महाभारत कर्ण पर्व अध्याय 28 श्लोक 23-40

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अष्टविंश (28) अध्याय: कर्ण पर्व

महाभारत: कर्ण पर्व: अष्टविंश अध्याय: श्लोक 23-40 का हिन्दी अनुवाद

प्रहार का अवसर मिलने पर पैदल सैनिक भी चारों ओर से हाथियों को गहरी चोट पहुँचाते और वे घोर आर्तनाद करते हुए सम्पूर्ण दिशाओं की ओर भाग जाते थे। पैदल सैनिक युद्ध स्थल में अपने आभूषण त्यागकर तुरंत उछल-उछलकर बडत्रे वेग से भागने लगे। उस समय सहसा भागते हुए उन पैदलों के उन विचित्र आभूषणों को अपने ऊपर प्रहार होने में निमित्त मानकर हाथी उन्हें सूँड़ से उठा लेते और फिर दाँतों से दबा कर फोड़ डालते थे। इस प्रकार आभूषणों में उलझे हुए उन हाथियों और उनके सवारों को चारों ओर से धेरकर महान् वेगशाली तथा बलोन्मत्त पैदल योद्धा मार डालते थे। किते ही पेदल सैनिक उस महासमर में सुशिक्षित हाथियों की सूँड़ों से आकाश में फेंक दिये जाते और उधर से गिरते समय उन हाथियों के दन्ताग्र भागों द्वारा अत्यन्त विदीर्ण कर दिये जाते थे।कितने ही योद्धा हाथियों द्वारा पकड़े जाकर उनके दाँतों से ही मार डाले गये। महाराज ! बहुत से विशालकाय गजराज सेना के भीतर घुसकर कितने ही पैदलों को सहसा पकड़कर उनके शरीरों को बारंबार पटक-झटककर चूर-चूर कर देते और कितनों को व्यजनों के समान घुमाकर युद्ध में मार डालते थे। प्रजानाथ ! जो हाथियों के आगे चलने वाले पैदल थे,वे दूसरे पक्ष के हाथियों के शरीरों को जहाँ-तहाँरण भूमि में अत्यन्त घायल कर देते थे। कहीं-कहीं पैदल सैनिक प्रास,तोमर और शक्ति द्वारा शत्रुपक्ष के हाथियों के दोनों दाँतों के बीच के स्थान में,कुम्भ स्थल में और ओठज्ञें के ऊपर प्रकार करके उन्हें अत्यन्त काबू में कर लेते थे। कितने ही हाथियों को अवरुद्ध करके पाश्र्वभाग में खड़े हुए अत्यन्त भयंकर रथिऔर घुड़सवार उन्हें बाणों से विदीर्ण कर डालते, जिससे वे हाथी वहीं पृथ्वी पर गिर जाते थे। उस महासमर में कितने ही हाथी सवार सहसा तोमर का प्रहार करके ढाल सहित पैदल योद्धा को गिराकर उसे वेग पूर्वक धरती पर रौंद डालते थे। माननीय नरेश ! उस घोर एवं भयानक युद्ध में कितने ही हाथी निकट ओर अपनी सूँड़ों से कुछ आवरण युक्त रथों को पकड़ लेते और उन्हें वेग पूर्वक खींचकर सहसा दूर फेंक देते थे। फिर वे महाबली हाथी भी नाराचों से मारे जाकर वज्र के तोड़े हुए पर्वत-शिखर की भाँति पृथ्वी पर गिर पडत्रते थे। बहुत-से पैदल योद्धा दूसरे योद्धाओं को निकट पाकर युद्ध स्थल में उन पर मुक्कों से प्रहार करने लगते थे। कितने ही एक दूसरे की चुटिया पकड़कर परस्पर झटकते-फेंकते और एक दूसरे को घायल करते थे। दूसरा योद्धा अपनी दोनों भुजाओं को उठाकर उनके द्वारा शत्रृ को पृथ्वी पर पटक देता और एक पैर से उसकी छाती को दबाकर उसके छटपटाते रहने पर भी उसका सिर काट लेता था। राजन् ! दूसरा सैनिक किसी गिरते हुए योद्धा का सिर अपनी तलवार से काट लेता था और कोई जीवित शत्रु के ही शरीर में अपना शस्त्र घुसेड़ देता था। भारत ! वहाँ योद्धाओं में बहुत बड़ा मुष्टि युद्ध हो रहा था। साथ ही भयंकर केश ग्रहण और भयानक बाहु युद्ध भी चालू था। कोई-कोई योद्धा दूसरे के साथ उलझे हुए सैनिको से सवयं अपरिचित रहकर नाना प्रकार के अने अस्त्र-शस्त्रों द्वारा यु0 में उसके प्राण कर लेता था।



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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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