महाभारत शान्ति पर्व अध्याय 59 श्लोक 137-145

अद्‌भुत भारत की खोज
Bharatkhoj (वार्ता | योगदान) द्वारा परिवर्तित १०:१८, १३ जुलाई २०१५ का अवतरण ('==एकोनषष्टित्तम (59) अध्याय: शान्ति पर्व (राजधर्मानुशा...' के साथ नया पन्ना बनाया)
(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
नेविगेशन पर जाएँ खोज पर जाएँ

एकोनषष्टित्तम (59) अध्याय: शान्ति पर्व (राजधर्मानुशासन पर्व)

महाभारत: शान्ति पर्व : एकोनषष्टित्तम अध्याय: श्लोक 137-145 का हिन्दी अनुवाद

जिसने राजा का सौम्य मुख देख लिया, वह उसके अधीन हो गया। प्रत्येक मनुष्य राजा को सौभाग्यशाली, धनवान् और रूपवान् देखता हैं। पूर्वोक्त दण्ड़ की महत्ता से ही स्पष्ट लक्षणों वाली नीति तथा न्यायोचित आचार का अधिक प्रचार होता हैं, जिससे यह सारा जगत् व्याप्त हैं। युधिष्ठिर! पुराणशास्त्र, महर्षियों की उत्पत्ति, तीर्थंसमूह, नक्षत्रसमुदाय, ब्रह्मचर्य आदि चार आश्रम, होता आदि चार प्रकार के ऋत्विजों से सम्पन्न होने वाले यज्ञकर्म, चारों वर्ण और चारों विद्याओं का पूर्वोक्त नीतिशास्त्र में प्रतिपादन किया गया हैं। इतिहास वेद, न्याय-इन सबका उसमें पूरा-पूरा वर्णन हैं। तप, ज्ञान, अहिंसा तथा जों सत्य, असत्य परे हैं उसका और वृद्धजनों की सेवा, दान, शौच, उत्थान तथा समस्त प्राणियों पर दया आदि सभी विषयों का उस ग्रन्थ में वर्णन हैं।पाण्डुनन्दन! अधिक क्या कहा जाय ? जो कुछ इस पृथ्वी पर हैं जो इसके नीचे हैं, उस सबका ब्रह्माजी के पूर्वोंक्त शास्त्र में समावेश किया गया है, इसमें संशय नहीं हैं। राजेन्द्र! प्रजानाथ! तब से जगत् में विद्वानों ने सदा के लिये यह घोषणा कर दी है कि ’देव और नरदेव (राजा) दोनो समान हैं’। भरतश्रेष्ठ! इस प्रकार राजाओं का जो कुछ महत्त्व हैं, वह सब मैंने सम्पूर्ण रूप से तुम्हें बता दिया। अब इस विषय में तुम्हारे लिये और क्या जानना शेष रह गया हैं ?

इस प्रकार श्रीमहाभारत शान्तिपर्वं के अन्तर्गत राजधर्मांनुशासन पर्वं में सूत्राध्यायविषयक उनसठवाँ अध्याय पूरा हुआ।


« पीछे आगे »

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख