महाभारत द्रोणपर्व अध्याय 145 श्लोक 42-62

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पंचत्वारिंशदधिकशततम (145) अध्याय: द्रोणपर्व (जयद्रथवध पर्व )

महाभारत: द्रोणपर्व: पंचत्वारिंशदधिकशततम अध्याय: श्लोक 42-62 का हिन्दी अनुवाद

दुर्योधन, कर्ण, वृषसेन, मद्रराज शल्य, अश्वत्थामा, कृपाचार्य तथा स्वयं सिंधुराज जयद्रथ इन सबने जयद्रथ की रक्षा के लिये संनद्ध होकर किरीटधारी अर्जुन को सब ओर से घेर लिया। उस समय युद्धकुशल कुन्तीकुमार धनुष की टन्कार करते हुए रथ के मार्गों पर नाच रहे थे और मुंह बाये हुए यमराज के समान भयंकर जान पड़ते थे। उन्हें युद्धविशारद समस्त कौरव महारथियों ने निर्भय हो चारों ओर से घेर लिया। वे श्रीकृष्ण और अर्जुन को मार डालने की इच्छा से सिंधुराज जयद्रथ को पीछे करके सूर्यास्त होने की इच्छा और प्रतीक्षा करने लगे। उस समय सूर्य लाल-से हो चले थे। उन कौरव सैनिकों ने सर्प के शरीर के समान प्रतीत होने वाली अपनी भुजाओं द्वारा धनुषों को नवाकर अर्जुन पर सूर्य की किरणों के समान चमकीले सैकड़ों बाण छोड़े। तदनन्तर रणदुर्मद किरीटधारी अर्जुन ने उन छोड़े गये बाणों में से प्रत्येक के दो-दो, तीन-तीन और आठ-आठ टुकड़े करके उन रथियों को भी घायल कर दिया। राजन् ! जिनकी ध्वजा में सिंह की पूंछ का चिन्ह था, उन शारद्वती पुत्र कृपाचार्य ने अपना बल पराक्रम दिखाते हुए अर्जुन को रोका। वे दस बाणों से अर्जुन को और सात से श्रीकृष्ण को घायल करके रथ के मार्गों पर जयद्रथ की रक्षा करते हुए खड़े थे। तत्पश्चात् कौरव सेना के सभी श्रेष्ठ महारथियों ने विशाल रथ समूह के द्वारा कृपाचार्य को सब ओर से घेर लिया। वे आपके पुत्र की आज्ञा से धनुष खींचते और बाण छोड़ते हुए वहां जयद्रथ की सब ओर से रक्षा करने लगे। तत्पश्चात् वहां शूरवीर कुन्तीकुमार की भुजाओं का बल देखा गया। उनके गाण्डीव धनुष तथा बाणों की अक्षयता का परिचय मिला। उन्होंने अश्वत्थामा तथा कृपाचार्य के अस्त्रों का अपने अस्त्रों द्वारा निवारण करके बारी-बारी से उन सबको दस-दस बाण मारे। अश्वत्थामा ने पचीस, वृषसेन ने सात, दुर्योधन ने बीस तथा कर्ण और शल्य ने तीन-तीन बाणों से अर्जुन को घायल कर दिया। वे अर्जुन को लक्ष्य करके बार-बार गरजते, उन्हें बारंबार बाणों से बींधते और धनुष को हिलाते हुए सब ओर से उन्हें आगे बढ़ने से रोकने लगे। उन महारथियों ने सूर्यास्त की इच्छा रखते हुए बड़ी उतावली के साथ अपने रथ समूह को परस्पर सटाकर सब ओर से खड़ा कर दिया। जैसे बादल पर्वतशिखर पर अपने जल की बूंदों से आघात करते हैं, उसी प्रकार वे कौरव महारथी धनुष हिलाते तथा अर्जुन के सामने गर्जना करते हुए उन पर तीखे बाणों की वर्षा करने लगे। राजन् ! परिध के समान सुदृढ़ भुजाओं वाले उन शूरवीरों ने अर्जुन के शरीर पर वहां बड़े-बड़े दिव्यास्त्रों का प्रदर्शन किया। तथापि सत्यपराक्रमी बलवान एवं दुर्धर्ष वीर अर्जुन ने आपकी सेना के अधिकांश योद्धाओं का संहार करके सिन्धुराज पर आक्रमण किया। राजन ! भरतनन्दन ! उस युद्धस्थल में कर्ण ने भीमसेन और सात्यकि के देखते-देखते अपने शीघ्रगामी बाणों द्वारा अर्जुन को आगे बढ़ने से रोक दिया। तब महाबाहु अर्जुन ने समरागण में सारी सेना के देखते-देखते सूत पुत्र कर्ण को दस बाणों से घायल कर दिया। माननीय नरेश ! तदनन्तर सात्यकि ने तीन बाणों से कर्ण को वेध दिया, फिर भीमसेन ने भी उसे तीन बाण मारे और अर्जुन ने पुनः सात बाणों से कर्ण को घायल कर दिया।



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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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