महाभारत वन पर्व अध्याय 279 श्लोक 33-48

अद्‌भुत भारत की खोज
Bharatkhoj (वार्ता | योगदान) द्वारा परिवर्तित १३:३५, १९ जुलाई २०१५ का अवतरण (Text replace - "{{महाभारत}}" to "{{सम्पूर्ण महाभारत}}")
नेविगेशन पर जाएँ खोज पर जाएँ

एकोनाशीत्यधिकद्वशततम (279) अध्‍याय: वन पर्व (रामोख्यान पर्व )

महाभारत: वन पर्व: एकोनाशीत्यधिकद्वशततम अध्यायः श्लोक 33-48 का हिन्दी अनुवाद

‘जान पड़ता है, जब आप सीता के साथ अयोध्या में लौटकर पिता-पितामहों की परम्परा से प्राप्त हुए इस भूखण्ड के राज्य पर प्रतिष्ठित होंगे, उस समय मैं आपका दर्शन न कर सकूँगा। ‘जो लोग कुश, लाजा और यामीपत्र आदि के द्वारा राज्य पर अभिषिक्त हुए आप आर्य के मेघों के आवरण से रहित शरत्कालीन चन्द्रमा के समान मनोहर मुख का दर्शन करेंगे, वे धन्य हैं’। बुद्धिमान लक्ष्मण इस प्रकार भाँति-भाँति से विलाप करने लगे। भगवान् श्रीराम घबराहट के समय भी घबराते नहीं थे। उन्होंने लक्ष्मण से कहा- ‘नरश्रेष्ठ ! तुम खेद न करो। मेरे रहते यह राक्षस कोई चीज नहीं है; इससे तुम्हें कोई हानि नहीं पहुँच सकती। तुम इसकी दाहिनी बाँह काट डालो। मैं बायीं भुजा काट रहा हूँ’। इस प्रकार कहते हुए श्रीरामचन्द्रजी ने अत्यन्त तीखी तलवार से उस राक्षस की एक बाँह तिल के पौधे की तरह काट गिरायी। तदनन्तर बलवान् सुमित्रानन्दन लक्ष्मण ने भी अपने खंग से उसकी दाहिनी बाँह काट डाली और अपने भाई श्रीराम को खडत्रा देखकर उन्होंने उसकी पसली पर भी बड़े जो सक प्रहार किया। फिर तो वह महान् राक्षस कबन्ध प्राणशून्य होकर पृथ्वी पर गिर पड़ा। उसकी देह से एक दिव्यरूपधारी पुरुष निकलकर आकाश में खड़ा दिखायी दिया। वह सूर्य के समान देदीप्यमान हो रहा था। तब कुशल वक्ता भगवान् श्रीराम ने उससे पूछा- ‘तुम कौन हो ? अपना परिख्य दो। मेरे पूछने पर अपनी इच्छा के अनुसार बताओ, यह कैसी अद्भुत एवं आश्चर्यमयी घटना प्रतीत हो रही है ?। उसने कहा- ‘राजन् ! मैं विश्वाचसु नामक गन्धर्व हूँ। एक ब्राह्मण के शाप से इस राक्षसयोनि में आ गया था- लंकावासी राक्षसराज रावण ने आपकी पत्नी सीता का अपहरण किया है। आप नावरराज सुग्रीव से मिलिये। वे आपकी सहायता करेगे। ‘यह थेड़ी ही दूर पर पवित्र जल से भरा हुआ पम्पा सरोवर है, जिसमें हंस और कारण्डव आदि पक्षी चहक रहे हैं। वह सरोवर ऋष्यमूक पर्वत से सटा हुआ है। ‘वहीं अपने चार मन्त्रियों के साथ सुवर्णमालाधारी वानरराज बाली के भाई सुग्रीव निवास करते हैं। ‘उनसे मिलकर आ अपने दुःख का कारण बताइये। उनका शील-स्वभाव आपके ही समान है। वे निश्चय ही आपकी सहायता करेंगे। ‘मैं तो इतना ही कह सकता हूँ कि आपकी जनकनन्दिनी सीता से अवश्य भेंट होेगी। वानरराज सुग्रीव को रावण के घर का पतानिश्चय ही ज्ञात है। ऐसा कहकर वह महातेजस्वी दिव्य पुरुष वहीं अन्तर्हित हो गया। वीरवर श्रीराम और लक्ष्मण दोनों को उसके दर्शन और वार्तालाप से बड़ा विस्मय हुआ।

इस प्रकार श्रीमहाभारत वनपर्व के अनतर्गत रामोख्यान पर्व में कबन्ध वध विषयक दो सौ उन्यासीवाँ अध्याय पूरा हुआ।



« पीछे आगे »

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

साँचा:सम्पूर्ण महाभारत अभी निर्माणाधीन है।