महाभारत शान्ति पर्व अध्याय 69 श्लोक 58-73

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एकोनसप्ततिम (69) अध्याय: शान्ति पर्व (राजधर्मानुशासन पर्व)

महाभारत: शान्ति पर्व: एकोनसप्ततिम अध्याय: श्लोक 58-73 का हिन्दी अनुवाद

इसी प्रकार राजा को चाहिये कि शक्ति,ऋष्टि और प्रास आदि सब प्रकार के आयुधों, कवचों तथा ऐसी ही अन्य आवश्यक वस्तुओं का संग्रह करावे। सब प्रकार के औषध, मूल ,फूल तथा विष का नाश करने वाले,घाव पर पट्टी करने वाले, रोगों को निवारण करने वाले और कृत्या का नाश करने वाले-इन चार प्रकार के वैद्यों का विशेष रूप से संग्रह करे। साधारण स्थिति में राजा को नटों, नर्तकों, पहलवानों तथा इन्द्रजाल दिखाने वालों को भी अपने यहाँ आश्रय देना चाहिये, क्यों कि ये राजधानी की शोभा बढ़ाते हैं और सबको अपने खेलों से आनन्द प्रदान करते हैं। यदि राजा को अपने किसी नौकर से ,मन्त्री से ,पुरवासियों से अथवा किसी पड़ोसी राजा से कोई संदेह हो जाय तो समयोचित उपायों द्वारा उन सबको अपने वश में कर ले। राजेन्द्र! जब कोई अभीष्ट कार्य पूरा हो जाय तो उसमे सहयोग करने वालों का बहुत-से धन, यथायोग्य पुरस्कार तथा नाना प्रकार के सान्त्वनापूर्ण मधुर वचन के द्वारा सत्कार करना चाहिये। कुरूनन्दन! राजा शत्रु को ताड़ना आदि के द्वारा खित्र कर के अथवा उसका वध करके फिर उस वंश में हुए राजा का जैसा शास्त्रों में बताया गया है, उसके अनुसार दान- मानादि द्वारा सत्कार करके उससे उऋण हो जाय। कुरूनन्दन! राजा को उचित है कि सात वस्तुओं की अवश्य रक्षा करे। वे सात कौन है? यह मुझ से सुनो। राजा का अपना शरिर, मन्त्री, कोश, दण्ड(सेना),मित्र, राष्ट्र और नगर-ये राज्य के सात अंग हैं, राजा को इन सबका प्रयत्नपूर्वक पालन करना चाहिये। पुरूष सिंह! जो राजा छः गुण, तीन वर्ग और तीन परम वर्ग-इन सबको अच्छी तरह जानता है, वही इस पृथ्वी का उपभोग कर सकता है। युधिष्ठिर! इनमेंसे जो छः गुण कहे गये हैं, उनका परिचय सुनो, शत्रु से संधि कर के शान्ति से बैठ जाना ,शत्रु पर चढ़ाई करना, वैर करके बैठ रहना, शत्रु को डराने के लिये आक्रमण का प्रदर्शन मात्र करके बैठ जाना, शत्रुओं में भेद डलवा देना तथा किसी दुर्ग या दुर्जय राजा का आश्रय लेना। जिन वस्तुओ को त्रिवर्ग के अन्तर्गत बताया गया हैं, उनको भी यहाँ एकचित्त होकर सुनो। क्षय, स्थान और वृद्धि- ये ही त्रिवर्ग हैं तथा धर्म, अर्थ और काम- इनको परम त्रिवर्ग कहा गया हैं। इन सबका समयानुसार सेवन करना चाहिये। राजा धर्म के अनुसार चले तो वह पृथ्वी का दीर्घकाल तक पालन कर सकता है। पृथापुत्र युधिष्ठर! तुम्हारा कल्याण हो । इस विषय में साक्षात् बृहस्पति जी ने जो दो श्लोक कहे हैं, उन्हें भी तुम सनो। ’सारे कर्तव्यों को पूरा करके पृथ्वी का अच्छी तरह पालन तथा नगर एवं राष्ट्र की प्रजा का संरक्षण करने से राजा परलोक में सुख पाता है। ’जिस राजा ने अपनी प्रजा का अच्छी तरह पालन किया हैं, उसे तपस्या से क्या लेना हैं? उसे यज्ञों का भी अनुष्ठान करने की क्या आवश्यकता हैं? वह तो स्वयं ही सम्पूर्ण धर्मों का ज्ञाता हैं’।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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