त्रिचत्वारिंशदधिकशततम (143) अध्याय: उद्योग पर्व (भगवद्-यान पर्व)
महाभारत: उद्योग पर्व: त्रिचत्वारिंशदधिकशततम अध्याय: श्लोक 45-51 का हिन्दी अनुवाद
“मैं” अन्यान्य नरेश तथा यह सारा क्षत्रिय समाज सब के सब गाण्डीव की अग्नि में प्रवेश कर जायेंगे, इसमे संशय नही है। श्रीकृष्ण बोले-कर्ण! निश्चय ही अब इस पृथ्वी का विनाशकाल उपस्थित हो गया है । इसीलिये मेरी बात तुम्हारे हृदय तक नही पहूंचती है। तात ! जब समस्त प्राणियों का विनाश निकट आ जाता है, तब अन्याय भी न्याय के समान प्रतीत होकर ह्रदय से निकल नही पाता है।कर्ण बोला– महाबाहु श्रीकृष्ण ! वीर क्षत्रियों का विनाश करने वाले इस महायुद्धसे पार होकर यदि हम जीवित बच गये तो पुन: आपका दर्शन करेंगे। अथवा श्रीकृष्ण ! अब हमलोग स्वर्गमें ही मिलेंगे, यह निश्चितहै । वहाँ आजकी ही भाँति पुन: आपसे हमारी भेंट होगी। संजय कहते हैं- ऐसा कहकर कर्ण भगवान श्रीकृष्ण का प्रगाढ़ आलिंगन करके उनसे विदा ले रथ के पिछले भाग से उतर गया। तदनन्तर अपने सुवर्णभूषित रथपर आरूढ़ हो राधा-नन्दन कर्ण दीनचित्त होकर हमलोगों के साथ लौट आया।
इस प्रकार श्रीमहाभारत उद्योग पर्व के एक सौ तैंतालीसवाँ अध्याय पूरा हुआ।
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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