महाभारत आश्वमेधिक पर्व अध्याय 66 श्लोक 1-19
षट्षष्टितम (66) अध्याय: आश्वमेधिक पर्व (अनुगीता पर्व)
श्रीकृष्ण का हस्तिनापुर में आगमन और उत्तरा के मृत बालक को जिलाने के लिये कुन्ती की उनसे प्रार्थना
वैशम्पायनजी कहते हैं- जनमेजय! इसी बीच में परम पराक्रमी भगवान् श्रीकृष्ण भी वृष्णिवंशियों को साथ लेकर हस्तिनापुर आ गये। उनके द्वारका जाते समय धर्मपुत्र युधिष्ठर ने जैसी बात कही थी, उसी के अनुसार अश्वमेध यज्ञ का समय निकट जानकार पुरुषोत्तम श्रीकृष्ण पहले ही उपस्थित हो गये। उनके साथ रुक्मिणीनन्दन प्रद्युम्न, सात्यकि, चारुदेष्ण, साम्ब, गद, कृतवर्मा, सारण, वीर निशठ और उल्मुक भी थे। वे बलदेवजी को आगे करके सुभद्रा के साथ पधारे थे। उनके शुभागमन का उद्देश्य का द्रौपदी, उत्तरा और कुन्ती से मिलना तथा जिनके पति मारे गये थे, उन सभी क्षत्राणियों को आश्वासन देना-धीरज बँधाना। उनके आगमन का समाचार सुनते ही राजा धृतराष्ट्र और महामना विदुरजी खड़े हो गये और आगे बढ़कर उन्होंने उन सबका विधिवत् स्वागत-सत्कार किया। विदुर और युयुत्सु से भलीभाँति पूजित हो महातेजस्वी पुरुषोत्तम भगवान् श्रीकृष्ण वहीं रहने लगे। जनमेजय! उन वृष्णिवीरों के यहाँ निवास करते समय ही तुम्हारे पिता शत्रुवीरहन्ता परीक्षित्का का जन्म हुआ था। महाराज! वे राजा परीक्षित् ब्रह्मास्त्र से पीड़ित होने के कारण चेष्टाहीन मुर्दे के रूप में उत्पन्न हुए, अत: स्वजनों का हर्ष और शोक बढ़ानेवाले हो गये थे। [१] पहले पुत्र जन्म का समाचार सुनकर हर्ष में भरे हुए लोगों के सिंहनाद से एक महान् कोलाहल सुनायी पड़ा, जो सम्पूर्ण दिशाओं में प्रविष्ट हो पुन: शान्त हो गया। इससे भगवान् श्रीकृष्ण के मन और इन्द्रियों में व्यथा सी उत्पन्न हो गयी। वे सात्यकि को साथ ले बड़ी उतावली से अन्त:पुर में जा पहुँचे। वहाँ उन्होंने अपनी बुआ कुन्ती को बड़े वेग से आती देखा, जो बारंबार उन्हीं का नाम लेकर ‘वासुदेव! दौड़ो-दौड़ो’ की पुकार मचा रही थी। राजन्! उनके पीछे द्रौपदी, यशस्विनी सुभद्रा तथा अन्य बन्धु-बान्धवों की स्त्रियाँ भी थीं, जो बड़े करुण स्वर से बिलख-बिलखकर रो रही थीं। नृपश्रेष्ठ! उस समय श्रीकृष्ण के निकट पहुँचकर कुन्तिभोजकुमारी कुन्ती नेत्रों से आँसू बहाती हुई गद्गद वाणी में बोली- ‘महाबाहु वसुदेव-नन्दन! तुम्हें पाकर ही तुम्हारी माता देवकी उत्तम पुत्रवाली मानी जाती है। तुम्हीं हमारे अवलम्ब और तुम्हीं हम लोगों के आधार हो। इस कुल की रक्षा तुम्हारे ही अधीन है। ‘यदुवीर! प्रभो! यह जो तुम्हारे भानजे अभिमन्यु का बालक है, अश्वत्थामा के अस्त्र से मरा हुआ ही उत्पन्न हुआ है। केशव! इसे जीवन-दान दो। ‘यदुनन्दन! प्रभो! अश्वत्थामा ने जब सींक के बाण का प्रयोग किया था, उस समय तुमने यह प्रतिज्ञा की थी कि मैं उत्तरा के मरे हुए बालक को भी जीवित कर दूँगा। ‘तात! वही यह बालक है, जो मरा हुआ ही पैदा हुआ है। पुरुषोत्तम! इस पर अपनी कृपा दृष्टि डालो। माधव! इसे जीवित करके ही उत्तरा, सुभद्रा और द्रौपदी सहित मेरी रक्षा करो। ‘दुर्धर्ष वीर! धर्मपुत्र युधिष्ठर, भीमसेन, अर्जुन, नकुल और सहदेव की भी रक्षा करो। तुम हम सब लोगों का इस सकंट से उद्धार करने योग्य हो।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ पहले तो पुत्र- जन्म के समाचार से सबको अपार हर्ष हुआ; किंतु उनमें जीवन का कोई चिन्ह न देखकर तत्काल शोक का समुद्र उमड़ पड़ा।