एकोनचत्वारिंशदधिकशततम (139) अध्याय: उद्योग पर्व (भगवद्-यान पर्व)
महाभारत: उद्योग पर्व: एकोनचत्वारिंशदधिकशततम अध्याय: श्लोक 17-22 का हिन्दी अनुवाद
परंतु तुम पांडवों से युद्ध ठानकर सुख, राज्य, मित्र और धन सब कुछ खोकर बड़े भारी संकट में पड़ जाओगे। तपस्या एवं घोर व्रत का पालन करने वाली सत्यवादिनी देवी द्रौपदी जिनकी विजय की कामना करती है, उन पांडुनंदन युधिष्ठिर को तुम कैसे जीत सकोगे? भगवान श्रीकृष्ण जिनके मंत्री और समस्त शस्त्रधारियों में श्रेष्ठ अर्जुन जिनके भाई हैं, उन पांडुपुत्र युधिष्ठिर को तुम कैसे जीतोगे ? धैर्यवान और जितेंद्रिय ब्राह्मण जिनके सहायक हैं, उन उग्र तपस्वी वीर पांडव को तुम कैसे जीत सकोगे ? जिस समय अपने बहुत से सुहृद संकट के समुद्र में डूब रहे हों, उस समय कल्याण की इच्छा रखने वाले एक सुहृद का जो कर्तव्य है– उस अवसर पर उसे जैसी बात कहनी चाहिए, वह यद्यपि पहले कही जा चुकी है, तथापि मैं उसे दुबारा कहूँगा। राजन् ! युद्ध में तुम्हें कोई लाभ नहीं होगा । तुम कुरुकुल की वृद्धि के लिए उन वीर पांडवों के साथ संधि कर लो । पुत्रों, मंत्रियों तथा सेनाओं सहित यमलोक में जाने की तैयारी न करो।
इस प्रकार श्रीमहाभारत उद्योगपर्व के अंतर्गत भगवादयानपर्व में भीष्म–द्रोण वाक्य विषयक एक सौ उन्तालीसवाँ अध्याय पूरा हुआ।
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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