पञ्चदशाधिकशततम (115) अध्याय: शान्ति पर्व (राजधर्मानुशासन पर्व)
महाभारत: शान्ति पर्व: पञ्चदशाधिकशततम अध्याय: श्लोक 19-23 का हिन्दी अनुवाद
जिसका देश दुखी न हो तथा सदा समीपवर्ती बना रहे, जो स्वयं भी छोटे विचार का न होकर सदा सन्मार्ग का अवलम्बन करने वाला हो, वही राजा राज्य का भागी होता है। विश्वासपात्र, संतोषी तथा खजाना बढ़ाने का सतत प्रयत्न करने वाले, खजांचियों के द्वारा जिसके कोष की सदा वृद्धि हो रही हो, वही राजाओं में श्रेष्ठ है। यदि लोभवश फूट न सकने वाले, विश्वासपात्र, संग्रही, सुपात्र एवं निर्लोभ मनुष्य अन्नादि भण्डार की रक्षा में तत्पर हों तो उसकी विशेष उन्नति होती है। जिसके नगर में कर्म के अनुसार फल की प्राप्ति का प्रतिपादन करने वाले शंख-लिखित मुनि के बनाये हुए न्याय-व्यवहार का पालन होता देखा जाता है, वह राजा धर्म के फल का भागी होता है। जो राजा धर्म को जानता और अपने यहां अच्छे लोगों को जुटाकर रखता है तथा अवसर के अनुसार संधि, विग्रह, यान, आसन, द्वैधीभाव एवं समाश्रय नामक छ: गुणों का उपयोग करता है, वह धर्म का फल का भागी होता है।
इस प्रकार श्रीमहाभारत शान्ति पर्व के अन्तगर्त राजधर्मानुशासनपर्वमें एक सौ पन्द्रहवां अध्याय पूरा हुआ।
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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