महाभारत आश्वमेधिक पर्व अध्याय 84 श्लोक 1-17
चतुरशीतितम (84) अध्याय: आश्वमेधिक पर्व (अनुगीता पर्व)
शकुनि पुत्र की पराजय
वैशम्पायनजी कहते हैं– जनमेजय ! शकुनि का पुत्र गान्धारों में सबसे बड़ा वीर और महारथी था । वह विशाल सेना से घिरकर निद्राविजयी अर्जुन का सामना करने के लिये चला । उसकी सेना में हाथी, घोड़े और रथ सभी सम्मिलित थे । वह सेना ध्वजा– ताकाओं की माला से मण्डित थी । गान्धार देश के योद्धा राजा शकुनि के वध का समाचार सुनकर अमर्ष में भरे हुए थे; अत: हाथ में धनुष–बाण ले उन्होंने एक साथ होकर अर्जुप पर धावा बोल दिया । किसी से परास्त न होने वाले धर्मात्मा अर्जुन ने उन्हें राजा युधिष्ठिर की बात सुनायी ; पंरतु उस हितकर वचन को भी वे ग्रहण न कर सके । यद्यपि पार्थ ने सान्त्वनापूर्वक समझा–बुझाकर उन सबको युद्ध से रोका, तथापि वे अमर्षशील योद्धा उस घोड़ो को चारों ओर से घेरकर उसे पकड़ने के लिये आगे बढ़े । यह देख पाण्डुपुत्र अर्जुन को बड़ा क्रोध हुआ । वे गाण्डीव धनुष से छूटे हुए तेज धार वाले क्षुरों से बिना परिश्रम के ही उनके मस्तक काटने लगे । महाराज ! अर्जुन की मार खाकर उनके बाणों की वर्षा से पीड़ित हुए गान्धार सैनिक उस घोड़े को छोड़कर बड़े वेग से पीछे लौट गये । गान्धारों के द्वारा राके जाने पर भी तेजस्वी वीर पाण्डुनन्दन अर्जुन उने नाम ले – लेकर मस्तक काटने और गिराने लगे । जब चारों ओर युद्ध में गान्धारों का संहार आरम्भ हो गया, तब राजा शकुनि - पुत्र ने पाण्डुकुमार अर्जुन को रोका । क्षत्रिय धर्म में स्थित होकर युद्ध करने वाले उस राजा से अर्जुन ने इस प्रकार कहा - 'वीर ! तुम्हें युद्ध करने से कोई लाभ नहीं है । महाराज युधिष्ठिर की यह आज्ञा है कि मैं राजाओं का वध न करूं । अत: तुम युद्ध से निवृत हो जाओ जिससे आज तुम्हारी पराजय न हो' । उनके ऐसा कहने पर भी वह अज्ञान से मोहित होने के कारण उनकी बात की अवहेलना करके इन्द्र के समान पराक्रमी अर्जुन पर शीघ्रगामी बाणों की वर्षा करने लगा ।तब अमेय आत्मबल से सम्पन्न अर्जुन ने जिस प्रकार जयद्रथ का सिर उड़ाया था, उसी प्रकार शकुनि – पुत्र के शिरस्त्राण ( टोप ) – को एक अर्धचन्द्रकार बाण से काट गिराया । यह देखकर समस्त गान्धारों को बड़ा विस्मय हुआ और वे सब–के–सब यह समझ गये कि अर्जुन ने जान–बूझकर गान्धार राजा को जीवित छोड़ दिया । उस समय गान्धारराज शकुनि का पुत्र भागने का अवसर देखने लगा । जैसे सिंह से डरे हुए छोटे–छोटे मृग भाग जाते हैं, उसी प्रकार अर्जुन से भयभीत हुए सैनिकों के साथ वह स्वयं भी भाग निकला । वहीं चक्कर काटने वाले बहुत–से सैनिकों के मस्तक अर्जुन ने झुकी हुई गांठ वाले भल्लों द्वारा वेगपूर्वक काट लिया । अर्जुन द्वारा चलाये और गाण्डीव धनुष से छूटे हुए बहुसंख्यक बाणों से कितने ही योद्धाओं की ऊंची उठी हुई भुजाएं काटकर गिर गयीं और उन्हें इस बात का पता तक नहीं लगा । सम्पूर्ण सेना के मनुष्य, हाथी और घोड़े घबराकर इधर – उधर भटकने लगे । सारी सेना गिरती–पड़ती भागने लगी । उनके अधिकांश सिपाही युद्ध में मारे गये या नष्ट हो गये और वह बार–बार युद्ध भूमि में ही चक्कर काटने लगी ।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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