महाभारत अनुशासन पर्व अध्याय 106 श्लोक 38-56

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षडधिकशततम (106) अध्याय: अनुशासन पर्व (दानधर्म पर्व)

महाभारत: अनुशासन पर्व: षडधिकशततम अध्याय: श्लोक 38-56 का हिन्दी अनुवाद

इतना ही नहीं, वह तपाये हुए सुवर्ण के समान कांतिमान विमान पर आरूढ़ होता है और पूरे एक हजार वर्षों तक ब्रह्मलोक में सम्मान पूर्वक रहता है। पुण्य क्षीण होने पर इस लोक में आकर महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त करता है । जो मानव पूरे एक वर्ष तक प्रतिदिन एक बार भोजन करके रहता है, वह अतिरात्र यज्ञ का फल भोगता है । वह पुरूष दस हजार वर्षों तक स्वर्गलोक में प्रतिष्ठित होता है। फिर पुण्य क्षीण होने पर इस लोक में आने पर महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त कर लेता है । जो पूरे एक वर्ष तक दो-दो दिन पर भोजन करके रहता है तथा साथ ही अहिंसा, सत्य और इन्द्रिय संयम का पालन करता है, वह वाजपेय यज्ञ का फल पाता है और दस हजार वर्षों तक स्वर्गलोक में प्रतिष्ठित होता है । कुन्तीनन्दन। जो एक साल तक छठे समय अर्थात तीन-तीन दिनों पर भोजन करता है, वह मनुष्य अश्‍वमेध यज्ञ का फल पाता है । वह चक्रवाकों द्वारा वहन किये हुए विमान से स्वर्गलोक में जाता है और वहां चालीस हजार वर्षों तक आनन्द भोगता है । नरेश्‍वर। जो मनुष्य चार दिनों पर भोजन करता हुआ एक वर्ष तक जीवन धारण करता है, उसे गवामय यज्ञ का फल प्राप्त होता है । वह हंस और सारसों से जुते हुए विमान द्वारा जाता है और पचास हजार वर्षों तक स्वर्गलोक में स्वर्ग भोगता है । राजन। जो एक-एक पक्ष बीतने पर भोजन करता है और इसी तरह एक वर्ष पूरा कर देता है, उसको छः मास तक अनशन करने का फल मिलता है। ऐसा भगवान अंगिरा मुनि का कथन है । प्रजानाथ। वह साठ हजार वर्षों तक स्वर्ग में निवास करता है और वहां वीणा, वल्ल की, वेणु आदि वाद्यों के मनोरम घोष तथा सुमधुर शब्दों द्वारा उसे सोते से जगाया जाता है । तात। नरेश्‍वर। जो मनुष्य एक वर्ष तक प्रतिमास एक वार जल पीकर रहता है, उसे विश्‍वजित यज्ञ का फल मिलता है। वह सिंघ और व्याघ्र जुते हुए विमान से यात्रा करता है और सत्तर हजार वर्षों तक स्वर्गलोक में सुख भोगता है । पुरूषसिंह। एक मास से अधिक समय तक उपवास करने का विधान नहीं है। कुन्तीनन्दन। धर्मज्ञ पुरूषों ने अनषन की यहां विधि बताई है । जो बिना रोग व्याधि के अनशन व्रत करता है, उसे पद-पद पर यज्ञ का फल मिलता है, इसमें संशय नहीं है । प्रभो। ऐसा पुरूष हंस जुते हुए दिव्य विमान से यात्रा करता है और एक लाख वर्षों तक देवलोक में आनन्द भोगता है, सैकड़ों कुंमारी अप्सराऐं उस मनुष्य का मनोरंजन करती हैं । प्रभो। रोगी अथवा पीड़ित मनुष्य भी यदि व्रत करता है तो वह एक लाख वर्षों तक स्वर्ग में सुखपूर्वक निवास करता है । वह सो जाने पर दिव्य रमणीयों की कांचि और नुपुरों की झंकार से जागता है और ऐसे विमान से यात्रा करता है, जिसमे एक हजार हंस जुते रहते हैं ।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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