महाभारत अनुशासन पर्व अध्याय 56 श्लोक 1-21

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छप्पनवाँ अध्‍याय: अनुशासनपर्व (दानधर्मपर्व)

महाभारत: अनुशासनपर्व: छप्पनवाँ अध्याय: श्लोक 1-21 का हिन्दी अनुवाद

च्‍यवन ॠषि का भृगुवंशी और कुशिक वंशियों के सम्‍बन्‍ध का कारण बताकर ती‍र्थ यात्रा के लिये प्रस्‍थान च्यवन कहते हैं- नरपुंगव। मनुजेश्‍वर। मैं जिस उद्देष्य से तुम्हारा मूलोच्छेद करने के लिये यहां आया था, वह मुझे तुमसे अवश्‍य बता देना चाहिये। जनेश्‍वर। क्षत्रीय लोग सदा से ही भृगुवंशीब्राह्माणों के यजमान हैं; किंतु प्रारब्धवश आगे चलकर उनमें फूट हो जायेगी। इसलिये वे दैवकी प्रेरणा से समस्त भृगुवंशियों का संहार कर डालेंगे। नरेश्‍वर। वे दैवदण्ड से पीड़ित हो गर्भ के बच्चे तक तो काट डालेंगे। तदनन्तर मेरे वंश में ऊर्व नामक एक महातेजस्वी बालक उत्पन्न होगा, जो भार्गव गोत्र की वृद्वि करेगा। उसका तेज अग्नि और सूर्य के समान दुर्धर्ष होगा। वह तीनों लोकों का विनाश करने के लिये क्रोधजनित अग्नि की सृष्टि करेगा। वह अग्नि पर्वतों और वनों सहित सारी पृथ्वी को भस्‍म कर डालेगी । कुल काल के बाद मुनि श्रेष्ठ और्व ही उस अग्नि को समुद्र में स्थित हुई बड़वानल में डालकर बुझा देंगे । निष्पाप महाराज। उन्हीं और्व के पुत्र भृगुकुल नन्दन ऋचीक होंगे, जिनकी सेवा में सम्पूर्ण धनुर्वेद मूर्तिवान होकर उपस्थित होगा । वे क्षत्रियों का संहार करने के लिये दैववश उस धनुर्वेद को ग्रहण करके तपस्या से शुद्व अन्तःकरण वाले अपने पुत्र महाभाग जमदग्नि को उसकी शिक्षा देंगे। भृगुश्रेष्ठ जमदग्नि उस धनुर्वेद का धारण करेंगे।धर्मात्मन्। नृपश्रेष्ठ वे ऋचीक तुम्हारे कुल की उन्नति के लिये तुम्हारे वंश की कन्या का पाणिग्रहण करेंगे। तुम्हारी पौत्री एवं गाधि की पुत्री को पाकर महातपस्वी ऋचीक क्षत्रीय धर्म वाले ब्राह्माणजातीय पुत्र को उत्पन्न करेंगे। (अपनी पत्नी की प्रार्थना से ऋचीक क्षत्रियत्व को अपने पुत्र से हटाकर भावी पौत्र में स्थापित कर देंगे)।महान तेजस्वी नरेश। वे ऋचीक मुनि तुम्हारे कुल में गाधि को एक महान तपस्वी और परम धार्मिक पुत्र प्रदान करेंगे, जिसका नाम होगा विश्‍वामित्र । वह बृहस्पति के समान तेजस्वी तथा ब्राह्मणोचित कर्म करने वाला क्षत्रिय होगा ब्रह्माजी की प्रेरणा से गाधि की पत्नी और पुत्री ये स्त्रियां इन महान परिवर्तन में कारण बनेंगी, यह अवश्‍यम्भावी है। इसे कोई पलट नहीं सकता। तुमसे तीसरी पीढ़ी में तुम्हें ब्राह्माणत्व प्राप्त हो जायगा और तुम शुद्व अन्तःकरण वाले भृगुवंशियों के सम्बन्धी होओगे। भीष्मजी कहते हैं - भरतश्रेष्ठ। महात्मा च्यवन मुनि का वचन सुनकर धर्मात्मा राजा कुशिक बड़े प्रसन्न हुए और बोले, ‘भगवन। ऐसा ही हो’। महातेजस्वी च्यवन ने पुनः राजा कुशिक को वर मांगने के लिये प्रेरित किया। तब वे भूपाल इस प्रकार बोले-‘महामुने। बहुत अच्छा, मैं आपसे अपना मनोरथ प्रकर करूंगा। मुझे यही वर दीजिये कि मेरा कुल ब्राह्माण हो जाय और उसका धर्म में मन लगा रहे’। कुशिक के ऐसा कहने पर च्यवन मुनि बोले ‘तथास्तु’। फिर वे राजा से विदा ले वहां से तत्काल तीर्थयात्रा के लिये चले गये। नरेश्‍वर। इस प्रकार मैंने तुम से भृगुवंशी और कुषिका वंशियों के परस्पर सम्बन्ध का सब कारण पूर्णरूप से बताया है । युधिष्ठिर। उस मसय च्यवन ऋषि ने जैसा कहा था, उसके अनुसार ही आगे चलकर भृगुकुल में परशुराम का और कुशिक वंश में विश्‍वामित्र का जन्म हुआ।

इस प्रकार श्रीमहाभारत अनुशासनपर्व के अन्‍तगर्त दानधर्मपर्वमें च्‍यवन और कुशिका का संवादविषयक छप्पनवाँ अध्‍याय पूरा हुआ।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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