महाभारत अनुशासन पर्व अध्याय 76 श्लोक 23-31

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छिहत्तरवाँ अध्‍याय: अनुशासनपर्व (दानधर्मपर्व)

महाभारत: अनुशासनपर्व: छिहत्तरवाँ अध्याय: श्लोक 18-31 का हिन्दी अनुवाद

‘साक्षात गौ का दान करने वाला शीलवान् और उसका मूल्य देने वाला निर्भय होता है तथा गौ की जगह इच्छानुसार सुवर्ण दान करने वाला मनुष्य कभी दुःख में नही पड़ता हैं। जो प्रातःकाल उठकर नैत्यिक नियमों का अनुष्ठान करने वाला और महाभारत का विद्धान् है तथा जो विख्यात वैष्णव है, वे सब चन्द्रलोक में जाते है। ‘गौ का दान करने के पश्चात् मनुष्य को तीन रात तक गो व्रत का पालन करना चाहिये और यहां एक रात गौओ के साथ रहना चाहिये। कामाष्टमी से लेकर तीन रात तक गोबर, गोदुग्ध अथवा गौरस मात्र का आहार करना चाहिये। ‘ जो पुरुष एक बैल का दान करता है, वह देवव्रती (सूर्यमण्ड़ल का भेदन करके जाने वाला ब्राम्हचारी) होता है। जो एक गाय और एक बैल दान करता है उसे वेदों की प्राप्ति होती है, तथा जो विधि पूर्वक गो दान यज्ञ करता है उसे उत्तम लोक मिलते है, परंतु जो विधि को नहीं जानता, उसे उत्तम फल की प्राप्ति नहीं होती। ‘जो इच्छानुसार दूध देने वाली धेनु का दान करता है, वह मानो समस्त पार्थिव भोगो का एक साथ ही दान कर देता है। जब एक गो के दान का ऐसा माहात्म्य है तब हव्य-कव्य की राशि से सुशोभित होनें वाली बहुत-सी गौओ का यदि विधिपूर्वक दान किया जाये तो कितना अधिक फल हो सकता है? नौजवान बैलों का दान उन गौओं से भी अधिक पुण्यदायक होता है। ‘जो मनुष्य अपना शिष्य नहीं है, जो व्रत का पालन नहीं करता, जिसमें श्रद्धा का अभाव है तथा जिसकी बुद्धि कुटिल है, उसे इस गो-दान विधि का उपदेश न दे; क्यों कि यह सबसे गोपनीय धर्म है; अतः इसका यत्र-तत्र सर्वत्र प्रचार नहीं करना चाहिये। ‘संसार में बहुत से अश्रद्धालु है (जो इन सब बातों पर विश्‍वास नहीं करते ), तथा राक्षसी प्रकृति के मनुष्यों में बहुत से ऐसे क्षुद्र पुरुष हैं (जिन्हें ये बातें अच्छी नहीं लगती), कितनें ही पुण्यहीन मानव नास्तिक का सहारा लिये रहते हैं। उन सबको इसका उपदेश देना अभिष्ट नहीं है, उल्टे अनिष्टकारक होता है’। राजन। बृहस्पिति जी के इस उपदेश को सुनकर जिन राजाओं ने गोदान करके उसके प्रभाव से उत्तम लोक प्राप्त किये तथा जो सदा के लिये पुण्यात्मा बनकार सत्कर्मों में प्रवृत्त हुए, उनकें नामों का उल्लेख करता हूं, सुनो । उशीनर, विश्‍वगस्व, नृग, भागीरथ, सुविख्यात युवनाशकुमार महाराज मान्धाता, राजा मुचुकन्द, भूरिद्युम्न, निषधनरेश नल, सोमक, पुरूरवा, चक्रवर्ती भरत- जिनके वंश में होने वाले सभी राजा भारत कहलाये। दशरथ नन्‍दन वीर श्रीराम, अन्यान्य विख्यात कीर्ति वाले नरेश तथा महान कर्म वाले राजा दिलीप- इन समस्त विधिज्ञ नरेशों ने गोदान करके स्वर्गलोक प्राप्त किया है। राजा मान्धाता तो यज्ञ, दान, तपस्या, राजधर्म तथा गोदान आदि सभी श्रेष्ठ गुणों से सम्पन्न थे। अतः कुन्तीनन्दन। तुम भी मेरे कहे हुए बृहस्पतिजी के इस उपदेश को धारण करों और कौरव राज्य पर अधिकार पाकर उत्तम ब्राह्माण को प्रसन्नता पूर्वक पवित्र गौओं का दान करो। वैशम्पायनजी कहते हैं- जनमेजय। भीष्मजी ने जब इस प्रकार विधिवत गोदान करने की आज्ञा दी, तब धर्मराज युधिष्ठिर ने सब वैसा ही किया तथा देवताओं के देवता बृहस्पतिजी ने मान्धाता के लिये जिस उत्तम धर्म का उपदेश दिया था, उसको भी भलिभांति स्मरण रखा। नरेश्‍वर। राजाओं में श्रेष्ठ युधिष्ठिर उन दिनों सदा गोदान के लिये उद्वत होकर गोबर के साथ जौ के कणों का आहार करते हुए मन और इन्द्रियों के संयम पूर्वक पृथ्वी पर शयन करने लगे। उनके सिर पर जटाऐं बढ़ गयी और वे साक्षात धर्म के समान दैदीप्यमान होने लगे। नरेन्द्र। राजा युधिष्ठिर सदा ही गौओं के प्रति विनीत-चित्त होकर उनकी स्तुति करते रहते थे। उन्होंने फिर कभी बैल का अपनी सवारी में उपयोग नहीं किया। वे अच्छे-अच्छे घोड़ों द्वारा ही इधर-उधर की यात्रा करते थे।

इस प्रकार श्रीमहाभारत अनुशासनपर्व के अन्‍तगर्त दानधर्मपर्व में गोदान कथन विषयक छिहत्तरवाँ अध्‍याय पूरा हुआ।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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