महाभारत भीष्म पर्व अध्याय 118 श्लोक 23-44

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अष्टादशाधिकशततम (118) अध्‍याय: भीष्म पर्व (भीष्‍मवध पर्व)

महाभारत: भीष्म पर्व: अष्टादशाधिकशततम अध्याय: श्लोक 23-44 का हिन्दी अनुवाद

भरतश्रेष्ठ! उस दसवें दिन के आने पर एकमात्र भीष्म ने युद्ध में मत्स्य और पांचाल देश की सेनाओं के अगणित हाथी, घोड़ों को मारकर सात महारथियों का वध कर डाला। प्रजानाथ! फिर पांच हजार रथियों का वध करके आपके पितृतुल्य भीष्म ने अपने अस्त्र शिक्षाबल से उस महायुद्ध में चौदह हजार पैदल सिपाहियों, एक हजार हाथियों और दस हजार घोड़ों का संहार कर डाला। तदनन्तर समस्त भूमिपालों की सेना का उच्छेद करके राजा विराट के प्रिय भाई शतानीक को मार गिराया। महाराज! शतानीक को रणक्षेत्र में मारकर प्रतापी भीष्म ने भल्ल नामक बाणों द्वारा एक हजार नरेशोंको धराशायी कर दिया। उस रणक्षेत्र में समस्त योद्धा भीष्म के भय से उद्विग्न हो अर्जुन को पुकारने लगे। पाण्डव पक्ष के जो कोई नरेश अर्जुन के साथ गये थे, वे भीष्म के सामने पहुंचते ही यमलोक के पथिक हो गये। इस प्रकार भीष्म ने दसोंदिशाओं में सब ओर अपने बाणोंका जाल-सा बिधा दिया और कुन्ती कुमारों की सेना को परास्त करके वे सेना के प्रमुख भाग में स्थित हो गये। दसवें दिन यह महान पराक्रम करके हाथ में धनुष लिये वे दोनों सेनाओं के बीच में खडे़ हो गये। राजन! जैसे ग्रीष्म ऋतु में आकाश के मध्य भाग में पहुंचे हुए दोपहर के तपते हुए सूर्य की ओर देखना कठिन होता है, उसी प्रकार उस समय कोई राजा भीष्म की ओर आंख उठाकर देखेने का भी साहस न कर सके। भारत! जैसे पूर्वकाल में देवराज इन्द्र ने संग्राम भूमि में दैत्यों की सेना को संतप्त किया था, उसी प्रकार भीष्‍मजी पाण्डव योद्धाओं को संताप दे रहे थे। उन्हें इस प्रकार पराक्रम करते हेख मधु दैत्य को मारने वाले देवकीनन्दन भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन से प्रसन्नतापूर्वक कहा-‘अर्जुन! ये शान्तनुनन्दन भीष्म दोनों सेनाओं के बीच में खड़े हैं। यदि तुम बलपर्वक इन्हें मार सको तो तुम्हारी विजय हो जायेगी। ‘जहां ये इस सेना का संहार कर रहे हैं, वहीं पहुंचकर इन्हें बलपूर्वक स्तम्भित कर दो (जिससे ये आगे या पीछे किसी ओर हट न सके)। विभो! तुम्हारे सिवा दूसरा कोई ऐसा नहीं है, जो भीष्म के बाणोंकी चोट सह सके। राजन! इस प्रकार भगवान से प्रेरित होकर कपि ध्वज अर्जुन ने उसी क्षण अपने बाणों द्वारा ध्वज, रथ और घोड़ों सहित भीष्म को आच्छादित कर दिया। कुरूश्रेष्ठ वीरों मेंप्रधान भीष्म ने भी अपने बाण समूहों द्वारा अर्जुन के चलाये हुए बाण समुदाय के टुकड़े-टुकड़े कर दिये। तत्‍पश्‍चातउत्तम गांठ और तीखी धारवाले वज्रतुल्य बाणों द्वारा वे पुनः पाण्डव महारथियों का शीघ्रतापूर्वक वध करने लगे। इसी समय पांचालराज द्रुपद, पराक्रमी, धृष्टककेतु, पाण्डुनन्दन भीमसेन, द्रुपद कुमार धृष्टद्युम्न, नकुल-सहदेव, चेकितान, पांच केकय राजकुमार, महाबाहु सात्यकि, सुभद्राकुमार अभिमन्यु, घटोत्कच, द्रौपदी के पांचों पुत्र, शिखण्डी, पराक्रमी कुनितभोज, सुषर्मा तथा विराट- ये और दूसरे भी बहुत से महाबली पाण्डव सैनिक भीष्म के बाणों से पीड़ितहो शोक के समुद्र में डूब रहे थे, परंतु अर्जुन ने उन सबका उद्धार कर दिया। तब शिखण्डी अपने उत्तम अस्त्र-शस्त्रोंको लेकर बडे़ वेग से भीष्म की ही ओर दोड़ा। उस समय किरीटधारी अर्जुन उसकी रक्षा कर रहे थे। तत्‍पश्‍चातयुद्धविभाग के अच्छे ज्ञाता और किसी से भी परास्त न होने वाले अर्जुन ने भीष्म के पीछे चलने वाले समस्त योद्धाओं को मारकर स्वयं भी भीष्‍मपर ही धावा किया।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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