चतुस्त्रिंशदधिकशततम (134) अध्याय: उद्योग पर्व (भगवद्-यान पर्व)
महाभारत: उद्योग पर्व: चतुस्त्रिंशदधिकशततम अध्याय: श्लोक 18-33 का हिन्दी अनुवाद
यदि मैं यह देखूँ कि तू शत्रु से मीठी-मीठी बातें करता तथा उसके पीछे-पीछे जाता है तो मेरे हृदय में क्या शांति मिलेगी ? इस कुल में कभी कोई ऐसा पुरुष नहीं उत्पन्न हुआ, जो दूसरे के पीछे-पीछे चला हो । तात ! तू दूसरे का सेवक होकर जीवित रहने के योग्य नहीं है। स्वयं विधाता ने जिसकी सृष्टि की है, प्राचीन और अत्यंत प्राचीन पुरुषों ने जिसका वर्णन किया है, परवर्ती और अतिपरवर्ती सत्पुरुष जिसका वर्णन करेंगे तथा जो चिरंतन एवं अविनाशी है, उस सनातन और उत्तम क्षत्रिय-हृदय को मैं जानती हूँ। इस जगत में जो कोई भी क्षत्रिय उत्पन्न हुआ है और क्षत्रिय धर्म को जानने वाला है, वह भय से अथवा आजीविका की ओर दृष्टि रखकर भी किसी के सामने नतमस्तक नहीं हो सकता। सदा उद्यम करे, किसी के आगे सिर न झुकावे । उद्यम ही पुरुषार्थ है । असमय में नष्ट भले ही हो जाये, परंतु किसी के आगे नतमस्तक न हो। संजय ! महामनस्वी क्षत्रिय मदमत्त हाथी के समान सर्वत्र निर्भय विचरण करे और सदा ब्राह्मणों को तथा धर्म को ही नमस्कार करे। क्षत्रिय ससहाय हो अथवा असहाय, वह अन्य वर्ण के लोगों को काबू में रखता और समस्त पापियों को दंड देता हुआ जीवनभर वैसा ही उद्यमशील बना रहे।
इस प्रकार श्रीमहाभारत उद्यगपर्व के अंतर्गत भगवादयानपर्व में विदुला का अपने पुत्र को उपदेश विषयक एक सौ चौंतीसवाँ अध्याय पूरा हुआ।
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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