महाभारत कर्ण पर्व अध्याय 23 श्लोक 1-22

अद्‌भुत भारत की खोज
Bharatkhoj (वार्ता | योगदान) द्वारा परिवर्तित १२:३०, १९ जुलाई २०१५ का अवतरण (Text replace - "{{महाभारत}}" to "{{सम्पूर्ण महाभारत}}")
(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
नेविगेशन पर जाएँ खोज पर जाएँ

त्रयोविंश (23) अध्याय: कर्ण पर्व

महाभारत: कर्ण पर्व: त्रयोविंश अध्याय: श्लोक 1-22 का हिन्दी अनुवाद

सहदेव के द्वारा दुःशासन की पराजय

संजय कहते हैं-महाराज् ! सहदेव क्रोध में भरकर आपकी विशाल सेना को दग्ध करने लगे । उस समय भाई दुःशासन ने अपने उस भ्राता का सामना किया। उस महायुद्ध में उन दोनों भाइयों को एकत्र हुआ देख वहाँ खड़े हुए महारथी योद्धा सिंहनाद करने और वस्त्र हिलाने लगे। भारत ! उस समय कुपित हुए आपके धनुर्धर पुत्र ने अपने तीन बाणों द्वारा बलवान् पाण्डु पुत्र सहदेव की छाती में गहरा आघात किया। राजन् ! तब सहदेव ने आपके पुत्र को एक नाराच से घायल करके पुनः सत्तर बाणों से बींध डाला । तत्पश्चात् उनके सारथि को भी तीन बाण मारे। राजन् ! महासमर में दुःशासन ने सहदेव का धनुष काअकर उनकी दोनों भुजाओं और छाती में तिहत्तर बाण मारे। तब सहदेव ने अत्यन्त कुपित होकर उस महासमर में तलवार उठा ली और उसे घुमाकर तुरंत ही आपके पुत्र के रथ की ओर फेंका। उनकी वह लंबी तलवार दुःशासन के धनुष,बाण और प्रत्यन्चा को काअकर आकाश से भ्रष्ट हुएसर्प की भाँति वहाँ पृथ्वी पर गिर पड़ी। तदनन्तर प्रतापी सहदेव ने दूसरा धनुष लेकर दुःशासन पर एक विनाशकारी बाण का प्रहार किया। यमदण्ड के समान प्रकाशित होने वाले उस बाण को आते देख कुरुवंशी दुःशासन ने तीखी धार वाले खंग से उसके दो टुकड़े कर डाले। तत्पश्चात् दःशासन ने युद्ध स्थल में तुरंत ही तीखी तलवार घुमाकर सहदेव पर दे मारी;फिर उस पराक्रमी वीर ने दूसरा धनुष लेकर उसपर बाण का संधान किया। सहदेव ने हँसते हुए से सहसा अपनी ओर आती हुई उस तलवार को तीखे बाणों से समर भूमि में गिरा दिया। भारत् ! इतने में ही आपके पुत्र ने उस महासमर में सहदेव पर तुरंत ही चैसठ बाण चलाये। राजन् ! सहदेव ने रणभूमि में वेग से आते हुए उन बहुसंख्यक बाणों में से प्रत्येक को पाँच-पाँच बाण मारकर काअ गिराया। इस प्रकार आपके पुत्र के चलाये हुए उन महाबाणों का निवारण करके युद्ध स्थल में सहदेव ने उसके ऊपर भी बहुत से बाण छोड़े। आपके पुत्र ने भी सहदेव के उन बाणों में से प्रत्येक को तीन-तीन बाणों से काटकर पृथ्वी को विदीर्ण-सी करते हुए बड़े जोर से गर्जना की। राजन् ! इसके बाद दुःशासन ने रणभूमि में पाण्डु कुमार सहदेव को घायल करके उन माद्रीकुमार के सारथि को भी नौ बाण मारे। महाराज् ! इससे कुपित होकर प्रतापी सहदेव ने अपने ानुष पर मृत्यु,काल और यमराज के समान भयंकर बाण रक्खा। फिर उस धनुष को बलपूर्वक खींचकर उसने आपके पुत्र पर वह बाण छोड़ दिया । राजन् ! वह बाण दुःशासन को तथा उनके विशाल कवच को भी वेगपूर्वक विदीर्ण करके बाँबी में घुसने वाले सर्प के समान धरती में समा गया । महाराज ! इससे आपका महारथी पुत्र मूर्छित हो गया। उसे मुर्छित देख उसका सारथि तीखे बाणों की मार खाकर अत्यन्त भयभीत हो तुरंत ही रथ को रणभूमि से दूर हटा ले गया। कुरुवंशी दुःशासन को रणभूमि में पराजित करके पाण्डु नन्दन सहदेव ने दुर्योधन की सेना को वहाँ उपस्थित देख उसे सब ओ से मथ डाला। भरतवंशी नरेश ! जैसे मनुष्य रोष में ओर चींटियों के दल को मसल डालता है,उसी प्रकार सहदेव ने उस कौरव सेना को धूल में मिला दिया।

इस प्रकार श्रीमहाभारत में कर्णपर्व में सहदेव और दुःशासन का युद्ध विषयक तेईसवाँ अध्याय पूरा हुआ।


« पीछे आगे »

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

साँचा:सम्पूर्ण महाभारत अभी निर्माणाधीन है।