महाभारत द्रोण पर्व अध्याय 30 श्लोक 24-42
त्रिंशो (30) अध्याय: द्रोणपर्व (संशप्तकवध पर्व )
उस महासमर में प्रकट हुए उस भयदायक घोर एवं भयानक अंधकार को अर्जुन ने अपने विशाल उत्तम ज्योतिर्मय अस्त्र द्वारा नष्ट कर दिया। उस अधंकार का निवारण हो जाने पर बड़े भयंकर जल प्रवाह प्रकट होने लगे । तब अर्जुन ने उस जल के निवारण के लिये आदित्यास्त्र का प्रयोग किया । उस अस्त्र ने वहां का सारा जल सोख लिया। इस प्रकार सुबलपुत्र शकुनि के द्वारा बारंबार प्रयुक्त हुई नाना प्रकार की मायाओं को उस समय अर्जुन ने अपने अस्त्र बल से हॅसते-हसते शीघ्र ही नष्ट कर दिया। तब मायाओं का नाश हो जानेपर अर्जुन के बाणोंसे आहत एवं भयभीत होकर शकुनि अधम मनुष्यों की भॉति तेज चलनेवाले घोड़ों के द्वारा भाग खड़ा हुआ। तदनन्तर अस्त्रों के ज्ञाता अर्जुन शत्रुओं को अपनी फुर्ती दिखाते हुए कौरव सेनापर बाण समूहों की वर्षा करने लगे। महाराज ! अर्जुन के द्वारा मारी जाती हुई आपके पुत्र की विशाल सेना उसी प्रकार दो भागों में बट गयी, मानो गगा किसी विशाल पर्वत के पास पहॅुचकर दो धाराओं मे विभक्त हो गयी हों। राजन ! किरीटधारी अर्जुन से पीडित हो आपकी सेना के कितने ही नरश्रेष्ठ द्रोणाचार्य के पीछे जा छिपे और कितने ही सैनिक राजा दुर्योधन के पास भाग गये। महाराज ! उस समय हमलोग उड़ती हुई धूलराशि से व्याप्त हुई सेना में कही अर्जुन को देख नही पाते थे । मुझे तो दक्षिण दिशा की ओर केवल उनके धनुष की टंकार सुनायी देती थी।शख और दुन्दुभियों की ध्वनि, वाधों के शब्द तथा गाण्डीव धनुष के गम्भीर घोष आकाश को लॉधकर स्वर्ग तक जा पहॅुचे। तत्पश्चात् पुन: दक्षिण दिशा में विचित्र युद्ध करनेवाले योद्धाओं का अर्जुनके साथ बड़ी भारीयुद्ध होने लगा और मैं द्रोणाचार्य के पास चला गया। भरतनन्दन ! युधिष्ठिर सेना के सैनिक इधर-उधर से घातक प्रहार कर रहे थे । जैसे वायु आकाश में बादलों को छिन्न-भिन्न कर देती है, उसी प्रकार उस समय अर्जुन आपके पुत्रों की विभिन्न सेनाओं का विनाश करने लगे। इन्द्रकी भॉति बाणरूपी जलराशि की अत्यन्त वर्षा करनेवाले भयंकर वीर अर्जुन को आते देख कोई भी महाधनुर्धर पुरूषसिंह कौरव योद्धा उन्हें रोक न सके।अर्जुनकी मार खाकर आपके सैनिक अत्यन्त पीडित हो रहे थे ।उनमे से बहुत तो इधर-उधर भागते समय अपने ही पक्ष के योद्धाओंको मार डालते थे। अर्जुन के द्वारा छोडे हुए कंक पक्ष से युक्त बाण विपक्षी वीरों के शरीर को छेद डालने वाले थे । वे सम्पूर्ण दिशाओं को आच्छादित करते हुए टिडीदल के समान वहां सब ओर गिरने लगे। आर्य ! वे बाण घोड़े, रथी, हाथी और पैदल सैनिकों के भी विदीर्ण करके उसी प्रकार धरती में समा जाते थे, जैसे सर्प बॉबी में प्रवेश कर जाते है। हाथी, घोड़े और मनुष्यो पर अर्जुन दूसरा बाण नही छोड़ते थे । वे सब के सब पृथक्-पृथक् एक ही बाण से घायल हो प्राण शून्य होकर धरती पर गिर पड़ते थे। बाणों के आघात से घायल होकर ढेर के ढेर मनुष्य मरे पड़े थे । चारो ओर हाथी धराशायी हो रहे थे और बहुत से घोड़े मार डाले गये थे । उस समय कुत्तों और गीदड़ों के समूह से कोलाहलपूर्ण होकर वह युद्ध का प्रमुख भाग अद्रुत प्रतीत हो रहा था। वहां पिता पुत्र को त्याग देता था, सुहृद् अपने श्रेष्ठ सुहृद् को छोड़ देता था तथा पुत्र बाणों के आधात से आतुर होकर अपने पिता को भी छोड़कर चल देता था । उस समय अर्जुन के बाणों से पीडित हुए सब लोग अपने-अपने प्राण बचने की ओर ध्यान देकर सवारियो को भी छोड़कर भाग जाते थे।
इस प्रकार श्रीमहाभारत द्रोणपर्व के अन्तर्गत संशप्तकवधपर्व में शकुनि का पलायन विषयक तीसवाँ अध्याय पूरा हुआ।
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