महाभारत शान्ति पर्व अध्याय 153 श्लोक 18-33

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त्रिपञ्चाशदधिकशततम (153) अध्याय: शान्ति पर्व (आपद्धर्म पर्व)

महाभारत: शान्ति पर्व: त्रिपञ्चाशदधिकशततम अध्याय: श्लोक 18-33 का हिन्दी अनुवाद

इतने ही में कौए की पांख के समान काले रंग का एक गीदड़ अपनी मांद (घूरी) से निकलकर उन लौटते हुए बान्‍धवों से कहा-‘मनुष्‍यों! तुम बड़े निर्दय हो! ‘अरे मूर्खो! अभी तो सूर्यास्‍त भी नहीं हुआ है; अत: डरो मत। बच्‍चे को लाड़–प्‍यार कर लो। अनेक प्रकार का मुहूर्त आता रहता है। सम्‍भव है किसी शुभ घड़ी में यह बालक जी उठे। ‘तुम लोग कैसे निर्दयी हो? पुत्रस्‍नेह का त्‍याग करके इस नन्‍हे से बालक को श्‍मशान-भूमि में लाकर ड़ाल दिया। अरे! अपने बेटे को इस मरघट में छोड़कर क्‍यों जा रहे हो? ‘जान पड़ता है’ इस मधुर भाषी छोटे–से बालकपर तुम्‍हारा तनिक भी स्‍नेह नहीं है। यह वही बालक है, जिसकी मीठी–मीठी बातें सुनते ही तुम्‍हारा हृदय हर्ष से खिल उठता था। ‘पशु और पक्षियों का भी अपने बच्‍चे पर जैसा स्‍नेह होता है, उसे तुम देखो । यद्यपि स्‍नेह में आसक्‍त उन पशु–पक्षी–कीट आदि प्राणियों को अपने बच्‍चों के पालन-पोषण करने पर भी परलोक में उनसे उस प्रकार कोई फल नहीं मिलता जैसे कि परलोक की गति में स्थित हुए मुनियों को यज्ञादि क्रिया से मिलता है। ‘क्‍योंकि उनके पुत्रों में स्‍नेह रखनेवाले पशु आदि के लिये इहलोक और परलोक में संतानों के लालन-पालन से कोई लाभ नहीं दिखायी देता तो भी वे अपने-अपने बच्‍चों की रक्षा करते रहते है। यद्यपि उनके बच्‍चे बड़े हो जाने पर अपने मां–बाप का पालन–पोषण नहीं करते है तो भी अपने प्‍यारे बच्‍चों को न देखने पर उनका शोक काबू में नहीं रहता। ‘परंतु मनुष्‍यों में इतना स्‍नेह ही कहां है, जो उन्‍हें अपने बच्‍चों के लिये शोक होगा। अरे! यह तुम्‍हारा वंशधर बालक है। इसे छोड़कर तुम कहां जाओगे। ‘इस अपने लाड़ले के लिये देर तक आंसू बहाओ और दीर्घ कालतक स्‍नेह भरी दृष्टि से इसकी ओर देखो, क्‍योंकि ऐसी प्‍यारी–प्‍यारी संतानों को छोड़कर जाना अत्‍यंत कठिन है। ‘जो शरीर से क्षीण हुआ हो, जिस पर कोई आर्थिक अभियोग लगाया गया हो तथा जो श्‍मशान की ओर जा रहा हो, ऐस अवसरों पर उसके भाई–बन्‍धु ही उसके साथ खड़े होते हैं। दूसरा कोई वहां साथ नहीं देता। ‘सबको अपने-अपने प्राण प्‍यारे होते हैं और सभी दूसरों से स्‍नेह पाते हैं। पशु-पक्षी की योनि में भी जो प्राणी रहते हैं, उनका अपनी संतानों पर कैसा प्रेम है, इसे देखों। इस बालक की कमल–जैसी चंचल एवं विशाल आंखें कितनी सुदंर हैं । इसका शरीर स्‍नान एवं पुष्‍पमाला आदि से विभूषित नया–नया विवाह करके आये दुल्‍हे जैसा है। ऐसे मनोहर बालक को छोड़कर जाने के लिये तुम्‍हारे पैर कैसे उठ रहे हैं ? करूणाजनक विलाप करते हुए उस सियार की यह बात सुनकर वे सभी मनुष्‍य उस मृत बालक के शरीर की देख–रेख के लिये पुन: लौट आये। तब गीध ने कहा-अहो! उस मन्‍दबुद्धि एवं क्रुर स्‍वभाव वाले क्षुद्र गीदड़ की बातों में आकर तुम लौटे कैसे आते हो ? मनुष्‍यों! तुम बड़े धैर्यहीन हो। इस बच्‍चे का शरीर पांचों इन्द्रियों से परित्‍यक्‍त होकर सूखे काठ के समान तुम्‍हारे सामने पड़ा है। तुम इसके लिये क्‍यों शोक करते हो? एक दिन तुम्‍हारी भी यही दशा होगी, फिर अपने लिये क्‍यों नहीं शोक करते ?


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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