महाभारत वन पर्व अध्याय 107 श्लोक 42-62

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सप्ताधिकशततमो (107) अध्‍याय: वन पर्व (तीर्थयात्रापर्व )

महाभारत: वन पर्व: सप्ताधिकशततमोअध्याय: श्लोक 42-62 का हिन्दी अनुवाद

अत: असमंजस के घोर भय से आप हमारी रक्षा करें। पुरवासियों का यह भयंकर वचन सुनकर नृपश्रेष्‍ठ सगर दो घड़ी तक अनमने होकर बैठे रहे। फिर मन्त्रियों से इस प्रकार बोले- आज मेरे पुत्र असमंजस को मेरे घर से बाहर निकाल दो । यदि तुम्हें मेरा प्रिय कार्य करना है तो मेरी इस आज्ञा का शीघ्र पालन होना चाहिये। राजन ! महाराज सगर के ऐसा कहने पर मन्त्रियों ने शीघ्र वैसा हीकिया, जैसा उनका आदेश था। युधिष्ठि‍र ! पुरवासियों के हित चाहने वाले महात्मा सगर ने जिस प्रकार अपने पुत्र को निर्वासि तथा, वह सब प्रसंग मैने तुम से कह सुनाया। अब महाधनुर्धर अंशुमान से राजा सगर ने जो कुछ कहा, वह सब तुम्हें बता रहा हॅू, मेरे मुख से सुनो। सगर बोले- बेटा ! तुम्हारे पिता को देने से, अन्य पुत्रों की मृत्यु हो जाने से तथा यज्ञ सम्बंधी अश्व के न मिलने से मैं सर्वथा संतप्त हो रहा हॅू । अत: पौत्र ! यज्ञ में विध्‍न न पड़ जाने से मैं मोहित और दु:ख से संतप्त हॅू, तुम अश्व को ले आकर नरक से मेरा उद्धार करो । महात्मा सगर के ऐसा कहने पर अंशुमान बडे दु:ख से उस स्थान पर गये, जहां पृथ्वी विदीर्ण की गयी थी । उन्होंने उसी मार्ग से समुद्र में प्रवेश किया और महात्मा कपिल तथा यज्ञिय अश्व को देखा । तेजोराशि मुनि प्रवरपुराण पुरुष कपिल जी का दर्शन करके अंशुमान ने धरती पर माथा टेककर प्रणाम किया और उनसे अपना कार्य बताया । भरतवंशी महाराज ! इससे धर्मात्मा कपिल जी अंशुमान पर प्रसन्न हो गये और बोले- मैं तुम्हे वर देने को उधत हूं । अंशुमान ने पहले तो यज्ञ कार्य की सिद्धि के लिये वहां उस अश्व के लिये प्रार्थना की और दूसरा वर अपने पितरों को पवित्र करने की इच्छा से मांगा । तब मुनिश्रेश्ठ महातेजस्वी कपिल ने अंशुमान से कहा- अनध ! तुम्हारा कल्याण हो। तुम जो कुछ मांगते हो वह सब तुम्हे दूंगा। तुममें समा, धर्म और सत्य सब कुछ प्रतिष्‍ठि‍त है। तुम जैसे पौत्र को पाकर राजा सगर कृतार्थ हैं और तुम्हारे पिता तुम्हीं से वस्तुत: पुत्रवान हैं । तुम्हारे ही प्रभाव से सगर के सारे पुत्र जो मेरी क्रोधाग्नि में शलभ की भांति भस्म हो गये है, स्वर्गलोक में चले जायेंगे। तुम्हारा पौत्र भगवान शंकर को संतुष्‍ट करके सगरपुत्रों को पवित्र करने के लिये स्वर्गलोक से यहां गंगाजी को ले आयेगा। परश्रेष्‍ठ ! तुम्हारा भला हो। तुम इस यज्ञिय अश्व को ले जाओ । तात ! महात्मा सगर का यज्ञ पूर्ण करो। महात्मा कपिल के ऐसा कहने पर अंशुमान उस अश्व को लेकर महामना सगर के यज्ञमण्डप में आये और उनके चरणों में प्रणाम करके उनसे सब समाचार निवेदन किया। सगर ने भी स्नेह से अंशुमान का मस्तक सूंघा। अंशुमान ने सगर पुत्रों का विनाश जैसा देखा और सुना था, वह सब बताया, साथ ही यह भी कहा कि यज्ञिय अश्व यज्ञमण्डप में आ गया है। यह सुनकर राजा सगर ने पुत्रों के मरने का दु:ख त्याग दिया । और अंशुमान की प्रशंसा करते हुए उस यज्ञ को पूर्ण किया। यज्ञ पूर्ण हो जाने पर सब देवताओं ने सगर का बड़ा सत्कार किया ।



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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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