महाभारत वन पर्व अध्याय 288 श्लोक 20-26
अष्टाशीत्यधिकद्विशततम (288) अध्याय: वन पर्व (रामोख्यान पर्व)
अनेक प्रकार की माया जानने वाले उस राक्षस को अदृश्य हुआ जान भगवान् श्रीराम उस स्थान पर आकर सब ओर से अपनी सेना की रक्षा करने लगे । तब इन्द्रजित् ने भगवान् श्रीराम तथा महाबली लक्ष्मण के सम्पूर्ण अंगों को देवताओं से वरदान के रूप में प्राप्त हुए बाणों द्वारा क्षत-विक्षत कर दिया। यद्यपि रावण पुत्र माया से तिरोहित हो जाने के कारण दिखायी नहीं देता था, तो भी शूरवीर श्रीराम और लक्ष्मण दोनों भाई उसके साथ युद्ध करते ही रहे । इन्द्रजित् ने पुरुषों में सिंह के समान पराक्रमी उन दोनों भाइयों के समस्त अंगों में रोषपूर्ण सैंकड़ों और हजारों बाणों की बारंबार वृष्टि की । वानरों ने देखा कि वह राक्षस छिपकर निरन्तर बाणों की झड़ी लगा रहा है, तब वे हाथों में बड़ी-बड़ी शिलाएँ लिये आकाश में उड़ गये और उसकी खोज करने लगे । रावण कुमार अपनी माया से आवृत होने के कारण स्वयं किसी दृष्टि में नहीं आता था; परंतु वह उन दोनों भाइयों को तथा सम्पूर्ण वानरों को भी निरन्तर अपने बाणों द्वारा घायल कर रहा था । वे दोनों बन्धु श्रीराम और लक्ष्मण ऊपर से नीचे तक बाणों से व्याप्त हो गये थे; अतः आकाश से गिरे हुए सूर्य और चन्द्रमा की भाँति इस पृथ्वी पर गिर पड़े।
इस प्रकार श्रीमहाभारत वनपर्व के अनतर्गत रामोख्यान पर्व में इन्द्रजित् युद्ध विषयक दो सौ अट्ठासीवाँ अध्याय पूरा हुआ।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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