महाभारत भीष्म पर्व अध्याय 56 श्लोक 1-22

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षट्पञ्चाशत्तम (56) अध्‍याय: भीष्म पर्व (भीष्‍मवध पर्व)

महाभारत: भीष्म पर्व: षट्पञ्चाशत्तम अध्याय: श्लोक 1-22 का हिन्दी अनुवाद

तीसरे दिन- कौरव-पाण्डवों की व्यूह-रचना तथा युद्ध का आरम्भ

संजय ने कहा- भारत! जब रात बीती और प्रभात हुआ, तक शान्तनुनन्दन भीष्मने अपनी सेनाओं को युद्धभूमि में चलने का आदेश दिया। उस समय कुरूकुल के पितामह शान्तनु कुमार भीष्म ने आपके पुत्रों को विजय दिलाने की इच्छा से महान गरूड़ व्यूह की रचना की। स्वयं आपके ताऊ भीष्म उस व्यूहके अग्रभाग में चोंच के स्थान पर खड़े हुए। आचार्य द्रोण और यदुवंशी कृतवर्मा दोनों नेत्रों के स्थान पर स्थित हुए। यशस्वी वीर अश्वत्थामा और कृपाचार्या शिरोभाग में खड़े हुए। इनके साथ त्रिगर्त, केकय और वाटधान भी युद्धभूमि में उपस्थित थे। आर्य! भूमिश्रवा, शल, शल्य और भगदत्त- ये जयद्रथ के साथ ग्रीवाभाग में खडे़ किये गये। इन्हीं के साथ मद्र, सिधु, सौवीर तथा पंचनद देश के योद्धा भी थे।।अपने सहोदर भाइयों और अनुचरों के साथ राजा दुर्योधन पृष्टभाग में स्थित हुआ। महाराज! अवन्ति देश के राजकुमार बिन्द और अनुबिन्द तथा कम्बोज, शक एवं शूरसेन देश के योद्धा उस महाव्यूह पुच्छ भाग में खड़े हुए। मगध और कलिंग देश के योद्धा दासेरकगणों के साथ कवच धारण करके व्यू हके दायें पंख के स्थान में स्थित हुए। कारूष, विकुंज, मुण्ड और कुण्डीवृष आदि योद्धा राजा बृहद्वल के साथ बायें पंख के स्थान में खड़े हुए। शत्रुओं को संताप देने वाले सव्यसाची अर्जुन ने कौरव-सेना की वह व्यूहरचना देखकर युद्ध भूमि में उसका सामना करने के लिए धृष्टद्युम्न को साथ लेकर अपनी सेना का अत्यन्त भयंकर अर्धचन्द्राकार व्यूह बनाया। उसके दक्षिण शिखर पर भीमसेन सुशोभित हुए। उनके साथ नाना प्रकार के शस्त्र समुदायों से सम्पन्न विभिन्न देशों के नरेश भी थे। भीमसेन के पीछे ही राजा विराट और महारथी द्रुपद खड़े हुए। उनके बाद नील आयुधधारी सैनिकों के साथ राजा नील और नील के बाद महाबली धृष्टकेतु खड़े हुए।भारत! धृष्‍टकेतु के साथ चेदि, काशी, करूष और पौरव आदि देशों के सैनिक भी थे। धृष्टद्युम्न, शिखण्डी तथा पान्चाल और प्रभद्रकगण उस विशाल सेना के मध्य भाग में युद्ध के लिये खड़े हुए। हाथियों की सेना से घिरे हुए धर्मराज युधिष्‍ठिर भी वहीं थे।राजन! तदनन्तर सात्यकि और द्रौपदी के पाँचों पुत्र खड़े हुए। इनके बाद शूरवीर अभिमन्यू और अभिमन्यू के बाद इरावान थे। नरेश्वर! इरावान के बाद भीमसेन-पुत्र घटोत्कच तथा महारथी केकय खडे़ हुए। तत्पश्चात मनुष्यों में श्रेष्ठ अर्जुन उस व्यूहके बायें पार्श्‍व या शिखर के स्थान मे खड़े हुए,जिनके रक्षक सम्पूर्ण जगत का पालन करने वाले साक्षात भगवान श्रीकृष्ण हैं।इसप्रकार पाण्डवों ने आपके पुत्रों तथा उनके पक्ष में आये हुए अनयान्य भूपालों के वध के लिए इस महाव्यूह की रचना की। तदनन्तर एक दूसरे पर प्रहार करते हुए आपके और शत्रु पक्ष के सैनिकों का घोर युद्ध आरम्भ हो गया, जिसमें रथ से रथ और हाथी से हाथी भिड़ गये थे। प्रजानाथ! जहां-तहां सब ओर घोड़ों और रथों के समुदाय एक दूसरे पर टूटते और प्रहार करते दिखायी दे रहे थे। भारत! दौड़ते तथा पृथक-पृथक प्रहार करते हुए रथ समूहों का शब्द दुन्दुभियों की ध्वनि से मिलकर और भी भयंकर हो गया। आपके और पाण्डवों के घमासान युद्ध में परस्पर आघात-प्रत्याघात करने वाले करने वाले नरवीरों का भयानक शब्द आकाश में व्याप्त हो रहा था।

इस प्रकार श्री महाभारत भीष्मपर्व के अन्तर्गत भीष्मवधपर्व में तीसरे दिन के युद्ध में परस्पर व्यूहरचना विषयक छप्पनवां अध्याय पूरा हुआ।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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