महाभारत आश्वमेधिक पर्व अध्याय 23 श्लोक 16-24
त्रयोविंश (23) अध्याय: आश्वमेधिक पर्व (अनुगीता पर्व)
यह सुनकर व्यान पूर्ववत् चलने लगा। तब समान ने पुन: कहा- ‘मैं जिस कारण से सब में श्रेष्ठ हूँ, वह बताता हूँ सुनो।
‘मेरे लीन होने पर प्राणियों के शरीर में स्थित सभी प्राण लीन हो जाते हैं तथा मेरे संचरित होने पर सब के सब संचार करने लगते हैं। इसलिये मैं ही सबसे श्रेष्ठ हूँ। देखो, अब मैं लीन हो रहा हूँ (फिर तुम्हारा भी लय हो जाएगा)’।
ब्राह्मण कहते हैं- यह कहकर समान कुछ देर के लिये लीन हो गया और पुन: पूर्ववत् चलने लगा। उस समय प्राण, अपान, व्यान और उदान ने उससे कहा- ‘समान! तुम हम लोगों से श्रेष्ठ नहीं हो, केवल व्यान ही तुम्हारे वश में है’।
यह सुनकर समान पूवर्वत् चलने लगा। तब उदान ने उससे कहा- ‘मैं ही सबसे श्रेष्ठ हूँ, इसका क्या कारण है? यह सुनो।
‘मेरे लीन होने पर प्राणियों के शरीर में स्थित सभी प्राण लीन हो जाते हैं तथा मेरे संचरित होने पर सब के सब संचार करने लगते हैं। इसलिये मैं ही सबसे श्रेष्ठ हूँ। देखो, अब मैं लीन हो रहा हूँ (फिर तुम्हारा भी लय हो जाएगा)’।
यह सुनकर उदान कुछ देर के लिये लीन हो गया और पुन: चलने लगा। तब प्राण, अपान, समान और व्यान ने उससे कहा- ‘उदान! तुम हम लोगों से श्रेष्ठ नहीं हो। केवल व्यान ही तुम्हारे वश में है’।
ब्राह्मण कहते हैं- तदनन्तर वे सभी प्राण ब्रह्माजी के पास एकत्र हुए। उस समय उन सबसे प्रजापति ब्रह्मा ने कहा- ‘वायुगण! तुम सभी श्रेष्ठ हो। अथवा तुम में से कोई भी श्रेष्ठ नहीं है। तुम सबका धारण रूप धर्म एक दूसरे पर अवलम्बित है।
‘सभी अपने अपने स्थान पर श्रेष्ठ हो और सबका धर्म एक दूसरे पर अवलम्बित है।’ इस प्रकार वहाँ एकत्र हुए सब प्राणों से प्रजापति ने फिर कहा-
‘एक ही वायु स्थिर और अस्थिर रूप से विराजमान है। उसी के विशेष भेद से पाँच वायु होते हैं। इस तरह एक ही मेरा आत्मा अनेक रूपों में वृद्धि को प्राप्त होता है।
‘तुम्हारा कल्याण हो। तुम कुशलपूर्वक जाओ और एक दूसरे के हितैषी रहकर परस्पर की उन्नती में सहायता पहुँचाते हुए एक दूसरे को धारण किये रहो’।
इस प्रकार श्रीमहाभारत आश्वमेधिक पर्व के अन्तर्गत अनुगीतापर्व में ब्राह्मण गीताविषयक तेईसवाँ अध्याय पूरा हुआ।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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