एकोनचत्वारिंशदधिकशततम (139) अध्याय: शान्ति पर्व (आपद्धर्म पर्व)
महाभारत: शान्ति पर्व: एकोनचत्वारिंशदधिकशततम अध्याय: श्लोक 92-107 का हिन्दी अनुवाद
भूपाल! मैंने तुम्हारे पुत्र के साथ दुष्टतापूर्ण बर्ताव किया है, इसलिये मैं अब यहां रहने का साहस नहीं कर सकती, दूसरी जगह चली जाऊंगी। दुष्टा भार्या, दुष्ट पुत्र, कुटिल राजा, दुष्ट मित्र, दूषित संबंध और दुष्ट देश को दूर से ही त्याग देना चाहिये। कुपुत्र पर कभी विश्वास नहीं हो सकता। दुष्टा भार्यापर प्रेम कैसे हो सकता है ? कुटिल राजाके राज्य में कभी शान्ति नहीं मिल सकती और दुष्ट देश में जीवन–निर्वाह नहीं हो सकता। कुमित्र का स्नेह कभी स्थिर नहीं रह सकता, इसलिये उसके साथ सदा मेल बना रहे-यह असम्भव है और जहां दूषित संबंध हो, वहां स्वार्थ में अंतर आने पर अपमान होने लगता है। पत्नी वही अच्छी है, जो प्रिय वचन बोले। पुत्र वही अच्छा है, जिससे सुख मिले। चित्र वही श्रेष्ठ है, जिस पर विश्वास बना रहे और देश भी वही उत्तम है, जहां जीविका चल सके। उग्र शासनवाला राजा वही श्रेष्ठ है, जिसके राज्य में बलात्कार न हो, किसी प्रकार का भय न रहे, जो दरिद्र का पालन करना चाहता हो तथा प्रजा के साथ जिसका पाल्य–पालक संबंध सदा बना रहे। जिस देश का राजा गुणवान् और धर्मपरायण होताहै वहां स्त्री, पुत्र, मित्र संबंधी तथा देश सभी उत्तम गुण से संपंन्न होते हैं। जो राजा धर्म को नहीं जानता, उसके अत्याचार से प्रजा का नाश हो जाता है। राजा ही धर्म, अर्थ और काम-इन तीनों का मूल है। अत: उसे पूर्ण सावधान रहकर निरंतर अपनी प्रजा का पालन करना चाहिये। जो प्रजा की आय का छठा भाग कर रूप से ग्रहण करके उसका उपभोग करता है और प्रजा का भलीभांति पालन नहीं करता, वह तो राजाओं में चोर है। जो प्रजा को अभयदान देकर धन के लोभ से स्वयं ही उसका पालन नहीं करता, वह पाप बुद्धिराजा सारे जगत् का पाप बटोर कर नरक में जाता है। जो अभयदान देकर प्रजा का धर्मपूर्वक पालन करते हुए स्वयं ही अपनी प्रतिज्ञा को सत्य प्रमाणित कर देता है वह राजा सब को सुख देने वाला समझा जाता है। प्रजापति मनु ने राजा के सात गुण बताये हैं, और उन्हीं के अनुसार उसे माता, पिता, गुरू, रक्षक, अग्नि, कुबेर और यम की उपमा दी है। जो राजा प्रजापर सदा कृपा रखता है, वह अपने राष्ट्र के लिये पिता के समान है । उसके प्रति जो मिथ्याभाव प्रदर्शित करता है, मनुष्य दूसरे जन्म में पशु–पक्षी की योनि में जाता है। राजा दीन–दु:खियों की भी सुधि लेता और सबका पालन करता है, इसलिये वह माता के समान है। अपने और प्रजा के अप्रियजनों को वह जलाता रहता है; अत: अग्नि के समान है और दुष्टों का दमन करके उन्हें संयम में रखता है; इसलिये यम कहा गया है। प्रियजनेां को खुले हाथ धन लुटाता है और उनकी कामना पूरी करता है, इसलिये कुबेर के समान है। धर्म का उपदेश करने के कारण गुरू और सबका संरक्षण करनेके कारण रक्षक है। जो राजा अपने गुणों से नगर और जनपद के लोगों को प्रसन्न रखता है, उसका राज्य कभी डावांडोल नहीं होता क्योंकि वह स्वयं धर्म का निरंतर पालन करता रहता है।
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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