षट्सप्ततितम (76) अध्याय: भीष्म पर्व (भीष्मवध पर्व)
महाभारत: भीष्म पर्व: षट्सप्ततितम अध्याय: श्लोक 16-26 का हिन्दी अनुवाद
ध्वज और आभूषणों से भरी हुई यह सेना रत्नजटित पताकाओं से व्याप्त है। दौड़ते हुए घोड़ों से जो इस सेना का चन्चल होना है, वही वायु वेग से इस समुद्र का कम्पन है। सागरसदृश यह विशाल सेना देखने में अपार है और निरन्तर गर्जन करती रहती है। द्रोणाचार्य, भीष्म, कृतवर्मा, कृपाचार्य, दुःशासन, जयद्रथ, भगवत्त, विकर्ण, अश्वत्थामा, शकुनि तथा बाल्हिक आदि प्रमुख वीरों तथा अन्य शक्तिशाली महामनस्वी लोगों द्वारा मेरी सेना सदा सुरक्षित रहती है। ऐसी सेना भी यदि संग्राम में मारी गयी तो इसमें हम लोगों का पुरातन प्रारब्ध ही कारण है । संजय। इस भूतल पर इतनी बड़ी सेना का जमाव मनुष्यों ने कभी नहीं देखा होगा अथवाप्राचीन महाभाग ऋषियों ने भी नहीं देखा होगा। इतना बड़ा सैन्य समुदाय शस्त्र सम्पत्ति से संयुक्त होने पर भी यदि संग्राम में विनष्ट हो रहा है, तो इसमें भाग्य के सिवा और क्या कारण हो सकता है । संजय। यह सब कुछ मुझे विपरीत जान पड़ता है कि ऐसा भयंकर सैन्यसमूह भी वहाँ युद्ध में पाण्डवों से पार नहीं पा सका। संजय। निश्चय ही पाण्डवों के लिये देवता आकर मेरी सेना के साथ युद्ध करते हैं, तभी तो वह प्रतिदिन मारी जा रही है। विदुर ने नित्य ही हित और लाभ की बातें बतायीं, परंतु मेरे मूर्ख पुत्र दुर्योधन ने नहीं माना। तात। मैं समझता हूँ, महात्मा विदुर सर्वज्ञ है। इसीलिये पहले ही उनकी बुद्धि में ये सब बातें आ गयी थीं। आज जो कुछ प्राप्त हुआ है, यह पहले ही उनकी दृष्टि में आ गया था। संजय। अथवा यह सब प्रकार से ऐसा ही होने वाला था। विधाता ने जो पहले से रच रक्खा है, वह उसी रूप में होता है, उसे कोई बदल नहीं सकता।
इस प्रकार श्रीमहाभारत भीष्मपर्व के अन्तर्गत भीष्मवधपर्व में धृतराष्ट्र को चिन्ताविषयक छिहत्तरवां अध्याय पूरा हुआ।
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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