श्रीमद्भागवत महापुराण दशम स्कन्ध अध्याय 1 श्लोक 1-10
दशम स्कन्ध: प्रथम अध्याय (पूर्वाध)
श्रीमद्भागवत महापुराण: दशम स्कन्ध: प्रथम अध्याय: श्लोक 1-10 का हिन्दी अनुवाद
राजा परीक्षित ने पूछा—भगवन! आपने चन्द्रवंश और सूर्यवंश के विस्तार तथा दोनों वंशों के राजाओं का अत्यंत अद्भुत चरित्र वर्णन किया है। भगवान् के परम प्रेमी मुनिवर! आपने स्वभाव से ही धर्मप्रेमी यदुवंश का भी विशद वर्णन किया। अब कृपा करके उसी वंश में अपने अंश श्री बलराम जी के साथ अवतीर्ण हुए भगवान् श्रीकृष्ण के परम पवित्र चरित्र भी हमें सुनाइये। भगवान् श्रीकृष्ण समस्त प्राणियों के जीवनदाता एवं सर्वात्मा हैं। उन्होंने यदुवंश में अवतार लेकर जो-जो लीलायें कीं, उनका विस्तार से हमलोगों को श्रवण कराइये। जिनकी तृष्णा की प्यास सर्वदा के लिए बुझ चुकी हैं, वे जीवनमुक्त महापुरुष जिसका पूर्ण प्रेम से अतृप्त रहकर गान किया करते हैं, मुमुक्षुजनों के लिए जो भवरोग का रामबाण औषध है तथा विषयी लोगों के लिए भी उनके कान और मनको परम अह्ल्लाद देने वाला है, भगवान् श्रीकृष्णचन्द्र के ऐसे सुन्दर, सुखद, रसीले, गुणानुवाद से पशुघाती अथवा आत्मघाती मनुष्य के अतिरिक्त और ऐसा कौन है जो विमुख हो जाय, उससे प्रीति न करे ? (श्रीकृष्ण तो मेरे कुलदेव ही हैं।) जब कुरूक्षेत्र में महाभारत-युद्ध हो रहा था और देवताओं को भी जीत लेने वाले भीष्म पितामह आदि अति रथियों से मेरे दादा पाण्डवों का युद्ध हो रहा था, उस समय कौरवों की सेना उनके लिए अपार समुद्र के सामान थी—जिसमें भीष्म आदि वीर बड़े-बड़े मच्छों को भी निगल जाने वाले तिमिंगिल मच्छों की भाँति भय उत्पन्न कर रहे थे। परन्तु मेरे स्वनामधन्य पितामह भगवान् श्रीकृष्ण के चरण कमलों की नौका का आश्रय लेकर उस समुद्र को अनायास ही पार कर गए—ठीक वैसे ही जैसे कोई मार्ग में चलता हुआ स्वभाव से ही बछड़े के खुर का गड्ढा पार कर जाय। महाराज! मेरा यह शरीर—जो आपके सामने है तथा जो कौरव और पाण्डव दोनों ही वंशों का एकमात्र सहारा था—अश्वत्थामा के ब्रम्हास्त्र से जल चुका था। उस समय मेरी माता जब भगवान् की शरणमें गयीं, तब उन्होंने हाथ में चक्र लेकर मेरी माता के गर्भ में प्रवेश किया और मेरी रक्षा की। (केवल मेरी ही बात नहीं,) वे समस्त शरीरधारियों के भीतर आत्मारूप से रहकर अमृत्व का दान कर रहे हैं और बाहर काल रूप से रह कर मृत्यु का । मनुष्य के रूप में प्रतीत होना, यह तो उनकी एक लीला है। आप उन्हीं के ऐश्वर्य और माधुर्य से परिपूर्ण लीलाओं का वर्णन कीजिये। भगवन्! आपने अभी बतलाया था कि बलराम जी रोहिणी के पुत्र थे। इसके बाद देवकी के पुत्रों में भी आपने उनकी गणना की। दूसरा शरीर धारण किये बिना दो माताओं का पुत्र होना कैसे सम्भव है? असुरों को मुक्ति देने वाले और भक्तों को प्रेम वितरण करने वाले भगवान् श्रीकृष्ण अपने वात्सल्य-स्नेह से भरे हुए पिता का घर छोड़कर व्रज में क्यों चले गये? यदुवंश शिरोमणि भक्त वत्सल प्रभु ने नन्द आदि गोप—बंधुओं के साथ कहाँ-कहाँ निवास किया? ब्रम्हा और शंकर का भी शासन करने वाले प्रभु ने व्रज में तथा मधुपुरी में रहकर कौन-कौन सी लीलाएँ कीं ? और महाराज! उन्होंने अपनी माँ के भाई मामा कंस को अपने हाथों क्यों मार डाला ? वह मामा होने के कारण उनके द्वारा मारे जाने योग्य तो नहीं था। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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