महाभारत आश्वमेधिक पर्व अध्याय 26 श्लोक 16-18
षड्विंश (26) अध्याय: आश्वमेधिक पर्व (अनुगीता पर्व)
महाभारत: आश्वमेधिक पर्व: षड्विंश अध्याय: श्लोक 16-18 का हिन्दी अनुवाद
जो व्रत और कर्मों का त्याग करके केवल ब्रह्म मे स्थित है, वह ब्रह्म स्वयप होकर संसार में विचरता रहता है, वही मुख्य ब्रह्मचारी है।
ब्रह्म की उसकी समिधा है, ब्रह्म ही अग्रि है, ब्रह्म से ही वह उत्पन्न हुआ है, ब्रह्म ही उसका जल और ब्रह्म ही गुरु है। उसी चित्तवृतियाँ सदा ब्रह्म में ही लीन रहती हैं।
विद्वानों ने इसी को सूक्ष्म ब्रह्मचर्य बतलाया है। तत्त्वदर्शी का उपदेश पाकर प्रबुद्ध हुए आत्मज्ञानी पुरुष इस ब्रह्मयर्च के स्वरूप को जानकर सदा उसका पालन करते रहते हैं।
इस प्रकार श्री महाभारत आश्वमेधिकपर्व के अन्तर्गत अनुगीता पर्व में ब्राह्मणगीताविषयक छब्बीसवाँ अध्याय पूरा हुआ।
« पीछे | आगे » |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
|