महाभारत आश्रमवासिक पर्व अध्याय 25 श्लोक 1-13

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पञ्चविंश (25) अध्याय: आश्रमवासिक पर्व (आश्रमवास पर्व)

महाभारत: आश्रमवासिक पर्व: पञ्चविंश अध्याय: श्लोक 1-13 का हिन्दी अनुवाद
संजय का ऋषियों से पाण्डवों, उनकी पत्नियों तथा अन्यान्य स्त्रियों का परिचय देना

वैशम्पायन जी कहते हैं - जनमेजय ! जब राजा धृतराष्ट्र सुन्दर कमल के से नेत्रों वाले पुरूषसिंह युधिष्ठिर आदि पाँचों भाईयों के साथ आश्रम में विराजमान हुए, उस समय वहाँ अनेक देशों से आये हुए महाभाग तपस्वीगण कुरूराज पाण्डु के पुत्र - विशाल वक्षःस्थल वाले पाण्डवों को देखने के लिये पहले से उपस्थित थे। उन्होनें पूछा - ‘हम लोग यह जानना चाहते हैं कि यहाँ आये हुए लोगों में महाराज युधिष्ठिर कौन हैं ? भीमसेन, अर्जुन, नकुल, सहदेव और यशस्विनी द्रौपदी देवी कौन हैं ?’उनके इस प्रकार पूछने पर सूत संजय ने उन सबके नाम बताकर पाण्डवों, द्रौपदी तथा कुरूकुल की अन्य स्त्रियों का इस प्रकार परिचय दिया। संजय बोले - ये जो विशुद्ध सुवर्ण के समान गोर और सबसे बडे़ हैं, देखने में महान् सिंह के समान जान पड़ते हैं, जिनकी नासिका नुकीली तथा नेत्र बडे़-बडे़ और कुछ-कुछ लालिमा लिये हुए हैं, ये कुरूराज युधिष्ठिर हैं। जो मतवाले गजराज के समान चलने वाले, तपाये हुए सुवर्ण के समान विशुद्ध गौरवर्ण तथा मोटे और चैडे़ कन्धे वाले हैं, जिनकी भुजाएँ मोटी और बड़ी-बड़ी हैं, ये ही भीमसेन हैं। आप लोग इन्हें अच्छी तरह देख लें, देख लें। इनके बगल में जो ये महाधनुर्धर और श्याम रंग के नवयुवक दिखायी देते हैं, जिनके कंधे सिंह के समान ऊँचे हैं, जो हाथियों के यूथपति गजराज के समान प्रतीत होते हैं और हाथी के समान मस्तानी चाल से चलते हैं, ये कमलदल के समान विशाल नेत्रों वाले वीरवर अर्जुन हैं। कुन्ती के पास जो ये दो श्रेष्ठ पुरूष बैठे दिखायी देते हैं, ये एक ही साथ उत्पन्न हुए नकुल और सहदेव हैं। ये दोनों भाई भगवान् विष्णु और इन्द्र के समान शोभा पाते हैं। रूप, बल और शील में इन दोनों की समानता करने वाला दूसरा कोई नहीं हैं। ये जो किंच्ति मध्यम वय का स्पर्श करती हुई, नील कमलदल के समान विशाल नेत्रों वाली एवं नील उत्पलकी सी श्यामकान्ति से सुशोभित होने वाली सुन्दरी मूर्तिमती लक्ष्मी तथा देवताओं की देवी सी जान पड़ती हैं, ये ही महारानी द्रुपदकुमारी कृष्णा हैं। विप्रवरो ! इनके बगल में जो ये सुवर्ण से भी उत्तम कान्तिवाली देवी चन्द्रमा की मूर्तिमती प्रभा-सी विराजमान हो रही हैं और सब स्त्रियों के बीच में बैठी हैं, ये अनुपम प्रभावशाली चक्रधारी भगवान् श्रीकृष्ण की बहन सुभद्रा हैं। ये जो विशुद्ध जाम्बूनद नामक सुवर्ण के समान गौर वर्णवाली सुन्दरी देवी बैठी हैं, ये नागराज कन्या उलूपी हैं तथा जिनकी अंगकान्ति नूतन मधूक पुष्पों के समान प्रतीत होती है, ये राजकुमारी चित्रांगदा हैं। ये दोनों भी अर्जुन की ही पत्नियाँ हैं। ये जो इन्दीवर के समान श्यामवर्ण वाली राजमहिला विराजमान हैं, भीमसेन की श्रेष्ठ पत्नी हैं। ये उस राजसेनापति एवं नरेश की बहन हैं, जो सदा भगवान् श्रीकृष्ण से टक्कर लेने का हौंसला रखता था। साथ ही यह जो चम्पा की माला के समान गौरवर्ण वाली सुन्दरी बैठी हुई है, यह सुविख्यात मगधनरेश जरासंध की पुत्री एवं माद्री के छोटे पुत्र सहदेव की भार्या है।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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