दशाधिकशततम (110) अध्याय: शान्ति पर्व (राजधर्मानुशासन पर्व)
महाभारत: शान्ति पर्व: दशाधिकशततम अध्याय: श्लोक 18-30 का हिन्दी अनुवाद
जो सब देवताओं को प्रणाम करते और सभी धर्मों को सुनते हैं, जिनमें श्रद्धा और शान्ति विद्यमान हैं, वे सम्पूर्ण दु:खों से पार हो जाते हैं ।जो दूसरों से सम्मान नहीं चाहते, जो स्वयं ही दूसरों को सम्मान देते हैं और सम्मानिय पुरुषों को नमस्कार करते हैं, वे दुर्लभ्य संकटों से पार हो जाते हैं। जो संतान की इच्छा रखकर प्रत्येक तिथि पर विशुद्ध हृदय से पितरों का श्राद्ध करते हैं, वे दुर्गम विपति से छुटकारा पा जाते हैं। जो क्रोध को काबू में रखते हैं, क्रोधी मनुष्यों को शान्त करते और स्वयं किसी भी प्राणी पर कुपित नहीं होते हैं, वे दुर्लभ्य संकटो से पार हो जाते हैं। जो मानव जन्म से ही सदा के लिये मधु, मांस और मदिरा का त्याग कर देते हैं, वे भी दुस्तर दु:खों से छूट जाते हैं। जिनका भोजन स्वाद के लिये नहीं, जीवनयात्रा का निर्वाह करने के लिये होता हैं, जो विषयवासना की तृप्ति के लिये नहीं, संतान की इच्छा से मैथून में प्रवृत होते हैं तथा जिनकी वाणी केवल सत्य बोलने के लिये है, वे समस्त संकटों से पार हो जाते हैं। जो समस्त प्राणियों के स्वामी तथा जगत के स्वामी तथा जगत की उत्पत्ति और प्रलय के हेतु भूत भगवान नारायण में भवितभाव रखते हैं, वे दुस्तर दु:खों से तर जाते हैं। युधिष्ठिर ! ये जो कमल पुष्प के समान कुछ-कुछ लाल रंग के नेत्रों से सुशोभित पीताम्बरधारी महाबाहु श्रीकृष्ण हैं, जो तुम्हारे सुहद भाई, मित्र और सम्बन्धी भी हैं, यही साक्षात नारायण हैं। इनका स्वरुप अचिन्य हैं। ये पुरुषोतम भगवान गोविन्द इन सम्पूर्ण लोकों को इच्छापूर्वक चमड़े की भांति आच्छादित किये हुए हैं। पुरुषप्रवर युधिष्ठिर ! वे ही ये दुर्घर्ष वीर पुरुषोतम श्रीकृष्ण साक्षात वैकुण्ठधाम के निवासी श्रीविष्णु हैं। राजन ! ये इस समय तुम्हारे और अर्जुन के प्रिय तथा हित साधन में संलग्न हैं। जो भक्त पुरुष यहां इन भगवान्श्री श्रीहरि-नारायण देव की शरण लेते हैं, वे दुस्तर संकटों से तर जाते हैं। इस विषय में कोई संशय नहीं हैं। भारत ! जो इन कमलनयन श्रीकृष्ण को सम्पूर्ण भक्तिभाव से अपने सारे कर्म समर्पित कर देते हैं, वे दुर्गम संकटों को लांघ जाते हैं।। जो यज्ञों द्वारा अराधना के योग्य हैं, उन साधुप्रतिपालक विश्वविधाता भगवान ब्रह्मा को जो नमस्कार करते हैं, वे समस्त दु:खों से छुटकारा पा जाते हैं। विष्णु, इन्द्र, शिव तथा लोकपितामह ब्रह्मा नाना प्रकार के स्तोत्रों द्वारा जिनकी स्तुती करते हैं, उन देवाधिदेव परमेश्वर की जो सदा आराधना करते हैं, वे दुर्गम संकटों से पार हो जाते हैं।। निष्पाप युधिष्ठिर ! इस प्रकार मैंने यहां संक्षेप से उस कर्तव्य का प्रतिपादन किया है, जिसका पालन करने से मनुष्य इहलोक और परलोक में समस्त दु:खों से छुटकारा पा जाते हैं।
इस प्रकार श्रीमहाभारत शान्तिपर्वके अन्तगर्त राजधर्मानुशासनपर्वमें दुर्गातितरण नामक एक सौ दसवां अध्याय पूरा हुआ।
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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