महाभारत भीष्म पर्व अध्याय 48 श्लोक 62-83

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अष्टचत्वारिंश (48) अध्‍याय: भीष्म पर्व (भीष्‍मवध पर्व)

महाभारत: भीष्म पर्व: अष्टचत्वारिंश अध्याय: श्लोक 62-83 का हिन्दी अनुवाद

राजा दुर्योधन की यह बात सुनकर सब महारथी बडी उतावली के साथ वहां आये और चतुरगिणी सेना द्वारा गंगा-नन्दन भीष्म की रक्षा करने लगे। भारत ! बाह्रीक, कृतवर्मा, शल, शल्य, जससंघ, विकर्ण, चित्रसेन और विविंशति-इन सबने शीघ्रता के अवसर पर शीघ्रता करते हुए चारों और से भीष्मजी को घेर लिया और श्वेत के ऊपर भयंकर शस्त्र वर्षा करने लगे। तब अपरिमित आत्मबल से सम्पन्न महारथी श्वेतने अपने हाथों की फुर्ती दिखाते हुए बडी उतावली के साथ क्रोधपूर्वक पैने बाणों द्वारा उन सबको रोक दिया। जैसे सिंह हाथियों के समूह को आगे बढने से रोक देता है, उसी प्रकार उन सभी महारथियों को रोककर भारी बाणवर्षा के द्वारा श्वेतने भीष्मका धनुष काट दिया।

राजेन्द्र ! तब शान्तनुनन्दन भीष्म ने दूसरा धनुषलेकर युद्धस्थल कंकपत्रयुक्त पैने बाणोंद्वारा श्वेत को घायल कर दिया। राजन् ! तब सेनापति श्वेत ने कुपित हो उस समरभूमि में बहुत-से लोहमय बाणोंद्वारा सब लोगो के देखते-देखते भीष्म को क्षत-विक्षत कर दिया। श्वेतने सम्पूर्ण विश्व के विख्यात वीर भीष्मको युद्ध में आगे बढने से रोक दिया, यह देखकर राजा दुर्योधन के मन में बडी व्यर्था हुई साथ ही आपकी सेनामें सब लोगों पर महान् भय छा गया। श्वेतने वीरवर भीष्म को कुण्ठित कर दिया ओर उनका शरीर बाणों से क्षत-विक्षत हो गया है, यह देखकर सब लोग यह मानने लगे की भीष्मजी श्वेत वश में पड़ गये और उन्हीं के हाथ से मारे जायेंगे। अब आपके पिता देवव्रत भीष्म अपने ध्वजको टूटकर गिरा हुआ और सेना को निवारित की हुई देखकर क्रोध के अधीन हो गये। महाराज ! उन्होनें श्वेत पर बहुत-से बाणों की वर्षा की, परन्‍तुरथियों में श्रेष्ठ श्वेत ने रणक्षेत्र में उन सब सायको का निवारण करके पुनः एक भल्ल के द्वारा आपके पिता भीष्म का धनुष काट दिया। राजन् ! यह देख गंगानन्दन भीष्म ने क्रोध मुर्च्छित हो उस धनुष को फेंककर दूसरा अत्यन्त प्रबल एवं विशाल धनुष ले लिया और उसके ऊपर पत्थरपर रगडकर तेज किये हुए सात विशाल भल्लों का संघान किया। उनमें से चार भल्लों के द्वारा उन्होनें सेनापति श्वेत के चार घोड़ोंको मार डाला, दो से उनका ध्वज काट दिया और अपनी फुर्ती का परिचय देते हुए सातवें भल्ल के द्वारा क्रोधपूर्वक उनके सारथीका सिर उड़ादिया। घोडे़ और सारथी के मारे जाने पर महाबली श्वेत उस रथ से कूद पडे़ और अमर्षके वशीभूत होकर व्याकुल हो उठे। रथियों में श्रेष्ठ श्वेत का रथहीन हुआ देख पितामह भीष्मने चारों और से पैने बाणसमूहों द्वारा उन्हें पीड़ादेनी प्रारम्भ की। उस समरभूमि में भीष्मजी के धनुष से छूटे हुए बाणों द्वारा पीडित होने पर श्वेत ने धनुष को रथपर ही छोड़कर सुवर्णमयी शक्ति हाथ में ले ली। अत्यन्त अग्र, महाभयंकर, कालदण्ड के समान घोर और मृत्यु की जिह्रा-सी प्रतीत होनेवाली उस शक्ति को श्वेतने हाथ में उठाया और लंबी सांस लेते हुए रणक्षेत्र में शान्तनुपुत्र भीष्म से इस प्रकार कहा-‘भीष्म ! इस समय साहसपूर्वक खडे़ रहो। मुझे देखों और पुरूष बनो’, ऐसा कहकर अमित आत्मबल से सम्पन्न महा-धनुर्धर और पराक्रमी वीर श्वेत ने भीष्मपर वहसर्पके समान भयंकर शक्ति चलायी। श्वेत पाण्डवों का हित और आपके पक्ष का अहित करने की इच्छा से पराक्रम दिखा रहे थे।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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