पंचसप्ततितम (75) अध्याय: शान्ति पर्व (राजधर्मानुशासन पर्व)
महाभारत: शान्ति पर्व: पंचसप्ततितम अध्याय: श्लोक 31-37 का हिन्दी अनुवाद
धर्मांत्मा राजा राज्य पाने के अनन्तर किसी को दान से, किसी को बल से और किसी को मधुर वाणी द्वारा सब ओर से अपने वश में कर ले।
जीवन-निर्वाह का कोई उपाय न होने के कारण जो भय से पीडि़त रहते हैं, ऐसे कुलीन एवं विद्वान् पुरूष जिस राजा का आश्रय लेकर संतुष्ट हो प्रतिष्ठापूर्वक रहने लगते हैं, उस राजा के लिये इससे बढ़कर धर्मं की बात और क्या होगी? युधिष्ठिर ने पूछा-तात ! स्वर्ग-प्राप्ति का उत्तम साधन क्या है? उससे कौन-सी उत्तम प्रसन्नता प्राप्त होती हैं? तथा उसकी अपेक्षा महान् ऐश्वर्य क्या हैं? यदि आप इन बातों को जानते हैं तो मुझे बताइये। भीष्मजी ने कहा-राजन् ! भय से डरा हुआ मनुष्य जिसके पास जाकर एक क्षण के लिये भी भलीभाँति शान्ति पा लेता हैं, वही हम लोगों में स्वर्गलोक की प्राप्ति का सबसे बड़ा अधिकारी हैं, यह मैं तुमसे सच्ची बात कहता हूँ। इसलिये कुरूश्रेष्ठ ! तुम्हीं प्रसन्नतापूर्वंक कुरूदेश की प्रजा के राजा बनो। सत्पुरूषों की रक्षा तथा दुष्टों का संहार करो और इस प्रकार अपने कर्तव्य का पालन करके स्वर्गलोक पर विजय प्राप्त कर लो। तात! जैसे सब प्राणी मेघ के और पक्षी स्वादिष्ट फलवाले वृक्ष के सहारे जीवन-निर्वाह करते हैं, उसी प्रकार साधु पुरूषों सहित समस्त सुहृद्गण तुम्हारे आश्रय में रहकर अपनी जीविका चलावें। जो राजा निर्भय, शूरवीर, प्रहार करने में कुशल, दयालु, जितेन्द्रिय, प्रजावत्सल और दानी होता हैं, उसी का आश्रय लेकर मनुष्य जीवन-निर्वाह करते हैं।
इस प्रकार श्रीमहाभारत शान्ति पर्वं के अन्तर्गत राजधर्मानुशासनपर्वं में पचहत्तरवाँ अध्याय पूरा हुआ।
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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