महाभारत आश्‍वमेधिक पर्व अध्याय 90 श्लोक 1-17

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नवतितम (90) अध्याय: आश्‍वमेधिकपर्व (अनुगीता पर्व)

महाभारत: आश्‍वमेधिकपर्व: नवतितम अध्याय: श्लोक 1-17 का हिन्दी अनुवाद
युधिष्‍ठिर के यज्ञ में एक नेवले का उंछवृत्‍तिधारी ब्राह्मण के द्वारा किये गये सेरभर सत्‍तूदान की महिमा उस अश्‍वमेध यज्ञ से भी बढ़कर बतलाना

जनमेजयने पूछा – ब्रह्मन् ! मेरे प्रपितामह बुद्धिमान् धर्मराज युधिष्‍ठिर के यज्ञ में यदि कोई आश्‍चर्यजनक घटना हुई हो तो आप उसे बताने की कृपा करें।वैशम्‍पायनजीने कहा – नृपश्रेष्‍ठ ! प्रभो ! युधिष्‍ठिर का वह महान् अश्‍वमेध – यज्ञ जब पूरा हुआ, उसी समय एक बड़ी उत्‍तम किंतु महान् आश्‍चर्य में डालने वाली घटना घटित हुई, उसे बतलाता हूं ; सुनो।भरतश्रेष्‍ठ ! भरत ! उस यज्ञ में श्रेष्‍ठ ब्राह्मणों, जाति वालो, सम्‍बन्‍धियों, बन्‍धु – बान्‍धवों, अन्‍धों तथा दीन – दरिद्र के तृप्‍त हो जाने पर जब युधिष्‍ठिर के महान् दान का चारों ओर शोर हो गया और धर्मराज के मस्‍तक पर फूलों की वर्षा होने लगी उसी समय वहां एक नेवला आया । अनघ ! उसकी आंखें नीली थी और उसके शरीर के एक ओर का भाग सोने का था । पृथ्‍वीनाथ ! उसने आते ही एक बार वज्र के समान भयंकर गर्जना की। बिल निवासी उस धृष्‍ट एवं महान नेवले ने एक बार वैसी गर्जना करके समस्‍त मृगों और पक्षियों को भयभीत कर दिया और फिर मनुष्‍य की भाषा में कहा-‘राजाओ ! तुम्‍हारा यह यज्ञ कुरुक्षेत्र निवासी एक उंछवृत्‍तिधारी उदार ब्राह्मण के सेर भर सत्‍तू दान करने के बराबर भी नहीं हुआ है’।प्रजानाथ ! नेवले की वह बात सुनकर समस्‍त श्रेष्‍ठ ब्राह्मणों को बड़ा आश्‍चर्य हुआ। तब वे सब ब्राह्मण उस नेवले के पास जाकर उसे चारों ओर से घेरकर पूछने लगे – नकुल ! इस यज्ञ में तो साधु पुरुषों का ही समागम हुआ है, तुम कहा से आ गये ?’ ‘तुम में कौन – सा बल और कितना शास्‍त्र ज्ञान है ? तुम किसके सहारे रहते हो ? हमें किस तरह तुम्‍हारा परिचय प्राप्‍त होगा ? तुम कौन हो, जो हमारे इस यज्ञ की निन्‍दा करते हो ? ‘हमने नाना प्रकार की यज्ञ – सामग्री एकत्रित करके शास्‍त्रीय विधि की अवहेनला न करते हुए इस यज्ञ को पूर्ण किया है । इसमें शास्‍त्र संगत और न्‍याय युक्‍त प्रत्‍येक कर्तव्‍य – कर्म का यथोचित पालन किया गया है।‘इसमें शास्‍त्रीय दृष्‍टि से पूजनीय पुरुषों की विधिवत पूजा की गयी है । अग्‍नि में मंत्र पढ़कर आहुति दी गयी है और देने योग्‍य वस्‍तुओं का ईर्ष्‍या रहित होकर दान किया गया है।‘यहां नाना प्रकार के दानों से ब्राह्मणों को उत्‍तम युद्ध के द्वारा क्षत्रियों को, श्राद्ध के द्वारा पितामहों को, रक्षा के द्वारा वैश्‍यों को, दया से शुद्रों को, दान से बची हुई वस्‍तुएं देकर अन्‍य मनुष्‍यों को तथा राजा के शुद्ध बर्ताव से ज्ञाति एवं सम्‍बन्‍धियों को सन्‍तुष्‍ट किया गया है । इसी प्रकार पवित्र हविष्‍य के द्वारा देवताओं को और रक्षा का भार लेकर शरणागतों को प्रसन्‍न किया गया है।‘यह सब होने पर भी तुमने क्‍या देखा या सुना है, जिससे इस यज्ञ पर आक्षेप करते हो ? इन ब्राह्मणों के निकट इनके इच्‍छानुसार पूछे जाने पर तुम सच – सच बताओ ; क्‍योंकि तुम्‍हारी बातें विश्‍वास के योग्‍य जान पड़ती हैं । तुम स्‍वयं भी बुद्धिमान् दिखाई देते और दिव्‍य रूप धारण किये हुए हो । इस समय तुम्‍हारा ब्राह्मणों के साथ समागम हुआ है, इसलिये तुम्‍हें हमारे प्रश्‍न का उत्‍तर अवश्‍य देना चाहिये’।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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