पञ्चत्रिंशदधिकशततम (135) अध्याय: शान्ति पर्व (राजधर्मानुशासन पर्व)
महाभारत: शान्ति पर्व: पञ्चत्रिंशदधिकशततम अध्याय: श्लोक 1-16 का हिन्दी अनुवाद
- मर्यादा का पालन करने–कराने वाले कायव्यनामक दस्युकी सद्गगतिका वर्णन
सिद्धभीष्म जी कहते हैं– युधिष्ठिर ! जो दस्यु (डाकू) मर्यादा का पालन करता है, वह मरने के बाद दुर्गती में नहीं पड़ता। इस विषय में विद्वान पुरूष एक प्राचीन इतिहास का उदाहरण दिया करते हैं। कायव्यनाम से प्रसिद्ध एक निषद पुत्र नें दस्यु होने पर भी सिद्धि प्राप्त कर ली थी। वह प्रहारकुशल, शुरवीर, बुद्धिमान्, शास्त्रज्ञ, क्रूरतारहित, आश्रमवासियों के धर्म की रक्षा करने वाला, ब्राह्मणभक्त और गुरूपूजक था। वह क्षत्रिय पिता से एक निषादजाति की स्त्री के गर्भ से उत्पन्न हुआ था, अत: क्षत्रिय धर्म का निरन्तर पालन करता था। कायव्य प्रतिदिन प्रात:काल और सायंकाल के समय वन में जाकर मृगों की टोलियों को उत्तेजित कर देता था। वह मृगों की विभिन्न जातियों के स्वभाव से परिचित तथा उन्हें काबू में करने की कला को जानने वाला था। निषादों में वह सबसे निपुण था। उसे वन के सम्पूर्ण प्रदेशों का ज्ञान था। वह सदा पारियात्र पर्वत पर विचरने वाला तथा समस्त प्राणियों के धर्मों का ज्ञाता था । उसका बाण लक्ष्य बेधने में अचूक था । उसके सारे अस्त्र–शस्त्र सुदृढ़ थे। वह सैकड़ों मनुष्यों की सेना को अकेले ही जीत लेता था और उस महान वन में रहकर अपने अन्ध्ों और बहरे माता-पिता की सेवा-पूजा किया करता था। वह निषाद मधु, मांस, फल, मूल तथा नाना प्रकार के अन्नों दारा माता–पिता को सत्कारपूर्वक भोजन कराता था तथा दूसरे–दूसरे माननीय पुरूषों की भी सेवा-पूजा किया करता था। वह वन में रहने वाले वानप्रस्थ और संन्यासी ब्राह्मणों की पूजा करता और प्रतिदिन उनके घर में जाकर उनके लिए अन्न आदि वस्तुएं पहॅुचा देता था। जो लोग लुटेरे के घर का भोजन होने की आशंका से उसके हाथ से अन्न नही ग्रहण करते थे, उनके घरों में वह बड़े सबेरे ही अन्न और फल-मूल आदि भोजन–सामग्री रख जाता था। एक दिन मर्यादा का अतिक्रमण और भांति–भांति के क्रूरतापूर्ण कर्म करने वाले कई हजार डाकूओं ने उससे अपना सरदार बनने के लिए प्रार्थना की। डाकू बोले– तुम देश, काल और मुहूर्त के ज्ञाता, विद्वान, शूरवीर और दृढ़प्रतिज्ञ हो, इसलिये हम सब लोगों की सम्मति से तुम हमारे सरदार हो जाओ। तुम हमें जैसी–जैसी आज्ञा दोगे, वैसा–ही-वैसा हम करेंगे। तुम माता-पिता के समान हमारी यथोचित रीति से रक्षा करो। कायव्य ने कहा-प्रिय बन्धुओं ! तुम कभी स्त्री, डरपोक, बालक और तपस्वी की हत्या न करना। जो तुमसे युद्ध न कर रहा हो, उसका भी वध न करना स्त्रियों को कभी बलपूर्वक न पकड़ना। तुममें से कोई भी सभी प्राणियों के स्त्री वर्ग की किसी तरह भी हत्या न करे। ब्राह्मणों के हित का सदा ध्यान रखना। आवश्यकता हो तो उनकी रक्षा के लिये युद्ध भी करना। खेत की फसल न उखाड़ लाना, विवाह आदि उत्सवों में विध्न न डालना, जहां देवता, पितर और अतिथियों की पूजा होती हो, वहा कोई उपद्रव न खड़ा करना। समस्त प्राणियों में ब्राह्मण विशेष रूप से डाकूओं के हाथ से छुटकारा पाने का अधिकारी है। अपना सर्वस्व लगाकर भी तुम्हें उनकी सेवा-पूजा करनी चाहिये।
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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