महाभारत कर्ण पर्व अध्याय 25 श्लोक 1-19
पञ्चविंश (25) अध्याय: कर्ण पर्व
युयुत्सु और उलूक का युद्ध,युयुत्सु का पलायन,शतनीक और धृतराष्ट्र पुत्र श्रुतकर्मा का तथा सुतसोम और शकुनि का घोर युद्ध एवंशकुनि द्वारा पाण्डव सेना का विनाश
संजय कहते हैं-महाराज ! दूसरी ओर युयुत्सु आपके पुत्र की विशाल सेना को खदेड़ रहा था। यह देख उलूक तुरंत वहाँ आ धमका और युयुत्सु से बोला- ‘अरे ! खड़ा रह,खड़ा रह ‘। राजन् ! तब युयुत्सु ने तीखी धार वाले बाण से महाबली उलूक को उसी प्रकार पीट दिया,जैसे इन्द्र पर्वत पर वज्र का प्रहार करते हैं। इससे उलूक को बड़ा क्रोध हुआ। उसने युद्ध स्थल में एक क्षुरप्र के द्वारा आपके पुत्र का धनुष काटकर उसपर कर्ण नामक बाण का प्रकार किया। युयुत्सु ने उस कटे हुए धनुष को फेंककर क्रोध में आँखें लाल करके दूसरा अत्यन्त वेगशाली एवं विशाल धनुष हाथ में लिया। भरतश्रेष्ठ ! उसने शकुनि पुत्र उलूक को साठ बाणों से बेध दिया और तीन बाणों से उसके सिर को पीडि़त किया। तत्पश्चात् उसे और भी घायल कर दिया। तब उलूक ने संग्राम भूमि में कुपित हो स्वर्णभूषित बीस बाणों से युयुत्सु को घायल करके उनके सुवर्णमय ध्वज को भी काट डाला। राजन् ध्वजा का दण्ड कअ जाने पर युयुत्सु का वह विशाल कान्चन ध्वज छिन्न-भिन्न हो उसके सामने ही गिर पड़ा। अपने ण्वज का यह विध्वंस देखकर युयुत्सु क्रोध से मुर्छित-सा हो गया और उसने पाँच बाणों से उलूक की छाती भेद डाली। माननीय भरतभूषण ! उलूक ने तेल से साफ किये हुए भल्ल के द्वारा युयुत्सु के सारथि का मसतक काट डाला। उस समय युयुत्सु के सारथि का वह कटा हुआ मसतक पृथ्वी पर उसी भँाति गिरा,मानो आकाश से भूतल पर कोई विचित्र तारा टूट पड़ा हो ततपश्चात् उलूक ने युयुत्सु के चारों घोड़ों को भी मार डाला और पाँच बाणों से उसे भी घायल कर दिया। उस बलवान् वीर के द्वारा अत्यन्त घायल हो युयुत्सु को पराजित करके उलूक तुरंत ही पांचालों और सृंजयों की ओर चला गया और उन्हें तीखे बाणों से मारने लगा। महाराज ! दूसरी ओर आपके पुत्र श्रुतकर्मा ने बिना किसी घबराहट के आधे निमेष में ही शतानीक के रथ को घोड़ों और सारथि से शून्य कर दिया। मान्यवर ! महारथी शतानीक ने कुपित होकर अपने अश्वहीन रथ पर खड़े रहकर ही आपके पुत्र के ऊपर गदा हा प्रहार किया। भारत ! वह गदा तुरंत ही श्रुतकर्मा के रथ,घोड़ों और सारथि को भस्म करके पृथ्वी को विदीर्ण करती हुई सी गिर पड़ी। कुरुकुल की कीर्ति बढ़ाने वाले वे दोनों वीर रथहीन हो एक दूसरे को देखते हुए युद्ध स्थल से हट गये। आपका पुत्र श्रुतकर्मा घबरा गया। वह विवित्सु के रथ पर जा चढ़ा और शतनीक भी तुरंत ही प्रतिविन्ध्य के रथ पर चला गया। दूसरी ओर शकुनि अत्यन्त कुपित हो अपने तीखे बाणों से सुतसोम को घायल करके भी उसे विचलित न कर सका। ठीक उसी तरह,जैसे जल का प्रकाव पर्वत को नहीं हिला सकता।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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