महाभारत शान्ति पर्व अध्याय 81 श्लोक 26-30
एकाशीतितम (81) अध्याय: शान्ति पर्व (राजधर्मानुशासन पर्व)
बुद्धि क्षमा और इन्र्दि्र्र्र्रय -निग्रह के बिना तथा धन वैभव का त्याग किये बिना कोई गण अथवा संघ किसी बुद्धिमान् पुरूष की आज्ञा के अधीन नहीं रहता है। श्रीकृष्ण! सदा अपने पक्षकी ऐसी उन्नति होनी चाहिये जो धन यश तथा आयु की वृद्धि करने वाली हो और कुटुम्बीजनों में से किसी का विनाश न हो। यह सब जैसे भी सम्भव हो वैसा ही कीजिये। प्रभो! संधि, विग्रह, यान, आसन, द्वैधीभाव और समाश्रय -इन छहों गुणों के यथा समय प्रयोग से तथा शत्रु पर चढाई करने के लिये यात्रा करने पर वर्तमान या भविष्य में क्या परिणाम निकलेगा? यह सब आपसे छिपा नहीं है।महाबाहु माधव ! कुकुर, भोज, अन्धक और वृष्णिवंशके सभी यादव आपमें अनुराग रखते है औरों की तो बात ही क्या है? बडे़ - बडे़ ऋषि -मुनि भी आपकी बु़िद्ध का आश्रय लेते है। आप समस्त प्राणियोंके गुरू है भूत, वर्तमान और भविष्य को जानते है आप-जैसे यदुकुलतिलक महापुरूष का आश्रय लेकर ही समस्त यादव सुखपूर्वक अपनी उन्नति करते है।
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