महाभारत वन पर्व अध्याय 292 श्लोक 1-14

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द्विनवत्यधिकद्विशततम (292) अध्याय: वन पर्व (रामोख्यानपर्व)

महाभारत: वन पर्व: द्विनवत्यधिकद्विशततमोऽध्यायः 1-14 श्लोक का हिन्दी अनुवाद


मार्कण्डेयजी के द्वारा राजा युधिष्ठिर को आश्वासन

मार्कण्डेयजी कहते हैं- महाबाहु युधिष्ठिर ! इस प्रकार प्राचीन काल में अमिततेजस्वी श्रीराम ने वनवासजनित अत्यन्त भयंकर कष्ट भोगा था । शत्रुओं को संताप देने वाले पुरुषसिंह ! तुम क्ष.ित्रय हो, शोक न करो। तुम तो उस मार्ग पर चल रहे हो, जहाँ केवल अपने बाहुबल का भरोसा किया जाता है तथा जहाँ अभीष्ट फल की प्राप्ति प्रत्यक्ष एवं असंदिग्ध है । श्रीराम के कष्ट के सामने तुम्हारा कष्ट अणुमात्र भी नहीं है। इन्द्र सहित देवता तथा असुर भी इस क्षत्रियधर्म के मार्ग पर चले हैं। वज्रपाणि इन्द्र ने मरुद्गणों के साथ मिलकर वृत्रासुर, दुर्धर्ष वीर नमुचि तथा दीर्घजिव्हा राक्षसी का वध किया था।। जो सहायकों से सम्पन्न है, उसके सभी मनोरथ इस जगत्! में सब प्रकार से सिद्ध होते हैं। फिर जिसे धनंजय जैसा भाई मिला हो, वह युद्ध में किसे परास्त नहीं कर सकता। ये भयंकर पराक्रमी भीमसेन बलवानों में श्रेष्ठ हैं। माद्रीनन्दन वीर नकुल सहदेव भी महान् धनुर्यर तथा नवयुवक हैं । परंतप ! इन सब सहायकों के होते हुए तुम विषाद क्यों करते हो ? तुम्हारे ये भाई तो मरुद्गणोंसहित वज्रधारी इन्द्र की सेना को भी परास्त कर सकते हैं । भरतश्रेष्ठ ! तुम भी इन देवस्वरूप महाधनुर्धर भाइयों की सहायता से अपने समस्त शत्रुओं को युद्ध में जीत लोगे।। इणर इस द्रौपदी की ओर देखो। अपने पराक्रम के मद से उन्मत्त महाबली दुरात्मा सिन्धुराज ने इसे हर लिया था; परंतु तुम्हारे इन महात्मा बन्धुओं ने अत्यन्त दुष्कर कर्म करके दु्रपदकुमारी कृष्णा को पुनः लौटा लिया तथा राजा जयद्रथ को भी परास्त करके अपने अधीन कर लिया था।। श्रीरामचन्द्रजी तो कोई स्वजातीय सहायक भी नहीं थे, तो भी उन्होंने युद्ध में भयंकर पराक्रमी राक्षस दशानन का वध करके विदेहनन्दिनी सीता को पुनः लौटा लिया । राजन् ! दूसरी योनि के प्राणी वानर, लंगूर तथा रीछ ही उनके मित्र अथवा सहायक थे (किंतु तुम्हारे तो चार शूरवीर भाई सहायक हैं)। इस बात पर बुद्धि द्वारा विचार करो । अतः कुरुश्रेष्ठ ! भरतभूषण ! तुम शोक न करो। क्योंकि परंतप ! तुम्हारे जैसे महात्मा पुरुष कभी शोक नहीं करते। वैशम्पायनजी कहते हैं- जनमेजय ! परम बुद्धिमान मार्कण्डेय मुनि के इस प्रकार आश्वासन देने पर उदार हृदय वाले राजा युधिष्ठिर दुःख शोक छोड़कर पुनः उनसे इस प्रकार बोले ।


इस प्रकार श्रीमहाभारत वनपर्व के अनतर्गत रामोख्यान पर्व में युधिष्ठिर को आश्वासन विषयक दो सौ बानवेवाँ अध्याय पूरा हुआ।



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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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