महाभारत अनुशासन पर्व अध्याय 73 श्लोक 1-17

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तिहत्तरवाँ अध्‍याय: अनुशासनपर्व (दानधर्मपर्व)

महाभारत: अनुशासनपर्व: तिहत्तरवाँ अध्याय: श्लोक 1-25 का हिन्दी अनुवाद

ब्रह्माजी का इन्‍द्र से गोलोक और गोदान की महिमा बताना ब्रह्माजी ने कहा- देवेन्द्र। गोदान के सम्बन्ध में तुमने जो यह प्रश्‍न उपस्थित किया है, तुम्हारे सिवा इस जगत् में दूसरा कोई ऐसा प्रश्‍न करने वाला नहीं है। शुक्र। ऐसे अनेक प्रकार के लोक हैं, जिन्हें तुम नहीं देख पाते हो। मैं उन लोकों को देखता हूं और पतिव्रता स्त्रियां भी उन्हें देख सकती हैं। उत्तम व्रत का पालन करने वाले ऋषि तथा शुभ बुद्वि वाले ब्राह्माण अपने शुभ कर्मों के प्रभाव से वहां सषरीर चले जाते हैं। श्रेष्ठ व्रत के आचरण में लगे हुए योगी पुरूष समाधि-अवस्था में अथवा मृत्यु के समय जब शरीर से सम्बन्ध त्याग देते हैं, तब अपने शुद्व चित्त के द्वारा स्वप्न की भांति दीखने वाले उन लोकों का यहां से भी दर्शन करते हैं। सहस्त्राक्ष। वे लोक जैसे गुणों से सम्पन्न हैं, उनका वर्णन सुनो, वहां काल और बुढ़ापा का आक्रमण नहीं होता। अग्नि का भी जोर नहीं चलता। वहां किसी का किंचिन्मात्र भी अमंगल नहीं होता। उस लोक में न रोग है न शोक। इन्द्र वहां की गौऐं अपने मन में जिस-जिस वस्तु की इच्छा रखती है, वे सब उन्हें प्राप्त हो जाती है, यह मेरी प्रत्यक्ष देखी हुई बात है। वे जहां जाना चाहती हैं जाती है; जैसे चलतना चाहती हैं चलती हैं और संकल्प मात्र से सम्पूर्ण भोगों का प्राप्त कर उनका उपभोग करती हैं।बावड़ी, तालाब, नदियां, नाना प्रकार वन, गृह और पर्वत आदि सभी वस्तुऐं वहां उपलब्ध हैं। गोलोक समस्त प्राणियों के लिये मनोहर है। वहां की प्रत्येक वस्तु पर सबका समान अधिकार देखा जाता है। इतना विशाल दूसरा कोई लोक नहीं है। इन्द्र। जो सब-कुछ सहने वाले, क्षमाशील, दयालु, गुरूजनों की आज्ञा में रहने वाले और अहंकार रहित हैं, वे श्रेष्ठ मनुष्य ही उस लोक में जाते हैं। जो सब प्रकार के मांसों का भोजन त्याग देता है, सदा भगवच्चिन्तन में लगा रहता है, धर्मपरायण होता है, माता-पिता की पूजा करता, सत्य बोलता, ब्राह्माणों की सेवा में संलग्न रहता, जिसकी कभी निंदा नहीं होती, जो गौओं और ब्राह्माणों पर कभी क्रोध नहीं करता, धर्ममय में अनुरक्त होकर गुरूजनों की सेवा करता है, जीवन भर के लिये सत्य का व्रत ले लेता है, दान में प्रवृत रहकर जिस किसी के भी अपराध करने पर भी उसे क्षमा कर देता है, जिसका स्वभाव मृदुल है, जो जितिन्द्रिय है, देवाराधक, सबका आतिथ्य-सत्कार करने वाला और दयालु है, ऐसी ही गुणों वाला मनुष्य उस सनातन एवं अविनाशी गोलोक में जाता है।परस़्त्रीगामी, गुरूहत्यारा, असत्यवादी, सदा बकवाद करने वाला, ब्राह्माणों से वैर बांधकर रखने वाला, मित्रद्रोही, ठग, कृतग्न, शठ, कुटिल, धर्मद्वेषी और ब्रह्म हत्यारा- इन सब दोषों से युक्त दुरात्मा मनुष्य कभी मन से भी गोलोक का दर्शन नहीं पा सकता; क्यों कि वहां पुण्यात्माओं का निवास है।सुरेश्‍वर। सतकृतो। यह सब मैंने तुम्हें विशेष रूप से गोलोक का महात्म्य बताया है। अब गोदान करने वालों को जो फल प्राप्त होता है, उसे सुनो। जो पुरूष अपनी पैतृक संपत्ति से प्राप्त हुए धन के द्वारा गौऐं खरीदकर उनका दान करता है, वह उस धन से धर्म पूर्वक उपार्जित हुए अक्षय लोकों का प्राप्त होता है। शुक्र। जो जुए में धन जीतकर उसके द्वारा गायों को खरीदता है और उनका दान करता है वह दस हजार दिव्य वर्षों तक उसके पुण्य फल का उपभोग करता है। जो पैतृक संपत्ति से न्याय पूर्वक प्राप्त की हुई गौओं का दान करता है, ऐसे दाताओं के लिये वे गौऐं अक्षय फल देने वाली हो जाती हैं। शचीपते। जो पुरूष दान में गौऐं लेकर फिर शुद्व हृदय से उनका दान कर देता है, उसे भी यहां अक्षय एवं अटल लोकों की प्राप्ति होती है- यह निश्चित रूप से समझ लो । जो जन्म से ही सदा सत्य बोलता, इन्द्रियों को काबू में रखता, गुरूजनों तथा ब्राह्माणों की कठोर बातों को भी सह लेता और क्षमाशील होता है, उसकी गौओं के समान गति होती है। अर्थात वह गोलोक में जाता है।शचीपते शक्र।ब्राह्माण के प्रति कभी कुवाच्य नहीं बोलना चाहिये और गौओं के प्रति कभी मन से भी द्रोह का भाव नहीं रखना चहिये। जो ब्राह्माण गौओं के समान वृति से रहता है और गौओं के लिये घास आदि की व्यवस्था करता है साथ ही सत्य और धर्म में तत्पर रहता है, उसे प्राप्त होने वाले फल का वर्णन सुनो। वह यदि एक गौ का भी दान करे तो उसे एक हजार गोदान के समान फल मिलता है।यदि क्षत्रीय भी इन गुणों से युक्त होता है तो उसे भी ब्राह्माण के समान ही (गोदान का ) फल मिलता है। इस बात को अच्छी तरह सुन लो। उसकी (दान दी हुई) गौ भीब्राह्माण की गौ के तुल्य फल देने वाली होती है। यह धर्मात्माओं को निश्‍चय है। यदि वैश्‍य में भी उपयुक्त गुण हों तो उसे भी एक गोदान करने पर ब्राह्माण की अपेक्षा (आधे भाग) पांच सौ गौओं के दान का फल मिलता है और विनयशील शूद्र को ब्राह्माण के चैथाई भाग अर्थात ढाई सो गौओं के दान का फल प्राप्त होता है ।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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