महाभारत भीष्म पर्व अध्याय 82 श्लोक 43-62

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द्वयशीतितम (82) अध्‍याय: भीष्म पर्व (भीष्‍मवध पर्व)

महाभारत: भीष्म पर्व: द्वयशीतितम अध्याय: श्लोक 43-62 का हिन्दी अनुवाद

उस समय उस दिव्यास्त्र ने उस राक्षसी माया को तत्काल भस्म करके अलम्बुष के ऊपर सब ओर से दूसरे-दूसरे बाणों की उसी प्रकार वर्षा आरम्भ की, जैसे वर्षा ऋतु में मेघ पर्वत पर जल की धाराएँ गिराता है। परमयशस्वी मधुवंशी सात्यकि के द्वारा इस प्रकार पीडि़त होने पर वह राक्षस भय से युद्धस्थल में उन्हें छोड़कर भाग गया। जिसे इन्द्र भी युद्ध में हरा नहीं सकते थे, उसी राक्षसराज अलम्बुष को आपके योद्धाओं के देखते-देखते परास्त करके सात्यकि सिंहनाद करने लगे। तत्पश्चात् सत्यपराक्रमी सात्यकिने अपने बहुसंख्यक तीखे बाणों द्वारा आपके अन्य योद्धाओं को भी मारना आरम्भ किया। उस समय उनके भय से पीडि़त हो वे सब योद्धा भागने लगे। महाराज! इसी समय दु्रपद के बलवान् पुत्र धृष्टद्युम्न ने आपके पुत्र राजा दुर्योधन को रणक्षेत्र में झुकी हुई गाँठवाले बाणों से आच्छादित कर दिया। भरतनन्दन! राजेन्द्र! जनेश्वर! धृष्टद्युम्न के बाणों से आच्छादित होने पर भी आपे पुत्र दुर्योधन के मन में व्यथा नहीं हुई। उसने युद्धस्थल में धृष्टद्युम्न को तुरंत ही नब्बे बाणों से घायल कर दिया। यह एक अद्भुत सी बात थी। आर्य! तब महाबली पाण्डव सेनापति ने भी कुपित होकर दुर्योधन के धनुष को काट दिया और शीघ्रतापूर्वक उसके चारों घोड़ों को भी मार डाला। तत्पश्चात् अत्यन्त तीखे सात बाणों द्वारा तुरंत ही दुर्योधन को घायल कर दिया। घोड़े मारे जाने पर बलवान् महाबाहु दुर्योधन अपने रथ से कूद पड़ा और तलवार उठाकर धृष्टद्युम्न की ओर पैदल ही दौड़ा। उस समय महाबली शकुनि ने, जो राजा को बहुत चाहता था, निकट आकर सम्पूर्ण जगत् के अधिपति दुर्योधन को अपने रथ पर चढ़ा लिया। तब शत्रुवीरों का हनन करने वाले धृष्टद्युम्न ने राजा दुर्योधन को पराजित करके आपकी सेना का उसी प्रकार विनाश आरम्भ किया, जैसे वज्रधारी इन्द्र असुरों का विनाश करते हैं। महारथी कृतवर्मा ने रण में भीमसेन को अपने बाणों से बहुत पीडि़त किया और महामेघ जैसे सूर्य को ढक लेता है, उसी प्रकार उसने भीमसेन को आच्छादित कर दिया। तब शत्रुओं को संताप देने वाले भीमसेन ने युद्ध में हँसकर अत्यन्त क्रोधपूर्वक कृतवर्मा पर अनेकों सायकों का प्रहार किया। महाराज! उन सायकों से अत्यन्त पीडि़त होने पर भी अतिरथी एवं सत्यकोविद सात्वतवंशी कृतवर्मा विचलित नहीं हुआ। उसने भीमसेन को पुनः तीखे बाणों से पीडि़त किया। फिर महारथी भीमसेन ने उनके चारों घोड़ों को मारकर ध्वजसहित सुसज्जित सारथि को भी काट गिराया। तत्पश्चात् शत्रुवीरों का हनन करने वाले भीमसेन ने अनेक प्रकार के बाणों से कृतवर्मा के सारे शरीर को क्षत-विक्षत कर दिया। उसके घोड़े मारे जा चुके थे। उस समय भीमसेन के बाणों से उसका सारा शरीर छिन्न-भिन्न सा दिखायी देता था। महाराज! तब घोड़ों के मारे जाने पर कृतवर्मा आपके पुत्र के देखते-देखते तुरंत ही आपके शाले वृषक के रथ पर सवार हो गया। इधर भीमसेन भी अत्यन्त कुपित होकर आपकी सेना पर टूट पडे़ और दण्डपाणि यमराज की भाँति उसका संहार करने लगे।

इस प्रकार श्रीमहाभारत भीष्‍मपर्व के अन्‍तर्गत भीष्‍मवधपर्व में द्वरथयुद्ध विषयक बयासीवां अध्‍याय पूरा हुआ।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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