महाभारत वन पर्व अध्याय 285 श्लोक 1-15
==पन्चाशीत्यधिकद्वशततम
(285) अध्याय: वन पर्व (रामोख्यान पर्व )==
श्रीराम और रावण की सेना का द्वन्द्व युद्ध मार्कण्डेयजी कहते हैं- युधिष्ठिर ! जब वानर सैनिक शिविर में प्रवेश करने लगे, उस समय रावण की सेवा में रहने वाले पर्वर्ण, पतन, खर, क्रोधवश, हरि, प्ररुज, अरुज, और प्रघस आदि पिशाच तथा अधम राक्षसों के अनेक दलों ने ओर उनपर धावा बोल दिया। वे दुरात्मा निशाचर अनतर्धान विद्या से अदृश्य होकर आक्रमण कर रहे थे। विभीषण उस विद्या के जानकार थे, अतः उन्होंने उन राक्षसों की अन्तर्धान शक्ति को नष्ट कर दिया।। फिर तो वे सभी राक्षस वानरों के दृष्टि में आ गये। राजन् ! वानर बलवान् तो थे ही, वे दूर तक उछलकर जाने की शक्ति रखते थे। वे सब ओर से कूद-कूद कर उन्हें मारने लगे। उनकी मार खकर वे सभी राक्षस प्राणशून्य होकर पृथ्वी पर गिर पड़े। रावण के लिये यह बात असह्य हो उठी। वह पिशाचों तथा राक्षसों की भयंकर सेना से घिरा हुआ दल-बल के साथ लंका से बाहर निकला। वह दूारे शुक्राचार्य के समान युद्धशास्त्र के विधान का ज्ञाता था। उसने शुक्राचार्य के मत के अनुसार व्यूह रचना करके सब वानरों को घेर लिया। श्रीरामचन्द्रजी ने जब देखा कि दशमुख रावण व्यूहाकार सेना को साथ ले नगर से बाहर निकल रहा है, तब उन्होंने भी उस निशाचर के विरुद्ध बृहस्पति की बतायी हुई रीति से अपनी सेना का व्यूह बनाया। तदनन्तर वहाँ पहुँचकर रावण श्रीरामचन्द्रजी के साथ युद्ध करने लगा। दूसरी ओर लक्ष्मण ने भी इन्द्रजीत के साथ युद्ध करना प्रारम्भ किया। सुग्रीव ने विस्पाक्ष के साथ युद्ध किया। निखर्वट नामक राक्षस तार नामक वानर से जा भिड़ा। नल ने निशाचर तुण्ड का सामना किया तथा पटुश नामक राक्षस पनस वानर के साथ युद्ध करने लगा। जो जिसे अपने जोड़ का समझता था, उसी के साथ उसकी भिडन्त हुई। सब लोग युद्ध के समय अपने बाहुबल का आश्रय ले शत्रु का सामना करते थे। पूर्वकाल में देवताओं असौर असुरों में जैसा भयंकर तथा रोमांचकारी युद्ध हुआ था, उसी प्रकार वानरों और निशाचरों का वह युद्ध भयानक रूप से बढ़ता जा रहा था। वह संग्राम कायरों के भय को बढ़ाने वाला था। रावण ने शक्ति, शूल और खंग की वर्षा करके श्रीरामचन्द्रजी को बहुत पीड़ा दी तथा श्रीरघुनाथजी ने भी लोहे के बने हुए तीखेबाणों द्वारा रावण को अत्यन्त पीडि़त किया। इसी प्रकार युद्ध के लिए उद्यत रहने वाले इन्द्रजित् को लक्ष्मण ने मर्मभेदी बाणों द्वारा घायल किया और इन्द्रजित् ने सुमित्रानन्दन लक्ष्मण को अनेक बाणों द्वारा बींध डाला। इधर विभीषण प्रहस्त पर और प्रहस्त विभीषण पर पंखयुक्त तीखे बाणों की वर्षा करने लगे। उन दोनों में से कोई भी व्यथा अनुभव नहीं करता था। बड़े-बड़े अस्त्र धारण करने वाले उन बलवान् वीरों का वह संग्राम इतना भयंकर था कि उससे तीनों लोकों के समस्त चराचर प्राणी व्यथित हो उठे।
इस प्रकार श्रीमहाभारत वनपर्व के अनतर्गत रामोख्यान पर्व में राम रावण द्वन्द्वयुद्ध विषयक दो सौ पचासीवाँ अध्याय पूरा हुआ।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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