महाभारत द्रोणपर्व अध्याय 166 श्लोक 44-64

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षट्षष्ट्यधिकशततम (166) अध्याय: द्रोणपर्व (घटोत्‍कचवध पर्व )

महाभारत: द्रोणपर्व: षट्षष्ट्यधिकशततमअध्याय: श्लोक 44-64 का हिन्दी अनुवाद

जैसे कभी-कभी चन्द्रमा और सूर्य आकाश में मेघों के समूह से आच्छादित हुए देखे जाते हैं, उसी प्रकार समरागंण में वे दोनों वीर सायकसमूहों से आच्छन्न दिखायी देते थे।। भरतश्रेष्ठ! राजा दुर्योधन ने भीमसेन को पाँच बाणों से घायल कर दिया और कहा- ‘खड़ा रह, खड़ा रह’। तब भीमसेन ने दस बाण मारकर उसके धनुष और ध्वज काट डाले और झुकी हुई गाँठवाले नब्बे बाणों से कौरवश्रेष्ठ दुर्योधन को गहरी चोट पहुँचायी। तत्पश्चात् भरतश्रेष्ठ दुर्योधन ने कुपित हो दूसरा विशाल धनुष हाथ में लेकर युद्ध के मुहाने पर सम्पूर्ण धनुर्धरों के देखते-देखते पैने बाणों द्वारा भीमसेन को पीड़ा देनी आरम्भ की।। दुर्योधन के धनुष से छूटे हुए उन सभी बाणों को नष्ट करके भीमसेन ने उस कौरव-नरेश को पचीस बाण मारे। आर्य! इससे दुर्योधन अत्यन्त कुपित हो उठा और उसने एक क्षुरप्र से भीमसेन का धनुष काटकर उन्हें दस बाणों से घायल कर दिया। तब महाबली भीमसेन ने दूसरा धनुष हाथ में लेकर तुरंत ही कौरव-नरेश को सात तीखे बाणों से बींध डाला। दुर्योधन ने शीघ्रतापूर्वक हाथ चलाने वाले कुशल योद्धा की भाँति भीमसेन के उस धनुष को भी शीघ्र ही काट दिया। महाराज! भीमसेन के हाथ में लिये हुए दूसरे, तीसरे, चौथे और पाँचवें धनुष को भी विजय से उल्लसित होने वाले आपके मदोन्मत्त पुत्र ने काट डा। इस प्रकार जब बारंबार धनुष काटे जाने लगे, तब भीमसेन ने समरभूमि में सम्पूर्णतः लोहे की बनी हुई एक सुन्दर शक्ति चलायी, जो मौत की सगी बहिन के समान जान पड़ती थी। वह आप की ज्वाला के समान प्रकाशित हो रही थी।। आकाश में सीमन्त की रेखा सी बनाती हुई अग्नि के समान देदीप्यमान होने वाली उस शक्ति के अपने पास आने से पहले ही कौरव-नरेश ने तीन टुकड़े कर दिये। सम्पूर्ण योद्धाओं तथा महामना भीमसेन के देखते-देखते यह कार्य हो गया।। महाराज! तब भीमसेन ने अपनी अत्यन्त तेजस्विनी गदा को बड़े वेग से घुमाकर दुर्योधन के रथ पर दे मारा। युद्धस्थल में उस भारी गदा ने सहसा आपके पुत्र के चारों घोड़ों, सारथि और रथ का भी मर्दन कर दिया। राजेन्द्र! उस समय आपका पुत्र भीमसेन से भयभीत हो पहले ही भागकर महामना नन्दक के रथ पर जा बैठा था। उस समय भीमसेन ने आपके महारथी पुत्र को मारा गया मानकर रात के समय कौरवों को डाँट बताते हुए बड़े जोर-जोर से सिंहनाद किया। आपके सैनिकों ने भी राजा दुर्योधन को मरा हुआ ही मान लिया था, अतः वे सब ओर जोर-जोर से हाहाकार करने लगे। राजन्! उन भयभीत हुए सम्पूर्ण योद्धाओं का आर्तनाद तथा महामनस्वी भीमसेन की गर्जना सुनकर दुर्योधन को मरा हुआ मान राजा युधिष्ठिर बडे़ वेग से उस स्थान पर आ पहुँचे, जहाँ कुन्तीकुमार भीमसेन दहाड़ रहे थे। प्रजानाथ! फिर तो पान्चाल, मत्स्य, केकय और संजय योद्धा युद्ध की इच्छा से पूर्ण उद्योग करके द्रोणाचार्य पर ही टूट पडे़। वहाँ शत्रुओं के साथ द्रोणाचार्य का बड़ा भारी संग्राम हुआ। सब लोग घोर अन्धकार में डूबकर एक-दूसरे पर घातक प्रहार कर रहे थे।

इस प्रकार श्रीमहाभारत द्रोणपर्व के अन्‍तर्गतघटोत्‍कचवध पर्व में रात्रियुद्ध के प्रसंग में दुर्योधन का पलायन विषयक एक सौ छाछठवां अध्‍याय पूरा हुआ।



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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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