महाभारत भीष्म पर्व अध्याय 51 श्लोक 1-30
एकपञ्चाशत्तम (51) अध्याय: भीष्म पर्व (भीष्मवध पर्व)
कौरव-सेना की व्यूह रचना तथा दोनों दलों में शंखध्वनि और सिंहनाद
संजय कहते है-महाराज ! उस अत्यन्त भयंकर अमेघ कौचव्यूह को अमिततेजस्वी अर्जुन के द्वारा सुरक्षित देख कर आपका पुत्र दुर्योधन आचार्य द्रोण, कृप, शल्य, भूरिश्रवा, विकर्ण, अश्वत्थामा और दुःशासन आदि सब भाईयो तथा वीरो ! आप सब लोग नाना प्रकार के अस्त्र-शस्त्रों के प्रहार में कुशल तथा युद्ध की कला में निपूर्ण है। आप सभी महारथी है। आपमें से प्रत्येक योद्धा रणक्षेत्र में सेनासहित पाण्डवों का वध करने में समर्थ है। फिर सब लोग मिलकर उनहे परास्त कर दे, इसके लिये तो कहना ही क्या है। भीष्मपितामह के द्वारा सुरक्षित हमारी वह सेना सब प्रकार से अजेय है, परन्तु भीमसेन के द्वारा सुरक्षित इन पाण्डवो की यह सेना जीतने में सुगम है; अतः मेरी राय है कि संस्थान, शुरसेन, वेत्रिक, कुकुर, आरोचक, त्रिगर्त, मद्रक तथा यवन आदि देशों के लोग शत्रुंजय, दुःशासन, वीर विकर्ण, नन्द, उपनन्द, चित्रसेन तथा पारिभद्र के वीरों के साथ जाकर अपनी सेना को आगे रखते हुए भीष्म की ही रक्षा करे। संजय कहते है- महाराज! दुर्योधन की यह बात सुनकर द्रोण आदि सभी महारथियों एवं राजाओं ने उस समय ‘तथास्तु’ कहकर उनकी बात मान ली। आर्य! तदनन्तर भीष्म, द्रोणतथा आपके पुत्रों ने मिलकर अपनी सेना का महान व्यूह बताया, जो पाण्डव-सैनिकों को बाधा पहूंचाने में समर्थ था। तदनन्तर बहुत बडी सेना द्वारा सब और से घिरे हुए भीष्म देवराज इन्द्र की भांति विशाल वाहिनी साथ लिये आगे-आगे चले। उन के पीछे प्रतापी वीर महाधनुर्धर द्रोणाचार्य ने युद्ध के लिये प्रस्थान किया। महाराज! उस समय कुन्तल, दशार्ण, मागघ, विदर्भ, मेकल तथा कर्मप्रावरण आदि देशों के सैनिकों के साथ गान्धार, सिन्धु, सौवीर, शिवि तथा वसाति देशों के वीर क्षत्रिय युद्ध में शोभा पानेवाले भीष्मकी रक्षा करने लगे। शकुनिने अपनी सेना साथ लेकर द्रोणाचार्य को रक्षा में योग दिया। तत्पश्चात् अपने भाईयो सहित राजा दुर्योधन अत्यन्त हर्ष में भरकर अश्वातक, विकर्ण, अम्बष्ठ, कौसल, दरद, शक, क्षुद्रक तथा मालव आदि देशों के योद्धाओं के साथ सुबलपुत्र शकुनि की सेना का संरक्षण करने लगा। भूरिश्रवा, शल, शल्य, आदणीय राजा भगदत्त तथा वामभाव की रक्षा कर रहे थे। सोमदत्तपुत्र भूरि, त्रिगर्तराज सुशर्मा, काम्बोजराज सुदक्षिण, श्रतायु तथा अच्युतायु-ये दक्षिणभाग में स्थित होकर उस सेनाकी रक्षा कर रहे थे। अश्रवत्थामा, कृपाचार्य तथा सात्वतवंशी कृतवर्मा अपनी विशाल सेना के साथ कौरव सेना के पृष्ठभाग में खडे होकर उसका संरक्षण करते थे। केतुमान, वसुदान, काशिराज के पुत्र अभियू तथा अन्य अनेक देशों के नरेश सेना पृष्ठ के पोषक थे। भारत! तदनन्तर आपकी सेना के समस्त सैनिक हर्ष से उल्लसित हो प्रसन्नतापूर्वक शंख बजाने और सिंहनाद करने लगे। उनका हर्षनाद सुनकर कुरूकुल के वृद्ध पितामह प्रतापी भीष्म जोर-जोर से सिंहनाद करके अपना शंख बजाया। तदनन्तर शंख, भेरी, नानाप्रकार के पणव और आनकआदि अन्य बाजे सहसा बज उठे और उन सबका सम्मिलित शब्द सब और गूंज उठा। तत्पश्चात श्वेत घोडों से जुते हुए विशाल रथपर बैठे भगवान श्रीकृष्ण और अर्जुन अपने स्वर्णभुषित श्रेष्ठ शंखो को बजाने लगे। ह्रषीकेशने पांचजन्य, अर्जुन ने देवदत्त तथा भयंकर कर्म करनेवाले भीमसेन ने पौण्ड्र नामक महान शंख बजाया। कुन्तीपुत्र राजा युधिष्ठिरने अनन्तविजय तथा नुकूल सहदेव ने सुघोष और मणिपुष्पक नामक शंख बजाया। काशिराज, शैव्य, महारथी शिखण्डी, धृष्टघुम्न, विराट, महारथी सात्यकि, पांचालवीर, महाधुनर्धर द्रौपदी के पांचों पुत्र-ये सभी बडे़-बडे़ शंखो को बजाने और सिंहनाद करने लगे। वहां उन वीरों द्वारा प्रकट किया हुआ वह महान तुमुल घोष पृथ्वी और आकाश को निनादित करने लगा। महाराज! इस प्रकार ये हर्ष में भरे हुए कौरव-पाण्डव एक दूसरे को संताप देते हुए पुनः युद्ध के लिये रणक्षेत्र में जा पहुंचे।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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