्व (रथातिरथसंख्‍यान पर्व)

महाभारत: उद्योग पर्व: एकसप्‍तत्‍यधिकशततम अध्याय: श्लोक 1-27 का हिन्दी अनुवाद
पाण्‍डवपक्ष के रथी, महारथी एवं अतिरथी आदि का वर्णन

भीष्‍मजी कहते हैं—राजन्‍ ! भरतनन्‍दन ! पांचाल राज द्रुपद पुत्र शिखण्‍डी शत्रुओं की नगरी पर विजय पाने वाला है, मैं उसे युधिष्ठिर की सेना का एक प्रमुख रथी मानता हूं। भारत ! वह तुम्‍हारी सेना में प्रवेश करके अपने पूर्व अपयश का नाश तथा उत्‍तम सुयश का विस्‍तार करता हुआ बडे उत्‍साह से युद्ध करेगा। उसके साथ पांचालों और प्रभद्रकों की बहुत बडी सेना है। वह उन रथियों के समूह द्वारा युत्र में महान कर्म कर दिखायेगा। भारत ! जो पाण्‍डवोंकी सम्‍पूर्ण सेनाका सेनापति है, वह द्रोणाचार्य का महारथी शिष्‍य धृष्‍टधुम्न मेरे विचार से अतिरथी है। जैसे प्रलयकाल में पिनाकधारी भगवान रूद्र कुपित होकर प्रजा का संहार करते हैं, उसी प्रकार यह संग्राम में शत्रुओं का संहार करता हुआ युद्ध करेगा। इसके पास रथियों की जो देवसेना के समान विशाल सेना है, उसकी संख्‍या बहुत होने के कारण युद्धप्रेमी सैनिक रणक्षेत्र में उसे समुद्र के समान बताते हैं। राजेन्‍द्र ! धृष्‍टधुम्न का पुत्र क्षत्रधर्मा मेरी समझ में अभी अर्द्धरथी है। बाल्‍यावस्‍था होने के कारण उसने अस्‍त्र-विद्या में अधिक परिश्रम नहीं किया है। शिशुपालका वीर पुत्र महाधनुर्धर चेदिराज ध्रष्‍टकेतु पाण्‍डुनन्‍दन युधिष्ठिर का सम्‍बन्‍धी एवं महारथी है। भारत ! यह शौर्यसम्‍पन्‍न चेदिराज अपने पुत्रके साथ आकर महारथियों के लिये सहज साध्‍य महान पराक्रम कर दिखायेगा। राजेन्‍द्र ! शत्रुओंकी नगरीपर विजय पाने वाला क्षत्रियधर्मपरायण क्षत्रदेव मेरे मतमें पाण्‍डव-सेना का एक श्रेष्‍ठ रथी है। जयन्‍त, अमितौजा और महारथी सत्‍यजित- ये सभी पांचाल शिरोमणि महामनस्‍वी भरे हुए गजराजों की भांति समरभूमि में युत्र करेंगे। पाण्‍डवों के लिये महान पराक्रम करने वाले बलवान शूरवीर अज और भोज दोनों महारथी हैं । वे सम्‍पूर्ण शक्ति लगाकर युद्ध करेंगे और अपने पुरूषार्थ का परिचय देंगे। राजेन्‍द्र ! शीघ्रतापूर्वक अस्‍त्र चलाने वाले, विचित्र योद्धा, युद्धकाल में निपुण और दृढ़ पराक्रमी जो पांच भाई केकयराजकुमार हैं, वे सभी उदार रथी माने गये हैं । उन सबकी ध्‍वजा लाल रंग की है। सुकुमार, काशिक, नील, सूर्यदत्‍त, शंख और मदिरश्‍व नामक ये सभी योद्धा उदार रथी हैं। युद्ध ही इन सबका शौर्यसूचक चिन्‍ह है। मैं इन सभी को सम्‍पूर्ण अस्‍त्रों के ज्ञाता और महामनस्‍वी मानता हूं। महाराज ! वार्धक्षेमि को मैं महारथी मानता हूं तथा राजा चित्रायुध मेरे विचार से श्रेष्‍ठ रथी हैं । चित्रायुध संग्राम में शोभा पाने वाले तथा अर्जुन के भक्‍त हैं। चेकितान और सत्‍यधृति- ये दो पुरूषसिंह पाण्‍डव-सेना के महारथी हैं । मैं इन्‍हें रथियों में श्रेष्‍ठ मानता हूं। भरतनन्‍दन ! महाराज ! वयाघ्रदत्‍त और चन्‍द्रसेन- ये दो नरेश भी मेरे मत में पाण्‍डवसेना श्रेष्‍ठ रथी हैं, इसमें संशय नहीं है। राजेन्‍द्र ! राजा सेनाबिन्‍दु का दूसरा नाम क्रोधहन्‍ता भी है । प्रभो ! वे भगवान कृष्‍ण तथा भीमसेन के समान पराक्रमी माने जाते हैं। वे समरांगण में तुम्‍हारे सैनिकों के साथ पराक्रम प्रकट करते हुए युद्ध करेंगे। तुम मुझको, आचार्य द्रोण को तथा कृपाचार्य का जैसा समझते हो, युद्ध में दूसरे वीरों से स्‍पर्धा रखने वाले तथा बहुत ही फूर्ती के साथ अस्‍त्र-शस्‍त्रों का प्रयोग करने वाले प्रशंसनीय एवं उत्‍तम रथी नरश्रेष्‍ठ काशीराज को भी तुम्‍हें वैसा ही मानना चाहिये। मेरी दृष्टि में शत्रुनगरी पर विजय पाने वाले काशिराजा साधारण अवस्‍था में एक रथी समझना चाहिये; परंतु जिस समय ये युद्ध में पराक्रम प्रकट करने लगते हैं उस समय इन्‍हें रथियों के बराबर मानना चाहिये। द्रुपद का तरूण पुत्र सत्‍यजित सदा युद्ध की स्‍पृहा रखने वाला है । वह धृष्‍टधुम्न के समान ही अतिरथी का पद प्राप्‍त कर चुका है। वह पाण्‍डवों के यशोविस्‍तार की इच्‍छा रखकर युद्ध में महान कर्म करेगा। पाण्‍डवपक्ष के धुरंधर वीर महापराक्रमी पाण्‍डयराज भी एक अन्‍य महारथी हैं । ये पाण्‍डवों के प्रति अनुराग रखने वाले और शूरवीर है । इनका धनुष महान और सुद्रढ़ है। ये पाण्‍डवसेना के सम्‍माननीय महारथी हैं कौरवश्रेष्‍ठ ! राजा श्रेणिमान और वसुदान– ये दोनों वीर अतिरथी माने गये हैं । ये शत्रुओं की नगरी पर विजय पाने में समर्थ हैं।

इस प्रकार श्रीमहाभारत उद्योगपर्वके अन्‍तर्गत रथातिरथसंख्‍यानपर्व में एक सौ इकहत्‍त्‍रवां अध्‍याय पूरा हुआ।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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