महाभारत आश्‍वमेधिक पर्व अध्याय 87 श्लोक 17-28

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सप्‍ताशीतितम (87) अध्याय: आश्‍वमेधिकपर्व (अनुगीता पर्व)

महाभारत: आश्‍वमेधिकपर्व: सप्‍ताशीतितम अध्याय: श्लोक 17-28 का हिन्दी अनुवाद

उच्‍चै: श्रवा के समान वेबवान् और पास ही विद्यमान उस यज्ञ सम्‍बन्‍धी घोड़े की टाप से उड़ी हुई धूल आकाश में अदभुत् शोभा पा रही थी। वहां अर्जुन ने लोगों के मुंह से हर्ष बढ़ाने वाली बातें इस प्रकार सुनीं – ‘पार्थ ! यह बड़े सौभाग्‍य की बात है कि तुम सकुशल लौट आये । राजा युधिष्‍ठिर धन्‍य हैं । ‘अर्जुन के सिवा दूसरा कौन ऐसा वीर पुरुष है जो समूची पृथ्‍वी को जीतकर युद्ध में राजाओं को परास्‍त करके और अपने श्रेष्‍ठ अश्‍वकको सर्वत्र घुमाकर उसके साथ सकुशल लौट आ सके। ‘अतीत काल में जो सगर आदि महामनस्‍वी राजा हो गये हैं, उनका भी कभी ऐसा पराक्रम हमारे सुनने में नहीं आया था । ‘कुरुकुल श्रेष्‍ठ ! आपने जो दुष्‍कर पराक्रम कर दिखाया है, उसे भविष्‍य में होने वाले भूपाल नहीं कर सकेंगे’ । इस प्रकार कहते हुए लोगों की श्रवण सुखद बातें सुनते हुए धर्मात्‍मा अर्जुन ने यज्ञ मण्‍डप में प्रवेश किया । उस समय मन्‍त्रियों सहित राजा युधिष्‍ठर तथा यदुनन्‍दन श्रीकृष्‍ण धृतराष्‍ट्र को आगे करके उनकी अगवानी के लिये आगे बढ़ आये थे । अर्जुन के पिता धृतराष्‍ट्र और बुद्धिमान् धर्मराज युधिष्‍ठिर के चरणों में प्रणाम करके भीमसेन आदि का भी पूजन किया और श्रीकृष्‍ण को हृदय से लगाया । उन सबने मिलकर अर्जुन का बड़ा स्‍वागत –सत्‍कार किया । महाबाहु अर्जुन ने भी उनका विधिपूर्वक आदर – सत्‍कार करके उसी तरह विश्राम किया, जैसे समुद्र के पार जाने की इच्‍छा वाला पुरुष किनारे पर पहुंचकर विश्राम करता है । इसी समय बुद्धिमान् राजा बभ्रुवाहन अपनी दोनों माताओं के साथ कुरुदेश में जा पहुंचा । वहां पहुंचकर वह महाबाहु नरेश कुरुकुल के वृद्ध पुरुषों तथा अन्‍य राजाओं को विधिवत् प्रणाम करके स्‍वयं भी उनके द्वारा सत्‍कार पाकर बहुत प्रसन्‍न हुआ । इसके बाद वह अपनी पितामही कुन्‍ती के सुन्‍दर महल में गया ।

इस प्रकार श्रीमहाभारत आश्‍वमेधिक पर्व के अन्‍तर्गत अनुगीता पर्व में अर्जुन का प्रत्‍यागमन विषयक सतासीवां अध्‍याय पूरा हुआ ।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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