महाभारत भीष्म पर्व अध्याय 16 श्लोक 1-21
षोडश (16) अध्याय: भीष्म पर्व (श्रीमद्भगवद्गीता पर्व)
दुर्योधन की सेना का वर्णन
संजय कहते हैं- राजन ! तदनन्तर रात्रि के अन्त में सबेरा होते ही ‘रथ जोतो, युद्ध के लिये तैयार हो जाओ।‘ इस प्रकार जोर-जोर से बोलने वाले राजाओं का महान कोलाहल सब ओर छा गया। भरतनन्दन ! शंख और दुन्दुभियों की ध्वनि, वीरों के सिंहनाद, घोड़ों की हिनहिनाहट, रथ के पहियों की घरघराहट, हाथियों की गर्जना तथा गर्जते हुए योद्धाओं के सिंहनाद करने, ताल ठोकने और जोर-जोर से बोलने आदि की तुमुल ध्वनि सब ओर व्याप्त हो गयी। महाराज ! सूर्योदय होते होते कौरवों और पाण्डवों की वह सारी विशाल सेना सम्पूर्ण रूप से युद्ध के लिये तैयार हो उठी। राजेन्द्र ! आपके पुत्रों तथा पाण्डवों के दुर्दम्य अस्त्र-शस्त्र तथा कवच चमक उठे। भारत ! तब सूर्योदय के प्रकाश में आपकी और शत्रुओं की सारी सेनाएँ शस्त्रों से सुसज्जित तथा अत्यन्त विशाल दिखायी देने लगीं। जाम्बूनद नामक सुवर्ण से विभूषित आपके हाथी और रथ बिजलियों सहित मेघों की घटा के समान प्रकाशमान दिखायी देते थे। बहुसंख्यक रथों की सेनाएं नगरों के समान दृष्टिगोचर हो रहीं थीं। उनके बीच आपके ताऊ भीष्मजी, पूर्ण चन्द्रमा के समान प्रकाशित हो रहे थे। आपकी सेना के सैनिक धनुष, खडंग, ऋष्टि,गदा,शक्ति और तोमर आदि चमकीले अस्त्र-शस्त्र लेकर उन सेनाओं में खडे़ थे। प्रजानाथ ! हाथी, घोडे़, पैदल और रथी, शत्रुओं को बांधने के लिये जाल से बनकर एक-एक जगह सैकड़ों और हजारों की संख्या में खडे़ थे। अपने और शत्रुओं के अनेक प्रकार के ऊँचे-ऊँचे चमकीले ध्वज हजारों की संख्या में दृष्टिगोचर हो रहे थे। सुवर्णमय आभूषण पहने, मणियों के अलंकारों से विचित्र अंगोंवाले, सहस्त्रों हाथीसवार सैनिक अपनी प्रभा से शिखाओं सहित प्रज्वलित अग्नि के समान प्रकाशित हो रहे थे। जैसे इन्द्रभवन में देवराज इन्द्र के चमकीले ध्वज फहराते रहते हैं, उसी प्रकार कौरव-पाण्डव सेना के ध्वज भी फहरा रहे थे। दोनों सेनाओं के प्रमुख वीर युद्ध की अभिलाषा रखकर कवच आदि से सुरक्षित दिखायी दे रहे थे। उनके हथियार उठे हुए थे। वे हाथ में दस्ताने और पीठ पर तरकस बांधे सेना के मुहाने पर खडे़ हुए भूपालगण अदभूत शोभा पा रहे थे। उनकी आंखें बैलों की आंखों के समान बड़ी-बड़ी दिखायी दे रही थीं। सुबलपुत्र शकुनि, शल्य, सिन्धुनरेश जयद्रथ, विन्दअनुविन्द, केकयराजकुमार, काम्बोजराज सुदक्षिण, कलिडगराज श्रुतायुध, राजा जयत्सेन, कौशलनरेश बृहद्वल तथा भोजवंशी कृतवर्मा- ये दस पुरूषसिंह शूरवीर क्षत्रिय एक-एक अक्षौहिणी सेना के अधिनायक थे। इनकी भुजाएं परिधों के समान मोटी दिखायी देती थीं। इन सबने बडे़-बडे़ यज्ञ किये थे और उनमें प्रचुर दक्षिणाएँ दी थीं। ये तथा और भी बहुत से नीतिज्ञ महारथी राजा और राजकुमार दुर्योधन के वश में रहकर कवच आदि से सुसज्जित हो अपनी-अपनी सेनाओं में खडे़ दिखायी देते थे। इन सबने काले मृगचर्म बाँध रखे थे। सभी बलवान और युद्धभूमि में सुशोभित होने वाले थे और सबने दुर्योधन के हित के लिए बडे़ हर्ष और उल्लास के साथ ब्रह्मलोक की दीक्षा ली थी। ये सामर्थ्यशाली दस वीर अपने सेनापतित्व में दस सेनाओं को लेकर युद्ध के लिये तैयार खडे़ थे। ग्यारवीं विशाल वाहिनी दुर्योधन की थी, जिनमें अधिकांश कौरव योद्धा थे। यह कौरव सेना अन्य सब सेनाओं के आगे खड़ी थी। इसके अधिनायक थे शान्तनुन्दन भीष्म।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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