अष्टचत्वारिंश (48) अध्याय: भीष्म पर्व (भीष्मवध पर्व)
महाभारत: भीष्म पर्व: अष्टचत्वारिंश अध्याय: श्लोक 21-43 का हिन्दी अनुवाद
कानों का परदा फाड़नेवाले डंके की आवाज से सारी रणभूमि गूंज उठी थी। अतः वहां अपने पुरूषार्थ को प्रकट करनेवाले किसी योद्धा कि बात मुझे नही सुनायी देती थी। वे लोग जो आपस में नाम-गोत्र आदि का परिचय देते थे, उसे भी मैं नही सुन पाता था। युद्ध में भीष्मजी के धनुष से छुटे हुए बाणों से समस्त योद्धा पीड़ित हो रहे थे। उन बाणों ने परस्पर सभी वीरो के ह्रदय कॅपा दिये थे। वह युद्ध अत्यन्त भयंकर, रामांचकारी तथा सबका व्याकुल कर देने वाला था। उसमें कोई पिता अपने पुत्र को भी पहचान नहीं पाता था। भीष्म के बाणों से पहिये टूट गये, जुआ कट गया और एकमात्र बचा हुआ रथका घोड़ा भी मारा गया। उस दशा में रथपर बैठा हुआ सारथीसहित वीर रथी भी उनके बाणों से आहत होकर स्वर्ग सिधारा। इस प्रकार उस समरांगण में रथहीन हुए सभी वीर भिन्न-भिन्न मार्गो से सब और दोड़ते दिखाई देते थे। किसी का हाथी मारा गया, किसी का मस्तक कट गया, किसी के मर्मस्थान विदीर्ण हो गये और किसी का घोड़ा ही नष्ट हो गया। जब भीष्मजी शत्रुओं का संहार कर रहे थे, उस समय (उनके सम्मुख आया हुआ) कोई भी ऐसा विपक्षी नही बचा, जो घायल न हुआ हो। इसी प्रकार उस महायुद्ध में श्वेत भी कौरवों का संहार कर रहे थे। उन्होनें सैकडो श्रेष्ठ रथी राजकुमारों का संहार कर डाला। भरतश्रेष्ठ! श्वेत ने अपने बाणों द्वारा बहुत-से रथियों के मस्तक काट डाले। उन्होनें सब और बाण मारकर कितने ही योद्धाओं के धनुष और बाजुबंदसहित भूजाएंकाट डाली। रथ के ईषादण्ड, रथ-चक्र, तुणीर और जुए भी छिन्न-भिन्न कर दिये। राजन् ! बहुमुल्य छत्र और पताकाएं भी उनके बाणों से खण्डित हो गयी। भरतनन्दन! श्वेत ने अश्वों, रथों और मनुष्यों के समुदायका तो वध किया ही; सैकडों हाथी भी मार गिराये। कुरूनन्दन ! हमलोग भी श्वेत भयसे महारथी भीष्म को अकेला छोड़कर भाग खडे़ हुए । इसीलिये इस समय जीवित रहकर महाराज का दर्शन कर रहे है। हम सभी कौरव श्वेत का बाण जहां तक पहुंच पाता था, उतनी दूरी को लांघकर युद्धभूमि में खडे़ हो दर्शक की भॉति शान्तनुनन्दन भीष्म को दख रहे थे।। उस महान् संग्राम में हमलोगों के लिये कातरताका समय आ गया था, तो भी अकेले परश्रेष्ठ भीष्म ही दीनतासे रहित हो मेरूपर्वत की भॉति अविचलभाव से खडे़ रहे थे। जैसे सर्दी के अन्त में सूर्यदेव धरती का जल सोखने लगते है, उसी प्रकार भीष्म समस्त सैनिकों के प्राणों का अपहरण-सा कर रहे थे। किरणों से सुशोभित सूर्यदेव की भॉति भीष्म बाणरूपी रश्मियों से शोभा पाते हुए वहां खडे़ थे। जैसे वज्रपाणि इन्द्र असुरों की संहार करते है, उसी प्रकार महाधनुर्धर भीष्म उस रणक्षेत्र में शत्रुओं का विनाश करते हुए बारंबार बाणसमुहों की वर्षा कर रहे थे। महाबली भीष्म जी अपने झुंड से बिछुडे़ हुए हाथी की भॉति आपकी सेना से विलग होकर उस रणभूमि में अत्यन्त भयंकर हो रहे थे; उनकी मार खाकर सम्पूर्ण शत्रु उन्हें छोड़कर भाग गये। परंतप ! श्वेत को पूवोक्तरूप से कौरव-सेना का संहार करते देख एकमात्र भीष्म ही उत्साहित और प्रफुल हो पाण्डवो को शोक में डालते हुए जीवन का मोह और भय छोड़कर उस महासमर में दुर्योधन के प्रिय कार्य में जुट गये। राजन् ! भीष्मजी ने पाण्डवों के बहुत-से सैनिक को मार गिराया। आपके पिता देवव्रत ने जब देखा कि सेनापति श्वेत हमारी सेना पर प्रहार कर रहे है, तब वे तुरन्त उनका सामना करने के लिये गये। श्वेत ने अपने असंख्य बाणों का जाल सा बिछाकर भीष्म को ढक दिया। तब भीष्म ने भी श्वेत पर बाणसमूहों की वर्षा की। वे दोनों वीर गर्जते हुए दो सांडो, मदसे उन्मत्त हुए दो गजराजों तथा क्रोध में भरे हुए दो सिंहों की भॉति एक दूसरे पर चोट करने लगे। तदनन्तर वे दोनों पुरूषश्रेष्ठ भीष्म और श्वेत अपने अस्त्रों द्वारा विपक्षी के अस्त्रों का निवारण करके एक दूसरे को मार डालने की इच्छा से युद्ध करने लगे। यदि श्वेत पाण्डव-सेना की रक्षा न करते तो भीष्मजी अत्यन्त क्रुद्ध होकर एक ही दिन में उसे भस्म कर डालते।
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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