महाभारत वन पर्व अध्याय 312 श्लोक 39-45
द्वादशाधिकत्रिशततम (312) अध्याय: वन पर्व (आरणेयपर्व)
यक्ष बोला- तात ! पानी पीने का साहस न करना। इस जल पर पहले मेरा अधिकार स्थापित हो चुका है। कुन्तीकुमार ! पहले मेरे प्रश्नो का उत्तर दे दो, फिर पानी पी पीओ और ले भी जाओ । अमित तेजस्वी यक्ष के ऐसा कहने पर भी भीमसेन उन प्रश्नों का उत्तर दिये बिना ही जल पीने लगे और पीते ही मूर्छित होकर गिर पड़े । तदनन्तर कुन्तीकुमार पुरुषरत्न महाबाहु राजा युधिष्ठिर बहुत देर तक सोच-विचार करके उठे और जलते हुए हृदय से उन्होंने उस विशाल वन में प्रवेश किया, जहाँ मनुष्यों की आवाज तक नहीं सुनायी देती थी। वहाँ रुरु मृग, वराह तथा पक्षियों के समुदाय ही निवास करते थे। नीले रंग के चमकीले वृक्ष उस वन की शोभा बढ़ा रहे थे। भ्रमरों के गुंजन और विहंगों के कलरव से वह वनप्रान्त शब्दायमान हो रहा था । महायशस्वी श्रीमान् युधिष्ठिर ने उस वन में विचरण करते हुए उस सरोवर को देखा, जो सुनहरे रंग के कुसुम केसरों से विभूषित था। जान पड़ता था; साक्षात् विश्वकर्मा ने ही उसका निर्माण किया है । उस सरोवर का जल कमल की वेलों से आच्छादित हो रहा था और उसके चारों किनारों पर सिंदुवार, बेंत, केवड़े, करवीर तथा पीपल के वृक्ष उसे घेरे हुए थे। उस समय भाइयों से मिलने के लिये उत्सुक श्रीमान् धर्मनन्दन युधिष्ठिर थकावट से पीडि़त हो उस सरोवर पर आये और वहाँ की अवस्था देखकर बड़े विस्मित हुए ।
इस प्रकार श्रीमहाभारत वनपर्व के अन्तर्गत आरणेयपर्व में नकुल आदि चारों भाइयों के मूर्छित होकर गिरने से सम्बन्ध रखने वाला तीन सौ बारहवाँ अध्याय पूरा हुआ।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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